यदि मुझे अंग्रेजी में कहना होता तो शायद यह कहता- There is no space for spaceman in our media! ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूं कि मैं प्रोफेसर यू.आर. राव जैसी हस्ती के निधन को अखबारों में बहुत एहसान के साथ पहले पन्ने पर दी गई सिर्फ सिंगल कॉलम स्पेस के कारण पीड़ा से भरा हूं। ऐसी कृतघ्न पीढ़ी मैंने नहीं देखी। आप इस कृतघ्न शब्द के इस्तेमाल पर आपत्ति कर सकते हैं लेकिन मैं इसके अलावा और क्या कहूं? क्योंकि इस मामले में दो तीन बातें ही हो सकती हैं। या तो हमारे आज के मीडिया मैन इतने अज्ञानी हैं कि उन्हें यू.आर. राव के बारे में पता नहीं या फिर उनके लिए ऐसी वैज्ञानिक प्रतिभाएं खबर के लिहाज से कोई मायने नहीं रखतीं।
आज टुच्ची से टुच्ची घटना, गोगुंडों या मुंह खोलते ही वमन करने वाले नेताओं के लिए मीडिया के पास कॉलम के कॉलम जगह है, टीवी चैनल उन पर केंद्रित बहस के लिए घंटों का समय निकाल सकते हैं लेकिन यू.आर. राव जैसे महान वैज्ञानिक के लिए हमारे पास न जगह है और न समय। तो ऐसी पीढ़ी को अज्ञानी और स्वार्थी/बाजारू कहने के बजाय मैंने कृतघ्न कहना पसंद किया है। जिसे कृतज्ञता के साथ याद किया जाना चाहिए उसे कृतघ्नता के साथ तिरस्कृत या विस्मृत किया जा रहा है। और मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं कि मैं भी इसी कृतघ्न समाज का हिस्सा हूं।
यदि आपको यू.आर. राव के बारे में कुछ भी पता नहीं तो और कुछ मत करिए सिर्फ विकीपीडिया जैसे अति परंपरागत और प्राचीन संदर्भ मंच पर जाकर पता कर लीजिए। हिन्दी विकीपीडिया पर उनके बारे में भले ही सिर्फ दो लाइनें मिलें (एक और दुर्भाग्य… एक और त्रासदी…!) लेकिन अंग्रेजी विकीपीडिया पर उनके बारे में लंबा चौड़ा ब्योरा मिलेगा।
यह ब्योरा आपको बताएगा कि आज हमारी संचार की दुनिया जिस तरह अंगुलियों पर नाच और नचा रही है, उसमें भारतवासियों को यह सुविधा मुहैया कराने में यू.आर. राव का कितना बड़ा योगदान था। उन्होंने 24 जुलाई को तड़के बेंगलूरू में 85 वर्ष की आयु में अंतिम सांस ली और सदैव अंतरिक्ष में भारत की सत्ता स्थापित करने के सपने देखने वाला यह महान वैज्ञानिक उसी अंतरिक्ष का हिस्सा हो गया।
भारत सरकार ने प्रो. यू.आर. राव यानी उडुपी रामचंद्र राव को पद्मभूण और बाद में पद्मविभूषण से सम्मानित किया था। हमारे यहां वैज्ञानिकों के सम्मान की क्या स्थिति है यह आप प्रो. राव के निधन के बाद टाइम्स ऑफ इंडिया की वेबसाइट पर प्रसारित खबर के एक अंश से समझ सकते हैं। वो अंश कहता है कि प्रो. राव ने इसी साल जनवरी में मजाकिया लहजे में (लेकिन शायद अत्यंत पीड़ा के साथ) कहा था कि-‘’मुझे लगता है वे मुझे यह (पद्मविभूषण) मरणोपरांत ही देंगे!’’
देश विदेश के कई विश्वविद्यालयों और शिक्षा संस्थानों में पढ़ाने वाले इस महान अंतरिक्ष वैज्ञानिक को अंतरिक्ष कार्यक्रम में भारत को आत्मनिर्भर बनाने का श्रेय जाता है। वे इसरो के चौथे चेयरमैन थे और 1984 से 1994 तक इस पद पर रहे। उन्हीं की देखरेख में भारत के पहले उपग्रह आर्यभट्ट के निर्माण का कार्यक्रम शुरू हुआ। बाद में उन्होंने करीब 18 उपग्रहों जिनमें भास्कर, रोहिणी, इनसेट-1 और इनसेट-2 श्रृंखला के उपग्रह, आईआरएस-1ए और आईआरएस-1बी जैसे उपग्रह शामिल है, के निर्माण व प्रक्षेपण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन उपग्रहों ने भारत के दूरसंचार, मौसम विज्ञान और रिमोट सेंसिग तकनीक में क्रांतिकारी बदलाव किया।
एक बात जो अकसर भुला दी जाती है वो यह कि हमारे वैज्ञानिक किन विपरीत परिस्थितियों में काम करते हैं। जरा इतिहास पर नजर डालें तो पाएंगे कि प्रो. राव के पास इसरो की जिम्मेदारी दस साल तक रही। 1984 से 1994 का यह कालखंड भारत के राजनीतिक इतिहास का सबसे अधिक उथल पुथल वाला कालखंड था। देश जहां प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या और उससे उपजे घटनाक्रम और बाबरी मस्जिद विध्वंस जैसी घटनाओं से जूझ रहा था, उन्हीं दिनों यू.आर. राव के नेतृत्व में इसरो जीएसएलवी और क्रॉयोजनिक इंजन की तकनीक विकसित करने में लगा था। उन्हीं प्रयासों का परिणाम है कि आज भारत एक साथ सौ से अधिक उपग्रह अंतरिक्ष में छोड़ने की क्षमता विकसित कर पाया है।
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और जब मैं प्रो. यू.आर. राव के बारे में ये पंक्तियां लिख रहा हूं उसी समय एक और स्पेसमेन, भारत के महान अंतरिक्ष विज्ञानी और शिक्षाविद प्रो. यशपाल के निधन की खबर आई है। 90 वर्षीय प्रो. यशपाल ने मंगलवार को नोएडा में अंतिम सांस ली।
पद्मविभूषण से सम्मानित प्रो. यशपाल का नाम देश के बड़े साइंस कम्युनिकेटर्स में शुमार होता है। वे 1986 से 1991 तक विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के चेयरमैन रहे। प्रो. यशपाल को भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम का जनक कहा जा सकता है। 1972 में जब भारत सरकार ने पहली बार अंतरिक्ष विभाग का गठन किया था तो अहमदाबाद के स्पेस एप्लिकेशन सेंटर के डायरेक्टर की जिम्मेदारी उन्हें ही सौंपी गई थी।
शिक्षा के क्षेत्र में प्रो. यशपाल का एक बुनियादी योगदान तो अब लोग भूल ही चले होंगे। उन्होंने ही स्कूल जाने वाले बच्चों का स्कूली बैग हल्का करने का मसला उठाते हुए इसे बच्चों के लिए गंभीर समस्या बताया था। दुर्भाग्य से यशपाल कमेटी की वे सिफारिशें आज तक पूरी तरह लागू नहीं हो पाई हैं। इसके अलावा उन्होंने देश में फैले कोचिंग तंत्र को भी खत्म करने की सिफारिश की थी।
प्रो. यशपाल कितनी बड़ी हस्ती थे इसका अनुमान एक घटना से लगाया जा सकता है, जब पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम 2010 में नागालैण्ड में राष्ट्रीय बाल विज्ञान कांग्रेस में बच्चों को संबोधित कर रहे थे। कार्यक्रम में प्रो. यशपाल भी थे। डॉ. कलाम बच्चों को कुछ भी बताने के बाद प्रो. यशपाल से जरूर पूछते ‘’एम आई राइट प्रो. यशपाल’’ और प्रो. यशपाल मुस्कुरा कर मिसाइल मैन की बात से सहमति जताते।
प्रो. यू.आर. राव को तो जाने के बाद मीडिया में जगह नहीं मिली, देखते हैं प्रो. यशपाल कितनी जगह पाते हैं…
badhai. shandar.
धन्यवाद सर जी