शिक्षा संस्थानों और खासतौर से उच्चतर एवं प्रोफेशनल शिक्षा संस्थानों में संस्थान की ओर से छात्रों के हित में किए जाने वाले कार्यों और संस्थानों के दायित्व का ब्योरा तो तफसील से उपलब्ध होता है लेकिन छात्रों को किस तरह का आचरण करना चाहिए और उनका दायित्व क्या है इसकी वैसी कोई खास लिखत पढ़त नहीं होती।
लेकिन दिल्ली का अखिल भारतीय जनसंचार संस्थान (आईआईएमसी) छात्रों के दायित्वों को बाकायदा सूचीबद्ध रूप में सामने लेकर आया है। इसे आईआईएमसी ने छात्रों के ‘कोड ऑफ कंडक्ट’ का नाम दिया गया है और संस्थान के प्रत्येक छात्र को वचन-पत्र के रूप में इसे अपने हस्ताक्षरों के साथ संस्थान प्रशासन को सौंपना होगा। इस कोड ऑफ कंडक्ट का उल्लंघन करने पर छात्रों के विरुद्ध चरणबद्ध रूप से अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी जिसका दायरा औपचारिक चेतावनी से लेकर छात्र के निलंबन व निष्कासन तक का होगा।
करीब साढ़े तीन पन्नों की इस आचरण संहिता में, संस्थान की छात्रों से अपेक्षाओं का विस्तृत ब्योरा दिया गया है। इसके साथ ही यह भी बताया गया है कि वे कौन कौन से कारण होंगे जिन्हें इस आचरण संहिता का उल्लंघन माना जाएगा। संस्थान के अनुसार यह संहिता छात्रों के अकादमिक और व्यक्तिगत दोनों संदर्भों में लागू होगी। इसमें अच्छे आचरण की परिभाषा भी दी गई है। इसमें उनसे अपेक्षा की गई है कि वे देश के कानून का पालन करेंगे।
लेकिन इस संहिता का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा ‘सोशल मीडिया’ के उपयोग को लेकर है। इसमें मीडिया के विद्यार्थियों से कहा गया है कि सोशल मीडिया एक सार्वजनिक मंच है जिसका उपयोग जानकारियों के आदान प्रदान के लिए हो सकता है, और इस लिहाज से सोशल मीडिया के टूल्स इस्तेमाल जरूर होना चाहिए। लेकिन संस्थान के छात्रों को इस मंच का उपयोग किसी भी तरह का वैमनस्य फैलाने या उत्तेजना का ऐसा वातावरण निर्मित करने में नहीं करना चाहिए जिससे संस्थान का सौहार्द और अकादमिक माहौल दूषित हो।
संहिता कहती है कि सोशल मीडिया पर की जाने वाली कोई भी टिप्पणी, भले ही वह व्यक्तिगत रूप से की गई हो, इस मंच की सार्वजनिक प्रकृति को देखते हुए अपने आप में कई तरह के खतरों को समेटे हुए रहती है,इसलिए संस्थान के छात्रों से अपेक्षा की जाती है कि वे पर्याप्त सावधान रहें। छात्र नैतिकता के उच्चतम मापदंडों को स्थापित करते हुए इस बात को ध्यान में रखें कि उनके द्वारा सोशल मीडिया पर डाली गई कोई भी पोस्ट या सामग्री उनके आचरण को संदिग्ध न बनाए।
छात्रों से कहा गया है कि उनके द्वारा सोशल मीडिया पर डाली गई पोस्ट मानहानिकारक, भेदभावपूर्ण, किसी का उत्पीड़न करने वाली, धमकाने वाली या अश्लील नहीं होनी चाहिए। ऐसी कोई भी पोस्ट आपत्तिजनक मानी जाएगी जो संस्थान की इस आचरण संहिता का या देश के कानून का उल्लंघन करती हो।
दरअसल किसी भी अकादमिक संस्थान में छात्रों का एकमेव उद्देश्य ज्ञानार्जन ही होना चाहिए। उससे भटकाने वाली कोई भी गतिविधि उनके भविष्य को विपरीत रूप से प्रभावित करती है। इस लिहाज से आईआईएमसी की यह पहल स्वागतयोग्य है। लेकिन शिक्षा परिसर में छात्रों के सोशल मीडिया संबंधी आचरण को इस तरह संहिताबद्ध करके आईआईएमसी के महानिदेशक के.जी. सुरेश ने एक खतरा भी मोल लिया है। जिस तरह से इन दिनों शिक्षा संस्थानों में छात्र सोशल मीडिया का उपयोग शिक्षा से इतर कई तरह की गतिविधियों के लिए कर रहे हैं, उस परिदृश्य में इस फैसले पर कई लोगों की नजरें टेढ़ी होना तय है।
सोशल मीडिया ऐसी दुधारी तलवार है जो समाज को दोनों तरफ से काट रही है। ऐसे में मीडिया के विद्यार्थियों को अपने शिक्षा संस्थान में ही सोशल मीडिया के उपयोग को लेकर सचेत करना अच्छा कदम है। जिन युवाओं को आगे चलकर संचार या मीडिया के क्षेत्र में ही काम करना है उन्हें इस बात का अहसास होना चाहिए कि वे किन टूल्स का इस्तेमाल कर रहे हैं और उन टूल्स को इस्तेमाल करने के खतरे क्या हैं?
शिक्षा परिसर में सोशल मीडिया की गतिविधियों पर किसी तरह की पाबंदी या उनका दायरा निश्चित करने के कदम पर बहस हो सकती है, लेकिन इस बात में कोई दो राय नहीं हो सकती कि आज का युवा जिस तरह से आंख मूंदकर धड़ल्ले से सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर रहा है, उसे इस बारे में सचेत करने की बहुत ज्यादा जरूरत है। देश में पिछले कुछ सालों में सोशल मीडिया ऐसी अनेक घटनाओं का कारण बना है जिनसे या तो हिंसा फैली है या फिर सामाजिक या सांप्रदायिक सौहार्द का तानाबाना नष्ट हुआ है। शिक्षा परिसर भी इससे अछूते नहीं रहे हैं।
फेसबुक या वाट्सएप पर चलाई जाने वाली सामग्री ने पत्रकारिता में पहले से ही मौजूद विश्वसनीयता के संकट को और बढ़ा दिया है। मेरा मानना है कि मीडिया या संचार क्षेत्र को यदि अपनी विश्वसनीयता को फिर से कायम करना है तो सबसे पहले उसे इन सोशल प्लेटफार्म्स पर आने वाली सामग्री पर अविश्वास करना सीखना होगा। उसे हर सूचना को संदेह की दृष्टि से देखना होगा क्योंकि इस बाजार में असली नकली का भेद लगभग मिटा सा दिया गया है।
आईआईएमसी ने तो अपने छात्रों की आचरण संहिता में सोशल मीडिया के उपयोग के तौरतरीकों का जिक्र किया है, मेरा तो सुझाव है कि जिस तरह से सोशल मीडिया हमारी रोजमर्रा की जिंदगी को प्रभावित कर रहा है, उसे देखते हुए स्कूल स्तर से ही इसके सही उपयोग की शिक्षा देने के लिए अलग से पाठ्यक्रम होना चाहिए। अपना फेसबुक या वाट्सएप अकाउंट चलाने वाले के लिए भी एक तरह से वैसे ही लर्निंग लाइसेंस की जरूरत है जिस तरह सड़क पर वाहन चलाने से पहले होती है।