सलाम इन बच्चियों को, इनके हाथ में पत्‍थर नहीं किताब है

मीडिया में भले ही यह खबर किसी भी एंगल से प्रचारित या प्रसारित हो, लेकिन मैं इसमें भारतीय समाज में आ रहे महत्‍वपूर्ण बदलाव के संकेत देख रहा हूं। लिंगानुपात की दयनीय स्थिति के लिए चर्चित हरियाणा से बुधवार को जो खबर आई है वह सरकार, प्रशासन या राजनीति के लिए भले ही अलग अर्थ रखती हो, मीडिया भले ही राजनीतिक रंग देकर इसे सरकार या शासन प्रशासन की हार के रूप में प्रस्‍तुत करे, लेकिन मैं इसे बेटियों की ताकत और सकारात्‍मकता की अद्भुत जीत के रूप में देखता हूं।

मामला यह है कि हरियाणा के रेवाड़ी जिले के गांव गोठड़ा की 80 से अधिक लड़कियों ने 10वीं कक्षा तक के अपने स्‍कूल को अपग्रेड कर 12वीं कक्षा तक करने की मांग को लेकर एक सप्‍ताह तक अनशन किया। आखिरकर सरकार को उनकी बात माननी पड़ी और बुधवार को शिक्षा मंत्री ने ऐलान किया कि स्कूल का दर्जा बढ़ा कर सीनियर सेकेंडरी किया जाएगा ताकि ये छात्राएं अपने गांव में ही 12वीं तक की पढ़ाई कर सकें।

पर यह मामला सिर्फ 10वीं तक के स्‍कूल को 12वीं तक करने का ही नहीं था। इसके पीछे जो कहानी है, वह समाज की आंखें खोलने वाली है। दरअसल इन छात्राओं को 10वीं से आगे की पढ़ाई के लिए करीब 3 किलोमीटर दूर कनवली गांव के स्‍कूल में जाना पड़ता था। यह दूरी भी उनके लिए कोई बाधा नहीं थी। सबसे बड़ा संकट यह था कि स्कूल जाने व लौटने के दौरान रास्‍ते में उन्‍हें आसपास के गांवों के शोहदों की असहनीय छेड़खानी का शिकार होना पड़ता था।

लड़कियों के साथ छेड़खानी करने वाले लड़के बहुत शातिर थे और हेलमेट पहनकर या कपड़ा लपेटकर अपनी पहचान छुपाकर रखते थे। पहले यह मामला गांव के सरपंच के पास गया लेकिन सरपंच के हस्‍तक्षेप से भी समस्‍या का कोई हल नहीं निकला। बच्चियों ने हिम्‍मत करके अपनी परेशानी घरवालों को बताई तो उन्‍हें सलाह मिली कि स्कूल छोड़ दो। इलाके के अफसरों की तरफ से भी कोई ठोस मदद नहीं मिली। चारों तरफ से निराश बच्चियों ने आखिरकार अपनी लड़ाई खुद ही लड़ने का फैसला किया और गांधीवादी तरीके से विरोध दर्ज कराते हुए वे इस भीषण गरमी में अनशन पर बैठ गईं।

अनशन जब एक सप्‍ताह तक खिंच गया और लड़कियों की हालत खराब होने लगी तो मीडिया और प्रशासन दोनों जागे। बच्चियों को हर तरीके से समझाने की कोशिश की गई, लेकिन वे टस से मस नहीं हुईं। मंगलवार रात मैं एक टीवी चैनल पर इस बारे में विशेष रिपोर्ट देखते समय बच्चियों के हौसले को देखकर हैरान था। जिस तरह से वे पुलिस की एक महिला अफसर से लेकर, जबरन उनका अनशन तुड़वाने आए, कुछ राजनीतिक कार्यकर्ताओं को जवाब दे रही थीं, उस जज्‍बे ने, उनकी हिम्‍मत को सलाम करने पर मजबूर कर दिया।

और जब बुधवार को खबर आई कि सरकार ने उनके स्‍कूल को अपग्रेड करने की मांग मान ली है। तो टीवी पर उसके दृश्‍य देखकर मैंने बच्चियों की खुशी और उनकी जीत में सहज ही अपने को भी शामिल पाया। दरअसल यह जीत केवल गोठड़ा गांव की बच्चियों की ही नहीं पूरे समाज की है, जिसका नेतृत्‍व उन बच्चियों ने किया जो रोज प्रताड़ना का शिकार हो रही थीं। इस मामले में राजनीति ढूंढने वालों को यह बता दिया जाना जरूरी है कि गांव की बच्चियां आज से नहीं कई सालों से अपनी मांग उठाती आई हैं। यानी हर दल की सरकार के सामने यह बात आई होगी लेकिन किसी ने उसे गंभीरता से नहीं लिया। वर्तमान सरकार ने थोड़ा विलंब से ही सही मामले की गंभीरता को समझा और मामले पर कार्रवाई की।

जैसाकि मैंने कहा देश में लड़के और लड़कियों के अनुपात के लिहाज से हरियाणा की स्थिति अच्‍छी नहीं है। समाज की रूढि़यों और कट्टरपंथी पुरुष प्रधान मानसिकता ने इस स्थिति को और गंभीर बनाया है। यही कारण था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने महत्‍वाकांक्षी कार्यक्रमबेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का ऐलान 22 जनवरी 2015 को हरियाणा के पानीपत से ही किया था। इससे ज्‍यादा खुशी की बात और क्‍या हो सकती है कि उसी हरियाणा की बेटियों ने खुद को बचाने और पढ़ाने के लिए अपनी लड़ाई खुद लड़ी और उसमें विजय भी पाई।

लेकिन बात यहीं खत्‍म नहीं होती। गोठड़ा गांव की लड़कियों ने भावी पीढ़ी को एक दिशा भी दी है। एक तरफ इसी देश का हिस्‍सा है कश्‍मीर, जहां स्‍कूली बच्‍चे- बच्चियां पता नहीं कौनसे कारणों से हाथ में पत्‍थर लेकर सड़कों पर उतर रहे हैं, वहीं हरियाणा की बच्चियां खुद को दांव पर लगाते हुए अपना संघर्ष कर रही हैं। इन बच्चियों को इसलिए भी सलाम कि उन्‍होंने संघर्ष तो किया लेकिन न तो अपनी जान देने का तरीका अपनाया और न ही हाथ में पत्‍थर थामे। उन्‍होंने पत्‍थर क्‍या बल्कि चट्टान जैसी हिम्‍मत दिखाई, लेकिन हाथ से किताब और उस किताब की शिक्षा को गिरने नहीं दिया। काश! गोठड़ा की इन शिक्षा सेनानियों से देश के बाकी बच्‍चे और सरकारें भी कोई सबक ले पातीं…

और चलते चलते एक सवाल… ये एंटी रोमियो स्‍क्‍वॉड का विचार क्‍या केवल उत्‍तरप्रदेश तक ही सीमित रहेगा? बच्चियों का जीना हराम करने वाले शोहदे तो हर जगह और हर संप्रदाय में मौजूद हैं, उनका क्‍या?

 

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