अगर आपके पास समय हो तो आज के इस सुप्रभात गीत को जरा ध्यान से सुनिए। आपको पता चलेगा क्या होती है संगीत की साधना और क्या होता है संगीत का असर। यह संगीत के कंठ से अनहद तक पहुंचने का अप्रतिम उदाहरण है। इसे लोकप्रिय संगीत की सम्राज्ञी लता मंगेशकर और भारतीय शास्त्रीय संगीत के अनन्य साधक पंडित भीमसेन जोशी ने गाया है। दोनों अपनी अपनी जगह सुरों के सर्वोत्तम साधक हैं। लेकिन एक बड़ा अंतर आपको महसूस होगा। जब लताजी गाती हैं तो लगता है कोई सांसारिक गा रहा है और जब भीमसेन जोशी गाते हैं तो लगता है जैसे आप अध्यात्म के स्तर पर कोई संगीत सुन रहे हैं।
बोल वही हैं लेकिन जब भीमसेन जोशी गाते हैं- ‘’अधर धरे मोहन मुरली पर’’ तो, वह अनहद की ऊंचाई है। लगता है जैसे मुरलीधर सशरीर हमारे सम्मुख हैं। और जब लताजी गाती हैं तो महसूस होता है कि अधर, मुरली और होठ शब्दों का उच्चारण करते समय हम सांसारिक मायामोह से विमुख नहीं हो पाए हैं। भीमसेन जोशी का गायन भक्ति और साधना में डूबा हुआ गायन है, जबकि लताजी का गायन अध्यात्म के उस स्तर तक पहुंचने की कोशिश।
लताजी मुरलीधर की उस छवि को पहचानने की कोशिश करती नजर आती हैं, जबकि भीमसेन जोशी उससे साक्षात्कार करते हुए लगते हैं। यह अनहद के अनंत आकाश में एक चिडि़या और एक गरुड़ की उड़ान की तरह है। चिडि़या को उड़ने के लिए अपने पंख बार बार चलाना होते हैं, लेकिन गरुड़ उड़ान भरने के बाद बस वहां तैरता रहता है। यही है साधक, साधना और साधना की उपलब्धि…
गिरीश उपाध्याय
अब सुनिए यह गीत…