आज के जमाने में जहां इंटरनेट जानकारियों का खजाना बन चुका है, वहीं इसके कई नुकसान भी समय-समय पर देखने और सुनने को मिलते रहते हैं। इंटरनेट पर खेला जाने वाला एक गेम मुंबई में एक बच्चे की मौत की वजह बना है। इस गेम का नाम है ‘द ब्लू व्हेल चैलेंज’। देशभर में यह अपनी तरह का पहला मामला बताया जा रहा है।

दरअसल, रूस में बना ‘द ब्लू व्हेल चैलेंज’ सुसाइड गेम दुनिया भर में लगभग 200 जानें लेने के बाद अब भारत में भी अपना असर दिखाने लगा है। मुंबई के एक किशोर ने बीते शनिवार को इसी गेम के प्रभाव में आकर अपनी बिल्डिंग की सातवीं मंजिल से कूद कर आत्महत्या कर ली। एकाएक ऐसा कदम उठाने से उसके माता-पिता सदमे में हैं। उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा।

क्‍या है वीडियो गेम्‍स की दुनिया

दरअसल वीडियो गेम्स/इंटरनेट गेम्स के लिए दीवानगी केवल बच्चों में ही नहीं देखी जा रही, इसके लिए युवक-युवतियां भी क्रेजी हुए जा रहे हैं। इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि दुनिया में वीडियो गेम का बाजार लगभग 110 अरब डॉलर का है। ग्लोबल गेम्स मार्केट की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया में 2.2 अरब लोग वीडियो गेम्स खेलते हैं। पिछले साल की तुलना में यह आंकड़ा लगभग 8% ज्यादा है। वीडियो गेम/इंटरनेट गेम्स खेलने वालों में दुनिया के कुल आंकड़ों में एशिया की हिस्सेदारी 47% से ज्यादा है। अकेले चीन में गेमिंग का बाजार 27 अरब डॉलर से ज्यादा का है।

भारत में भी बढ़ रहे हैं गेमर्स

ग्लोबल गेम्स मार्केट की रिपोर्ट बताती है कि दुनियाभर में हर महीने 1.15 अरब घंटे लोग वीडियो गेम्स पर बिताते हैं। अकेले अमेरिका में 18 करोड़ घंटे हर महीने गेमर्स वीडियो गेम पर बिताते हैं। भारत की बात करें तो तेजी से बढ़ती स्मार्टफोन की तादाद के चलते मोबाइल फोन पर वीडियो गेम्स खेलने वालों की संख्या भी देश में बढ़ रही है। साल 2015 में मोबाइल गेमर्स की संख्या 19.8 करोड़ थी। उम्मीद जतायी जा रही है कि 2020 तक यह आंकड़ा 62 करोड़ को पार कर जायेगा। इसे देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि आनेवाले समय में चीन के बाद भारत दुनिया में एक बड़ा गेमिंग हब साबित होगा।

क्‍या कहता है विज्ञान

यह एक जाना-माना तथ्य है कि हर उम्र के बच्चों को मारधाड़ और सुपर हीरो वाली वीडियो गेम्‍स काफी पसंद आती हैं। लेकिन, विज्ञान कहता है कि ऐसे गेम्स के गंभीर परिणाम हो सकते हैं। इससे भले ही बच्चों का कुछ देर के लिए मन बहल जाये, लेकिन लंबी दौड़ में यह बहुत खतरनाक साबित हो सकता है। समय-समय पर ऐसे शोध-पत्र प्रकाशित होते हैं, जो इस बात की तसदीक करते हैं।

बर्मिंघम यूनिवर्सिटी के एक सर्वेक्षण के मुताबिक, इससे बच्‍चों में हिंसक बनने की प्रवृत्ति बढ़ जाती है। हिंसक वीडियो गेम्स में होने वाली मारधाड़ बच्चों के नाजुक मन पर बेहद नकारात्मक प्रभाव डालती है। ऐसे वीडियो गेम्स का जरूरत से ज्यादा इस्‍तेमाल बच्चों में आक्रामक प्रवृत्ति को बढ़ावा देता है, साथ ही इससे उनके नैतिक आचरण में भी गिरावट आती है।

ऐसा असर डालते हैं ये गेम्स

एक समय में एक ही गेम बार-बार खेलने वालों को मूड-स्विंग यानी थोड़ी-थोड़ी देर में मूड में बदलाव की शिकायत महसूस हो सकती है। आक्रामक वीडियो गेम खेलने से याददाश्त, व्यवहार और सहनशीलता पर काफी बुरा असर पड़ सकता है। एक सप्ताह तक लगातार एक एक्शन गेम खेलने वाले भावनात्मक असुरक्षा का शिकार बन सकते हैं।

एक्शन गेम बार-बार लंबे समय तक खेलने से चिंतित रहने की प्रवृत्ति बढ़ सकती है, जो आगे चलकर काफी खतरनाक साबित हो सकती है।

(इंटरनेट इनपुट पर आधारित)

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