बहुजन समाज पार्टी से निकाले गए नसीमुद्दीन जब गुरुवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे थे तो मैं उनके आरोपों से परे जाकर यह सोच रहा था कि भारतीय राजनीति का यह कौनसा समय है जब भारतीय जनता पार्टी से इतर हर दल में या तो अंदरूनी घमासान चल रहा है या पार्टी नेतृत्व पर सवाल उठाए जा रहे हैं।
यह सोचते-सोचते मुझे ‘राजा नंगा है’ वाली प्रसिद्ध कहानी याद आ गई। उस कहानी में तो एक बच्चा राजा के ‘विशिष्ट कपड़ों’ की असलियत उजागर करते हुए सच बोल देता है, लेकिन इन दिनों भारतीय राजनीतिक दलों में जो कहानी चल रही है उसमें परिवार के बड़े-बड़े लोग ही मुखिया को नंगा साबित करने पर तुले हैं। ऐसा लगता है कि हर पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को संदिग्ध बनाने का कोई सोचा विचारा अभियान चला हुआ है।
नसीमुद्दीन से ठीक पहले दिल्ली में आम आदमी पार्टी सरकार के पूर्व मंत्री कपिल मिश्रा ने ‘आप’ के मुखिया और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर कथित रूप से दो करोड़ रुपये लेने के साथ ही कई अन्य संगीन आरोप लगाए थे। मिश्रा का यह भी कहना था कि केजरीवाल सरकार के ही एक मंत्री सतेन्द्र जैन ने मुख्यमंत्री के साडू के लिए 50 करोड़ रुपए की एक लैंड डील करवाई।
उधर नसीमुद्दीन ने भी मायावती पर आरोप लगाया है कि उन्होंने 50 करोड़ रुपये मांगे। काफी देर तक चली प्रेस कान्फ्रेंस में नसीमुद्दीन ने मानो मायावती पर आरोपों की बौछार ही कर डाली। उन्होंने एक और संगीन आरोप यह लगाया कि बहनजी ने उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में हुई अपनी करारी हार के संदर्भ में मुस्लिमों को ‘गद्दार’ कहा।
अब आप जरा इन घटनाओं का विश्लेषण कीजिए। बारीकी से देखने पर आपको इनमें कई समानताएं भी मिलेंगी और इनकी तरंगों की दिशा भी पता चलेगी। सबसे बड़ी बात तो यह है कि चाहे कपिल मिश्रा हों या नसीमुद्दीन, दोनों ने खुद पर पार्टी नेतृत्व द्वारा एक्शन लिए जाने के बाद ये आरोप लगाए हैं। यानी जब तक ये लोग पार्टी या सरकार में थे तब तक शायद सब कुछ ठीक चल रहा था। जैसे ही इन्हें मंत्रिमंडल अथवा पार्टी से निकाला गया, इनकी नजर में नेतृत्व ‘काला’ हो गया।
लेकिन बात सिर्फ इतनी सी नहीं है। चाहे दिल्ली हो या उत्तरप्रदेश, आम आदमी पार्टी हो या बहुजन समाज पार्टी, दोनों में चल रहा ताजा घटनाक्रम पार्टी के ‘कोर इश्यूज’ पर चोट करने और पार्टी लीडरशिप के चेहरे पर स्याही पोत देने वाला है। नहीं तो क्या कारण है कि कपिल मिश्रा ने सीधे अरविंद केजरीवाल पर दो करोड़ रुपए लेने और अपने निकट रिश्तेदार के लिए बड़ी लैंड डील करवाने का आरोप लगाया। क्यों नसीमुद्दीन ने मायावती पर 50 करोड़ रुपए की मांग करने और ‘मुस्लिमों को गद्दार’ कहने का आरोप जड़ा।
सब जानते हैं कि आम आदमी पार्टी और खुद अरविंद केजरीवाल ने भ्रष्टाचार का विरोध करके ही जनता में अपनी पैठ बनाई थी। इसी कोर इश्यू के सहारे वे सरकार बनाने तक की मुहिम में कामयाब हुए हैं। अब यदि केजरीवाल ही भ्रष्ट साबित हो जाते हैं तो जरा सोचिए कि आम आदमी पार्टी की दशा और उसका राजनीतिक भविष्य क्या होगा? यही हाल मायावती का है। उत्तरप्रदेश के विधानसभा चुनाव में उन्होंने सबसे बड़ा दांव ही मुस्लिम वोटों पर खेला था। बसपा ने सबसे ज्यादा टिकट मुस्लिमों को दिए थे। और यह काम बहनजी ने अपने परंपरागत दलित वोट की कीमत पर किया था। अब यदि यह बात फैलती है कि बहनजी मुस्लिमों को ‘गद्दार’ कह रही हैं तो कप्ना करिए, क्या मुस्लिम मतदाता भविष्य में उनके साथ खड़ा होने की सोचेगा?
यह बात सिर्फ ‘आप’ या ‘बसपा’ के साथ ही नहीं है। जहां जहां भी एक व्यक्ति के वर्चस्व वाली या एक खास चेहरे के पीछे खड़ी रहने वाली पार्टी है, सभी में इस तरह की गतिविधियां अचानक बढ़ गई हैं। फिर चाहे वह ममता की तृणमूल कांग्रेस हो या तमिलनाडु की एआईडीएमके, नवीन पटनायक का बीजू जनता दल हो या लालू का राजद… सभी में कहीं न कहीं ऐसी गतिविधियां हो रही हैं जिनसे नेतृत्व की छवि ध्वस्त हो जाए। रहा सवाल कांग्रेस जैसी पार्टी का, तो वह अपने ही कारणों से खुद की फजीहत कराए बैठी है।
मैं यह नहीं कहता कि इन दलों में ये गतिविधियां कोई करवा रहा है। इनमें से कई परिस्थितिजन्य हो सकती हैं। लेकिन जब एक बार दीवार में दरार आ जाती है तो पूरी दुनिया को घर के भीतर झांकने का मौका मिल जाता है। जिंदगी में ‘मौका और दस्तूर’ होने पर लोग वैसे भी नहीं चूकते, फिर यह तो राजनीति है। आज की तारीख में यदि आपको युद्ध जीतना है तो बाहुबली और कटप्पा दोनों ही आपके पास और आपके ही भरोसे के होने चाहिए।
ऐसा लगता है कि भाजपा ने पिछले लोकसभा चुनाव में ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ का जो नारा दिया था, तीन साल में वह खुद-ब-खुद अपना दायरा बढ़ाते बढ़ाते ‘विपक्ष मुक्त भारत’ की ओर बढ़ चला है। खुद की ताकत बढ़ाने के साथ, विपक्ष की कमजोरियों को उजागर करने का जो हुनर भाजपा के पास है, वैसा हुनर और वैसी रणनीति आज देश के किसी भी दल के पास नहीं दिखती। विपक्ष, भाजपा का मुकाबला करने के लिए ‘महागठबंधन’ जैसी बड़ी-बड़ी बातें जरूर कर रहा हो,लेकिन अलग-अलग दलों के शीर्ष चेहरों पर यदि ऐसे ही कालिख पुतती रही, तो तय है कि कोई किसी के साथ जाना तो दूर, उसकी तरफ देखना भी पसंद नहीं करेगा।
भाजपा को ऐसे ‘अच्छे दिन’ और कब मिलेंगे…