नतीजे बच्‍चों के हैं, लेकिन अब परीक्षा आप की है…

जिसे बारम्‍बार देश का भविष्‍य बताया जाता रहा है उस नौजवान पीढ़ी के लिए ये दिन उल्‍लास के साथ-साथ काफी तनाव भरे हैं। जी हां, से सालाना परीक्षा परिणामों के दिन हैं और परिणाम चाहे जो भी आए, ये दिन बच्‍चों को भरपूर तनाव दे जाते हैं। यह तनाव दसवीं और बारहवीं कक्षा के परिणामों के मामले में और ज्‍यादा होता है क्‍योंकि किशोरावस्‍था में बच्‍चे भावनात्‍मक और मानसिक रूप से अधिक संवेदनशील हो जाते हैं।

शुक्रवार को मध्‍यप्रदेश बोर्ड की दसवीं और बारहवीं परीक्षा के परिणाम मुख्‍यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के निवास पर घोषित किए गए। ऐसा पहली बार हुआ कि परीक्षा के नतीजों का ऐलान मुख्‍यमंत्री के घर पर किया गया हो। सरकार के इस फैसले पर तरह-तरह की चर्चाएं हो सकती हैं, लेकिन आज ऐसी चर्चाएं मेरा विषय नहीं हैं।

मुख्‍यमंत्री ने नतीजों का ऐलान करते हुए सफल होने वाले विद्यार्थियों, उनके शिक्षकों और अभिभावकों को बधाई दी, लेकिन जो सफल नहीं हो पाए उनके लिए शिवराज ने कुछ अहम बातें कहीं। उन्‍होंने कहा कि सरकार बच्चों को कभी निराश नहीं होने देगी। हम उनके सपनों को मरने नहीं देंगे, उम्मीदों को टूटने नहीं देंगे। यह सफलता एक पड़ाव मात्र है, मंजिल नहीं।

दरअसल परीक्षा परिणामों के तनाव के चलते देश भर में बच्‍चों की आत्‍महत्‍या के मामले काफी बढ़े हैं। अकेले मध्‍यप्रदेश में पिछले 15 सालों में (2001 से 2016 तक) 1147 छात्र छात्राओं ने आत्‍महत्‍या की है। इसमें भी चिंताजनक बात यह है कि इनमें से ज्‍यादातर बच्‍चे 10 से 18 वर्ष के हैं। यानी कच्‍ची उम्र के वे बच्‍चे, जिन्‍हें देश का भविष्‍य कहा जाता है, परिस्थितियों से लड़ने में खुद को असमर्थ पा रहे हैं।

मध्‍यप्रदेश संभवत: अकेला ऐसा राज्‍य है जिसने इस समस्‍या की गंभीरता को समझते हुए विधानसभा की एक समिति बनाई थी। इस समिति का नाम ही ‘’छात्रों द्वारा मानसिक तनाव के कारण आत्‍महत्‍या किए जाने संबंधी समस्‍या के समाधान हेतु गठित समिति’’ था। वर्तमान महिला एवं बाल विकास मंत्री अर्चना चिटनिस की अध्‍यक्षता वाली इस समिति ने गत मार्च में बजट सत्र के दौरान अपनी रिपोर्ट सौंपी थी, जिसमें समस्‍या से निपटने के लिए 31 सुझाव दिए गए हैं। यह रिपोर्ट आप इस लिंक पर देख सकते हैं-mpvidhansabha.nic.in/suirephin240317.pdf

इस रिपोर्ट की कितनी सिफारिशें अमल में लाई गई हैं और कितनी लाई जाना हैं, इसकी कोई स्‍पष्‍ट जानकारी मेरे पास फिलहाल नहीं है। लेकिन पिछले साल से मध्‍यप्रदेश ने इस दिशा में एक अच्‍छा काम शुरू किया है। परीक्षा में असफल होने वाले छात्रों के लिए रुक जाना नहींयोजना बनाई गई है। 10वीं और 12वीं की वार्षिक परीक्षा में अनुत्‍तीर्ण या अनुपस्थित रहने वाले छात्र इस योजना के तहत संबंधित विषयों की दुबारा परीक्षा दे सकते हैं। ऐसी पहली परीक्षा जून माह में होगी और उससे पहले सभी संबंधित छात्रों के लिए विशेष कक्षाएं लगाई जाएंगी।

दुबारा परीक्षा देने के बावजूद यदि कोई छात्र सफल नहीं हो पाता तो उसे फिर अक्‍टूबर नवंबर में ऐसी ही परीक्षा देने का अवसर मिलेगा। इन विशेष अवसरों की सबसे खास बात यह है कि इनमें छात्रों को सारे विषयों की परीक्षा देने के बजाय केवल उन्‍हीं विषयों की परीक्षा देनी होगी जिनमें वे अनुत्‍तीर्ण हुए हैं। किसी कारणवश परीक्षा में हिस्‍सा न ले पाने वाले अनुपस्थित छात्रों को भी इस योजना का लाभ देकर बहुत बड़ी सुविधा दी गई है।

यानी सरकार की ओर से जो संभव है, उस दिशा में कदम उठाए जा रहे हैं। अब बारी समाज की है। सबसे पहले तो वह बच्‍चों के बीच इस योजना का अच्‍छी तरह प्रचार करे, इसे पूरी ताकत से चर्चा का विषय बनाए। हम अपने परिजनों और पास पड़ोस के ऐसे बच्‍चों की जानकारी रखें जिन्‍होंने 10वीं और 12वीं की परीक्षा दी है। उन परिवारों व बच्‍चों से इस विकल्‍प को साझा किया जाए ताकि असफल होने वाले बच्‍चों में निराशा के बजाय उम्‍मीद पैदा हो। उनमें अपना जीवन समाप्‍त करने जैसा आत्‍मघाती कदम उठाने के बजाय चुनौतियों से लड़ने का भाव जगे।

परीक्षा परिणाम आने के बाद से ही वे बुरी खबरें भी आना शुरू हो गई हैं जो बच्‍चों में निराशा की पराकाष्‍ठ को दर्शाती हैं। ऐसी खबरों को चर्चा का विषय न बनाकर बच्‍चों के बीच विकल्‍प की बात की जाए, उनके लिए उपलब्‍ध अवसरों की बात की जाए। उदाहरण के लिए असफल छात्रों को बताया जा सकता है कि पिछले सालरुक जाना नहीं योजना में फिर से परीक्षा देकर 68000 विद्यार्थी पास हो गए थे। यदि कोशिश करें तो वे भी जरूर पास होंगे।

छात्र-छात्राओं द्वारा परीक्षा में अपेक्षित सफलता न मिलने के बाद आत्‍मघाती कदम उठाना, उनमें पैदा होने वाली हीन भावना और आत्‍मविश्‍वास की कमी का परिचायक है। इसके निवारण के लिए बहुत से उपायों और विशेषज्ञ सलाहों की बात की जा सकती है। लेकिन मैं तो एक मोटी से बात जानता हूं कि यदि परीक्षा परिणामों के दो दिन पहले से लेकर दस दिन बाद तक माता पिता अपने बच्‍चों के साथ रहें, तो ऐसी घटनाओं को बहुत हद तक रोका जा सकता है।

ये ही वे दिन होते हैं जब बच्‍चों के मनोभाव को पढ़कर उससे संवाद किया जाना चाहिए। उन्‍हें अकेला छोड़ने के बजाय उन्‍हें साथ रखकर या उनके साथ रहकर, उनसे बात करके, आप ऐसी किसी भी अनहोनी को टाल सकते हैं। बाद में पछताने और हाथ मलने के बजाय हम बच्‍चों के लिए सिर्फ ये 12 दिन ही निकाल लें तो परिवार की खुशियां और देश का भविष्‍य दोनों खत्‍म होने से बचा सकते हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here