महाराष्ट्र के आईएएस दंपति मिलिंद और मनीषा म्हैसकर के इकलौते बेटे मन्मथ द्वारा पिछले दिनों बहुमंजिला इमारत से कूद कर खुदकुशी किए जाने के बाद म्हैसकर दंपति ने दिवंगत बेटे के नाम एक मार्मिक चिट्ठी लिखी है।यह चिट्ठी मीडिया में काफी चर्चित हुई।
इस चिट्ठी में युवा पीढ़ी के लिए यह अहम् संदेश छिपा है कि आज का युवा मरने का हुनर सीखने के बजाय जीने की कला सीखे। जरा सी बात में हार मान लेने या भावावेश में आकर खुद को खत्म कर देने जैसा कदम उठाने के बजाय परिस्थितियों से लड़ना सीखे। चिट्ठी के मनोभाव बताते हैं कि युवाओं द्वारा खुदकुशी जैसा कदम उठा लिए जाने के बाद उनके अपनों और परिजनों की क्या हालत होती है। खासतौर से जब माता पिता अपना सब कुछ बच्चे पर न्योछावर कर चुके हों…
लेकिन लगता है ऐसी एक चिट्ठी से काम नहीं चलने वाला। अब समय आ गया है कि युवाओं को सचेत करने वाली लाखों चिट्ठियां लिखी जाएं, समाज को, युवा पीढ़ी को बताना होगा कि उसे उनकी कितनी परवाह है और उनके आसपास की दुनिया उन्हें कितना चाहती है। ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूं क्योंकि अभी म्हैसकर दंपति द्वारा लिखी गई चिट्ठी पर विमर्श चल ही रहा है कि एक और दहला देने वाली खबर आ गई है।
खबर यह है कि मुंबई में ही अंधेरी ईस्ट इलाके में 14 साल के एक छात्र ने बहुमंजिला इमारत से कूदकर जान दे दी। उसके दोस्तों ने पुलिस को बताया कि खुदकुशी से पहले यह छात्र एक इंटरनेट गेम ‘ब्लू व्हेल चैलेंज‘ खेल रहा था। मरने से पहले उसने छत पर खड़े होकर स्मार्टफोन से अपने कुछ फोटो लेकर उन्हें दोस्तों को वॉट्सएप पर भेजा था। पुलिस को आरंभिक जांच के दौरान इस छात्र के मोबाइल में आत्महत्या से जुड़े कुछ फोटो मिले हैं। छलांग लगाने से पहले उसने गूगल पर खुदकुशी के तरीके भी खोजे थे।
मृत छात्रों के परिजनों के अनुसार “मौत से पहले उसने अपने दोस्तों से कहा था कि वह जल्दी ही रूस जाने वाला है। वहां उसका एक सीक्रेट ग्रुप है जो उसके साथ गेम खेल रहा है।‘’ उसे छत पर चढ़ा देख सामने वाले घर में रहने वाले एक शख्स ने उसे रोकने की कोशिश की, लेकिन वह नहीं माना और छलांग लगा दी। परिवार वालों का कहना है कि उन्होंने कभी उसे डिप्रेशन में नहीं देखा।
‘ब्लू व्हेल गेम’ या ‘ब्लू व्हेल चैलेंज’ दरअसल रूस में बना एक इंटरनेट गेम है। इसमें खिलाड़ी को 50 दिन तक रोज कुछ न कुछ खास करने को कहा जाता है। एक-एक कर सारे टास्क पूरे करते रहने पर आखिर में सुसाइड के लिए उकसाया जाता है। हर टास्क पूरा होने पर गेम प्लेयर को अपने हाथ पर एक कट लगाने के लिए कहा जाता है। ये कट इस तरह लगवाए जाते हैं कि आखिर में उन्हें मिलाकर व्हेल मछली जैसा आकार हाथ पर उभर आता है। यह गेम रूस के फिलिप बुडेकिन ने 2013 में बनाया था।
एक अनुमान के मुताबिक ‘ब्लू व्हेल चैलेंज’ दुनिया में अब तक 200 से अधिक लोगों की जान ले चुका है। इसे खेलते हुए खुदकुशी करने का पहला मामला 2015 में सामने आया था। उसके बाद इस गेम को बनाने वाले फिलिप को गिरफ्तार कर उस पर मुकदमा चलाया गया था। सुनवाई के दौरान फिलिप ने कहा था कि- ”इसगेम का मकसद समाज की सफाई करना है।‘’ फिलिप की नजर में खुदकुशी करने वाले वाले सभी लोग ‘बायो वेस्ट’ थे।
खेल खेल में खुद की जान दे देने वाले इस पागलपन और उसके पीछे काम करने वाले आवेग को समझना मुश्किल है। क्या कोई युवा इतना जुनूनी हो सकता है कि वह किसी अज्ञात व्यक्ति से मिले ‘निर्देशों’ के बाद अपनी जान देने को तैयार हो जाए और वह भी बिना किसी कारण या मकसद के? मुंबई के छात्र की आत्महत्या के बाद महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इस पर गहरी चिंता जताई है। लेकिन यह चिंता केवल महाराष्ट्र या वहां के मुख्यमंत्री की ही नहीं पूरे देश की, बल्कि पूरी दुनिया की होनी चाहिए कि विज्ञान और संचार के लगातार विस्तारित होते इस दौर में क्या हम युवा पीढ़ी को इस तरह अपनी जान देने की इजाजत दे सकते हैं।
‘ब्लू व्हेल’ जैसा गेम भले ही रूस में तैयार किया गया हो, लेकिन ऐसे कई खेल या उपक्रम हैं जो दुनिया में अलग अलग जगहों पर तैयार किए जा रहे हैं और जो युवाओें को अंधेरे की तरफ धकेल रहे हैं। इनके खिलाफ विश्वव्यापी अभियान चलाए जाने की जरूरत है। क्योंकि यह किसी एक देश या क्षेत्र का नहीं बल्कि समूची मानवता और भावी पीढ़ी से जुड़ा मामला है। मुंबई की घटना के बाद कम से कम भारत सरकार को तो ऐसे कठोर कदम उठाने ही चाहिए कि चाहे ‘ब्लू व्हेल’ जैसा जानलेवा खेल हो या ‘ब्लू फिल्मों‘ जैसा सामाजिक जहर, उस पर कठोरता से प्रतिबंध लगे।