तोड़फोड़… पथराव… आगजनी…, शांत है अपना भोपाल!

अपने पाठकों से मैं माफी के साथ कहना चाहूंगा कि आज मुझे लगातार दूसरे दिन भी मध्‍यप्रदेश की राजधानी भोपाल के बारे में लिखना पड़ रहा है और यह भी किसी सकारात्‍मक संदर्भ में नहीं बल्कि कल की ही तरह नकारात्‍मक संदर्भ में। खबरों की दुनिया में नो निगेटिविटी की धारा को देखते हुए मैं कोशिश करूंगा कि जो भी लिखूं उसमें निगेटिविटी भी पॉजिटिविटी की तरह ही प्रस्‍तुत हो। लेकिन यदि ऐसा न हो पाए तो माफ कीजिएगा…

दरअसल बुधवार को भोपाल के सारे पॉजिटिव, निगेटिव और न्‍यूट्रल अखबार, मंगलवार देर शाम से शुरू होकर देर रात तक और कमोबेश दूसरे दिन यानी बुधवार सुबह तक चली एक घटना की खबर से रंगे पड़े हैं। खबर यह है कि राजधानी के सबसे बड़े सरकारी चिकित्‍सा संस्‍थान हमीदिया अस्‍पताल परिसर में निर्माण कार्य के दौरान खुदाई में मिली कुछ सामग्री को लेकर मुस्लिम और हिंदू समुदाय आमने सामने आ गए।

वैसे जब मैं यह वाक्‍य लिख रहा हूं कि मुस्लिम और हिंदू समुदाय आमने सामने आ गए तो पत्रकारिता के मेरे संस्‍कार ही मुझे रोक रहे हैं। भीतर से मानो कोई कह रहा हो- ‘आखिर तुम भी नए जमाने के पत्रकार हो ही गए।ऐसा इसलिए कि मैंने जब पत्रकारिता का ककहरा सीखा था, तब हमारे उस्‍तादों ने पहली ही बात यह सिखाई थी कि ऐसे मामलों में समुदायों की पहचान कभी नहीं बतानी चाहिए।

लेकिन अब जमाना बदल गया है। पहचान छुपाने की बात तो छोडि़ए आज तो सब कुछ लाइव चलता है। वेशभूषा से लेकर हरकतों तक के जरिये सब कुछ साफ-साफ नजर आता है कि ये आमने सामने आने वाले लोग कौन है। फिर आप लाख उन्‍हें दो समुदाय, दो पक्ष, दो गुट कहकर मन समझाने के लिए पहचान पर पर्दा डालने की कोशिश करें लेकिन असल में वह पर्दा नहीं बल्कि कांच होता है जिसके आर-पार सब कुछ पूरी पारदर्शिता के साथ दिखाई देता है।

अरे आज जब लोगों को सरेआम कत्‍ल करते, जिंदा जलाते और गायें काटते दिखाया जा सकता है तो फिर दो समुदायों को हिंदू या मुसलमान की पहचान देने में कौनसा गुरेज, कौनसी नैतिकता और कौनसी पत्रकारिता की आचार संहिता…। जब सारा कारोबार ही बिना कपड़ों के चल रहा हो तो बेचारा लंगोट पहनकर निकलने वाला नंगई को कितना ढंक पाएगा, वह तो अजूबा ही कहलाएगा। यह विशुद्ध नंगई का समय है, जो जितना बड़ा नंगा वही उतना बड़ा बाहुबली!

खैर… लगता है मैं भटक रहा हूं… मुझे बात भोपाल की घटना पर करनी है। तो सुनिए… दरअसल हमीदिया अस्‍पताल के आसपास कुछ घट रहा है इसकी सुगबुगाहट दो चार दिनों से शहर में थी। लेकिन मंगलवार रात होते होते यह सुगबुगाहट एक भभके में बदल गई। और शुरू हुई वो नंगई जिसका जिक्र मैंने ऊपर किया… फिर क्‍या था, फेसबुकिये और वाट्सएपिये तत्‍काल सक्रिय हुए। पहले धीरे धीरे चीजें सरकाई गईं और देर रात होते होते तक तो ऐसा तमाशा हुआ कि पूछिए मत।

भाई लोग लगातार अपने अपने गिरोहों में (मैंने यहां वाट्सएप ग्रुप के लिए गिरोह शब्‍द ज्‍यादा उपयुक्‍त पाया है) सूचनाएं दे रहे थे। ‘’भोपाल के हमीदिया रोड पर तनाव की खबर है’’ ‘’अब दोनों समुदाय आमने सामने आ गए हैं’’ ‘’पथराव और आगजनी होने लगी है’’ ‘’पुलिस ने लाठी, आंसूगैस और गोली चलाई है’’ इसी बीच किसी ने एक फतवे का फोटो जारी कर दिया तो किसी ने धर्मस्‍थल से आती आवाजों को वीडियो में सुना दिया…

और हिमाकत की हद देखिए, आग लगाने वाला ऐसा हर संदेश इस हिदायत के साथ पोस्‍ट किया जा रहा था कि इसे फॉरवर्ड नहीं करना है… यह शहर हमारा है… शांति बनी रहनी चाहिए… भाई लोग खुद अनाप-शनाप संदेश पोस्‍ट कर रहे थे और दूसरों को उपदेश दे रहे थे- भड़काने वाली बात नहीं होनी चाहिए… इसी बीच एक दूसरे पर उलाहने दागने का सिलसिला भी जारी था- हां तू तो आग लगाएगा ही ना… शर्म आनी चाहिए ऐसे संदशे पोस्‍ट करने पर… जवाब देने वाले ने पलटवार किया- नहीं भाई मेरे पास तो खबर दिन से ही थी पर मैंने नहीं चलाई…

देर रात होते होते इस एंटी सोशल मीडिया पर वो सबकुछ उपलब्‍ध और उजागर था जिसे छुपाने की बात हर कोई कर रहा था। और सुबह रही सही कसर अखबारों ने पूरी कर दी। सरेआम आगजनी, पथराव, पुलिस के बलप्रयोग, सड़क पर लोगों के आमने सामने होने के फोटुओं के साथ मोटी मोटी खबरें छपी थीं और बगल में लिखा था- अफवाहों पर ध्‍यान न दें,शांत है अपना भोपाल, सद्भाव बनाए रखें…

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मुझे नहीं मालूम कि हमीदिया अस्‍पताल में खुदाई के दौरान जो निकला वो हिंदू की विरासत है या मुसलमान की… लेकिन मैं इतना जानता हूं कि भोपाल का यह अस्‍पताल लोगों के इलाज का स्‍थान कम और कई तरह के माफिया का अड्डा ज्‍यादा है। बहुत पुराने हो चुके भवनों को गिराकर यहां नया निर्माण और अस्‍पताल का विस्‍तार हो रहा है, जाहिर है इसमें कई लोगों के हाथ से वो जगहें भी चली जाएंगी जहां उनका कब्‍जा था, उनके अड्डे थे और जहां से उनका माफिया राज चला करता था। इस माफिया के जरिये घोषित/अघोषित रूप से कई लोग बरसों से लाभ उठा रहे हैं।

ऐसे में इस लोकहितकारीजनकल्‍याणकारी सरकार और प्रशासन को समझना चाहिए कि जब आप यूं किसी के पेट पर लात मारोगे तो वो आपको मिश्री-मावे के लड्डू तो खिलाएगा नहीं… आग ही लगाएगा… सो लग रही है…

आपकी दमकल में दम हो तो बुझा दो… 

 

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