खुद को किसानों की हितैषी कहने वाली मध्यप्रदेश सरकार, राज्य में खेती को लाभ का धंधा भले ही न बना पाई हो, लेकिन उसने सरकारी नौकरी को जरूर ‘भारी लाभ’ का धंधा बना दिया है। कहावत तो पांचों उंगलियां घी में और सिर कढ़ाई में रहने की है, लेकिन यहां यदि कोई सरकारी नौकरी में है तो यकीन मानिए वह पूरा का पूरा ही घी के पीपे में उतरा हुआ है।
सरकारी कामकाज में अपने लिए कमाई के अलग रास्ते बनाने का उदाहरण देते समय अकसर अकबर बीरबल के किस्से के तौर पर उस कारिंदे की कहानी सुनाई जाती है जिसकी रिश्वतखोरी की आदत से तंग आकर बादशाह ने उसे लहरें गिनने के काम में लगा दिया था। लेकिन वहां भी वह अपनी कारस्तानी से बाज नहीं आया। नदी में गुजरने वाली नावों को उसने यह कहकर रोकना शुरू कर दिया कि वह लहरें गिन रहा है। बेचारे नाव वाले उसके चक्कर में दो-दो, तीन-तीन दिन रुके रहते और उनका बड़ा नुकसान होता। तंग आकर उन्होंने सरकारी कारिंदे की मुट्ठी गरम करना शुरू कर दिया।
बादशाह को जब इस बात का पता लगा तो उन्होंने लिखकर आज्ञा दी- ‘‘नावों को रोको मत, जाने दो?”लेकिन कारिंदे ने उसमें भी पेंच फंसा दिया। उसने बादशाह का आदेश जरा से हेरफेर के साथ लिखवा कर नदी किनारे टंगवा दिया। आदेश था ‘‘नावों को रोको मत, जाने दो” लेकिन उसे लिखवाया गया ‘‘नावों को रोको, मत जाने दो” और इस तरह उसने बादशाह के आदेश के नाम पर वसूली शुरू कर दी। आखिरकारबादशाह को उसे नौकरी से बर्खास्त ही करना पड़ा।
हमारे मध्यप्रदेश में भी ऐसे अनेक कारिंदे कभी रेत को, कभी प्याज को, कभी खाद को, कभी बीज को,कभी गेहूं को, कभी दाल को गिन गिनकर अपनी जेबें गरम कर रहे हैं। ताजा मामला प्याज का है। सरकार ने संकट में पड़े प्याज उत्पादक किसानों को राहत देने के लिए उनसे आठ रुपए किलो की दर से प्याज खरीदने का ऐलान क्या किया कि अफसरों की बन आई। बरसों से फलफूल रहे, मंडी, व्यापारी और बिचौलियों के चमन में मानो बहार आ गई। ऐसा ही एक ‘सौदा’ करते हुए नागरिक आपूर्ति निगम का एक जनरल मैनेजर मीडिया के स्टिंग ऑपरेशन की जद में आ गया और मामला उजागर होने के बाद निगम को जीएम श्रीकांत सोनी को सस्पेंड करना पड़ा।
यह तो हुई सूखी-सूखी सूचना। लेकिन इस जीएम के स्टिंग के दौरान न्यूज चैनल के रिपोर्टर से उसकी जो बातचीत हुई वह बहुत दिलचस्प है। जरा सुनिए बात कैसे शुरू हुई और उसमें क्या-क्या कहा सुना गया-
रिपोर्टर- सर, बिना बोली के प्याज मिल जाए, गाइड करिए।
श्रीकांत सोनी- अरे, बोली मैनेज कर देंगे ना….वही तो कह रहा हूं। शाजापुर से मैनेज करा सकता हूं। मक्सी या शुजालपुर से भी।
रिपोर्टर- शुजालपुर से करा दीजिए। नजर में भी नहीं है लोगों के।
सोनी- दो रुपए 10 पैसे में कराता हूं। इतने तक नहीं मिली तो देखते हैं, जितनी आसानी से मिल जाए ठीक है।
रिपोर्टर- मुझे क्या करना होगा?
सोनी- खर्चा-पानी तो लगेगा।
रिपोर्टर- वो कितना होगा?
सोनी- समझो… तीन, साढ़े तीन, चार लाख तो लगेगा। वो तो आपको देना पड़ेगा ना। पहले करना पड़ेगा वो। पांच लाख में सब हो जाएगा।
रिपोर्टर- सर, कैश में या कोई अकाउंट में।
सोनी- कैश में कराना होगा। ये बात बहुत ही गोपनीय रखनी होगी। वो मैं बताऊंगा.. ऑफिस में ही दे देना। कोई दिक्कत नहीं।
रिपोर्टर- ठीक है सर।
बातचीत तो इसके आगे भी चली है, लेकिन मुझे काक-भुशुंडी संवाद की तरह हुए इस जीएम-रिपोर्टर संवाद का यह टुकड़ा ही प्रभावी लगा। यह कोई सामान्य रिश्वत-याचक संवाद नहीं है। इसमें अनंत संभावनाएं दिखाई देती हैं। मसलन आप रिश्वत मांगने की रेंज देखिए। पट्ठे ने तीन लाख से बात शुरू की और पांच लाख तक गया। यह दर्शाता है कि प्रदेश में खाने खिलाने के खेल में कितना लोच और कितना लोचा है। दलाल का उत्कोच स्वीकार करने की रस्सी इतनी लंबी है कि उसकी न्यूनतम और अधिकतम आकांक्षा में करीब करीब डबल का अंतर है।
दूसरा खास तौर से मुझे इस संवाद में भाई का बिंदास और निडर होना बहुत भाया। जरा इस रिश्वत के सुल्तान की हिम्मत देखिए, सारा माल कैश में दिए जाने की दरकार के साथ वो कहता है- ‘’ऑफिस में ही दे देना। कोई दिक्कत नहीं…।‘’
यानी भाई को सरेआम ऑफिस में रिश्वतखोरी करते पकड़े जाने का भी कोई डर नहीं। आपको याद होगा ऐसे ही कटनी में नगर निगम के एक कमिश्नर साहब थे, सुरेंद्र कुमार कथूरिया, उन्होंने एक डॉक्टर से 50 लाख की रिश्वत मांगी थी। जब डॉक्टर ने एक-दो लाख से बात शुरू की तो कथूरिया साहब ने उसे तत्वज्ञान देते हुए कहा था- ‘’अब आप जरा ऊपर उठिए, अपना माइंड सेट बदलिए…’’
कहने का तात्पर्य यह है कि हमारे हरे भरे मध्यप्रदेश में सिर्फ रिश्वत लेने का ही काम नहीं हो रहा, उसके तौर तरीके सिखाने और रिश्वत प्रदाय को लेकर हिचकने वालों के मन से डर निकालने की कक्षाएं भी चल रही हैं।
उधर मोदी जी कहते हैं सारा काम डिजिटली करो, यहां अपने शूरवीर कैश में डील करते हैं, वे कहते हैं ‘न खाऊंगा न खाने दूंगा’ जबकि हमारे यहां ‘खाओ खिलाओ योजना’ से आर्थिक कुपोषण दूर किया जा रहा है। और सब कुछ खुलेआम, बेखौफ…
ऐसे में चाहे कोई मोदी हो या फोदी, इनका क्या उखाड़ लेगा…