चार दिन पहले मैंने भारतीय रेल द्वारा शुरू की गई अत्याधुनिक सुविधाओं वाली ‘तेजस’ ट्रेन के यात्रियों की चोट्टाई पर लिखा था। मुंबई से गोवा के बीच चलाई गई इस ट्रेन से भाई लोग बेहतरीन क्वालिटी के हेडफोन जेब में रखकर चल दिए थे। इसी तरह सीटों पर लगाई गई एलईडी स्क्रीन को भी लोगों ने खुरच डाला था और कुछ क्रांतिकारियों ने तो उसे भी उखाड़ने की कोशिश की थी।
दरअसल भारत और किसी मामले में एक हो या न हो, सरकारी या सार्वजनिक संपत्ति की चोरी या उसे नुकसान पहुंचाने के मामले में उत्तर से दक्षिण और पूरब से पश्चिम तक देश में विविधता नहीं बल्कि सर्वत्र एकरूपता के ही दर्शन होते हैं। ‘तेजस’ मामला तो चोट्टी मानसिकता का था, लेकिन एक और मामला हम भारत के लोगों को आश्चर्यजनक रूप से जोड़ता है और वह है गंदगी फैलाना।
गंदगी करने के मामले में भी, थोड़ी बहुत ऊंच नीच के साथ हम सब एक ही हैं। आजादी के समय बाल गंगाधर तिलक ने नारा दिया था- ‘’स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है’’ उसी तरह आजाद भारत के लोगों का नारा है- ‘’गंदगी करना मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है।‘’ भोपाल के कवि राजेंद्र अनुरागी की 1965 में चीन से युद्ध के समय लिखी गई एक कविता की पंक्तियां हैं- ‘’आज अपना देश सारा लाम पर है, जो जहां भी है वतन के काम पर है।‘’ उसी तर्ज पर आप कह सकते हैं कि ‘’आज अपना देश सारा लाम पर है, जो जहां भी है गंदगी के काम पर है…’’
ताजा मामला भोपाल के ताजा-ताजा उद्घाटित केबल स्टे ब्रिज का है। मुख्यमंत्री ने इसका उद्घाटन 26 मई को किया था, यानी उसी दिन जिस दिन भारत में स्वच्छता के सबसे बड़े पैरोकार बनकर उभरे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार को तीन साल पूरे हुए थे। बहुत खूबसूरत फोटोज के साथ इस ब्रिज के उद्घाटन की खबरें अखबारों में छपी थीं और मीडिया ने इसे भोपाल की खूबसूरती और शान में एक और चमकता सितारा बताया था।
लेकिन मंगलवार को राजधानी के एक अखबार ने फोटो सहित एक खबर छापी है जो बता रही है कि यह चमकता सितारा चंद रोज में ही अपनी चमक खो बैठा है। जर्दा, पर्दा, गर्दा और नामर्दा के लिए चर्चित भोपाल के कुख्यात ‘पिच्चकों’ ने इस नए नवेले पुल का ‘पीक श्रृंगार’ कर डाला है। घूमने फिरने और यहां सेल्फी लेने के बहाने आने वाले लोग यहां से जाते समय इसे ‘पीक प्रसाद’ देकर जा रहे हैं। जर्दे और पान की पीक ने पुल की दीवारों को बदरंग कर दिया है।
जो लोग भोपाल की भौगोलिक स्थिति से वाकिफ नहीं हैं उनके लिए मैं बता दूं कि नया बना यह पुल नए और पुराने भोपाल की सीमारेखा पर स्थित एक नया मार्ग उपलब्ध कराता है। पुराने भोपाल में जर्दे के शौकीनों की संख्या अपेक्षाकृत बहुत ज्यादा है। अनुभव यह रहा है कि जिस तरह कुत्ता अपनी शंका निवारण के लिए हमेशा कोई नया खंभा तलाशता है, उसी तरह ये ‘पिच्चक’ भी नई और साफ सुथरी जगहों की खोज में रहते हैं। ऐसे में नया बना पुल भले ही बाकी लोगों के लिए ‘पिकनिक स्पॉट’ हो लेकिन भोपाली पिच्चकों ने इसे ‘पीक स्पॉट’ की तरह ग्रहण किया है।
पिछले दिनों जब भोपाल को देश भर के स्वच्छ शहरों की सूची में दूसरा स्थान मिला था, तभी लोगों ने उसे गर्व के बजाय शंका की नजरों से देखा था, लोग यह बात गले उतारने को तैयार ही नहीं थे। उसका कारण भी जायज था, क्योंकि जिस शहर में जर्दे की पीक गले के नीचे नहीं उतरती वहां देश में दूसरे नंबर का सफाई तमगा कैसे गले के नीचे उतर सकता है।
भोपाल को सफाई में दूसरे नंबर का दर्जा मिलने के बाद शहर के एक महत्वपूर्ण चौराहे पर नगर निगम प्रशासन की ओर से ‘धन्यवाद भोपाल’ का विशालकाय कटआउट लगाया गया। ऐसा लगता है ‘भोपाली पिच्चकों’ ने भोपाल की इस उपलब्धि को चुनौती के रूप में लिया। उन्हें ‘धन्यवाद भोपाल’ का कटआउट मुंह चिढ़ाता सा लगा होगा। शायद इसी का परिणाम है कि उन्होंने अपनी ‘ताकत’ दिखाते हुए भोपाल को फिर से ‘अपने रंग’ में रंगने का जिहाद छेड़ दिया है।
मुझे तरस आता है भोपाल नगर निगम के महापौर आलोक शर्मा पर। भोपाल को साफ सफाई के मामले में दूसरा दर्जा मिलने के बाद, दिल्ली में वेंकैया नायडू के हाथों सम्मानित होने की खुमारी अभी टूटी भी नहीं थी कि उन्हें नए केबल स्टे ब्रिज की गंदगी को साफ करने खुद मैदान में उतरना पड़ा। साथ में लगा फोटो उसी ‘अवसर’ का है।
इसीलिए कहते हैं कि लाख मेहनत करके भले ही आप सफलता की ‘पीक’ (चोटी) पर पहुंच जाएं। लेकिन यदि ‘पीक प्यारे’ ठान लें तो आपको चोटी से उतारकर किसी भी दीवार पर चस्पा कर देंगे। भोपाल में यही हो रहा है। और मुझे मजबूरन तेजस ट्रेन पर लिखे गए अपने कॉलम के शीर्षक वाली बात दोहरानी पड़ रही है कि लाख मोदी आ जाए, इन पिच्चकों का क्या बिगाड़ लेंगे…