बोतल तो खाली हो जाएगी, उसकी गंध कैसे दूर होगी?

हाल ही में मैंने मध्‍यप्रदेश में शराबबंदी को लेकर चल रही उठापटक की बात की थी। उसमें सवाल उठाया था कि जब सरकार खुद नीलामी में बोली लगवाकर शराब की दुकानों का ठेका देती है तो फिर विधिवत पैसा देकर दुकान खोलने वालों को या तो कारोबार करने की छूट व सुरक्षा दी जाए या फिर पूर्ण शराबबंदी की एकमुश्‍त घोषणा कर सारी दुकानें बंद कर दी जाएं। इनमें से किसी एक विकल्‍प का चुनाव तो करना ही होगा, दोनों बातें साथ नहीं चल सकतीं।

मेरे इस सवाल पर ‘ऑन रिकार्ड’ और ‘ऑफ रिकार्ड’ दोनों तरह की प्रतिक्रियाएं मिली हैं। मजाक में कुछ लोगों ने यह भी कहा कि पंडितजी आपका न पीने से लेना देना है और न पिलाने से, फिर काहे आप इस चक्‍कर में पड़ते हैं। किसी ने कहा आप दुकान चलवाने की बात कर रहे हैं, अरे दुकान तो चल ही रही है,इनकी नहीं चल रही तो उनकी चल रही है, आप कतई चिंता न करें…

लेकिन मजाक अपनी जगह, मूल बात यह है कि बिना कोई ठोस रणनीति बनाए ऐसे मुद्दे उछालकर समाज में बैठे बिठाए एक नए तरह की अशांति पैदा क्‍यों होने दी जा रही है। शराबबंदी का नारा बहुत लोकलुभावन लगता है, लेकिन खुद सरकार की नीतियों और कानून कायदो में ही इसे लेकर इतने झोल हैं कि एक गुफा से निकलेंगे तो दूसरी सुरंग में जा गिरेंगे।

यकीन न आए तो कुछ उदाहरण ले लीजिये। जैसे सरकार खुद टेंडर निकालकर शराब के ठेके और अहातों की अनुमति देती है। लोग इन अहातों में बैठकर शराब पीते हैं। वहां शराब का सेवन करना कोई अपराध नहीं है, क्‍योंकि उसके लिए बाकायदा शासन प्रशासन ही पैसे लेकर इजाजत देता है। लेकिन अहाते से बाहर कदम रखते ही वह व्‍यक्ति अपराधी बन जाता है या बना दिया जाता है।

अब हर किसी की हैसियत तो महंगे बार में बैठकर शराब पीने की होती नहीं, इसलिए लोग अहातों की सुविधा का लाभ लेते हैं। बार में जाने वाले अधिकतर चार पहिया गाड़ी मालिक होते हैं, वे पीते हैं और गाड़ी में बैठकर निकल जाते हैं। लेकिन अहाते में जाने वाले या तो साइकल वाले होते हैं या बहुत हुआ तो स्‍कूटर या मोटरसायकल वाले। चूंकि शराब पीकर गाड़ी चलाना अपराध है इसलिए वे धर लिए जाते हैं। पुलिस उनसे अलग वसूली करती है।

अब व्‍यावहारिक पक्ष देखिए। आपने शराब ठेका और अहाता कानूनी तौर पर लगवाया, आदमी ने उसमें बैठकर कायदे से शराब पी, तो उसके बाद वह उड़कर तो अपने घर जाएगा नहीं। वह अपनी साइकल या किसी टूव्‍हीलर से ही सड़क पर निकलेगा। लेकिन चूंकि वह शराब पीकर वाहन चला रहा है इसलिए कानून का उल्‍लंघन कर रहा है। तो फिर आप ये अहाते खोलने की इजाजत देते ही क्‍यों हैं? पुलिस को अवैध वसूली का मौका देकर भ्रष्‍टाचार का एक बड़ा फ्रंट तो आप खुद ही खोले बैठे हैं।

और फिर आप लोगों की शराब छुड़वाना चाहते हैं या शराब दुकानें बंद करवाना चाहते हैं। क्‍या आप दावे से कह सकते हैं कि शराब दुकानें बंद करवाने के बाद लोग शराब पीना बंद कर देंगे। निश्चित तौर पर ऐसा कभी नहीं होगा, ऐसा कहीं हो भी नहीं पाया है। जिन राज्‍यों ने शराबबंदी की है वहां के अनुभव पूरी दुनिया के सामने हैं। फर्क सिर्फ इतना पड़ता है कि वहां इंसानों के बजाय चूहों के शराब पी लेने की खबरें आ जाती हैं। और हम सभी जानते हैं कि ये चूहे कौन हैं और इनके बिल कहां हैं?

मैं शराब का समर्थक कतई नहीं हूं। मैं तो चाहता हूं कि आप तत्‍काल शराबबंदी का ऐलान करें। लेकिन उसके साथ ही मैं यह भी जरूर जानना चाहूंगा कि शराबबंदी के बाद पैदा होने वाले परिणामों को लेकर आपकी रणनीति क्‍या होगी? क्‍योंकि जैसे ही आपने शराबबंदी की, शराब का अवैध कारोबार शुरू हो जाएगा। वह शराब निश्चित रूप से घटिया क्‍वालिटी की होगी, घटिया होगी तो सस्‍ती भी होगी यानी लोग ज्‍यादा पिएंगे। और मान लो शराब नहीं मिली, तो क्‍या गारंटी है कि लोग ड्रग्‍स जैसे दूसरे नशे की ओर नहीं मुड़ेंगे, जो ज्‍यादा खतरनाक होगा। इस पूरे गोरखधंधे में नया माफिया पनपेगा। भ्रष्‍टाचार के नए स्रोत बनेंगे। सरेआम होने वाली बिजली चोरी तो हम रोक नहीं पाते, क्‍या अवैध शराब का कारोबार रोक पाएंगे?

और शराब से होने वाली आमदनी का क्‍या करेंगे। राजनीतिक सेहत के लिए यह बयान मुफीद हो सकता है कि हमें ऐसी आमदनी नहीं चाहिए। लेकिन खजाने की सेहत के लिहाज से यह बयान नुकसानदेह है, यह सभी जानते हैं। आज मध्‍यप्रदेश में शराब से करीब 9 हजार करोड़ रुपए की आय होती है, यह आय यदि बंद हो गई तो इसके दो नतीजे होंगे। पहला यह कि इसका विकल्‍प खोजा जाएगा, यानी दूसरी मदों पर टैक्‍स बढ़ेगा। मतलब अभी तक जो पैसा शराबियों की जेब से निकाला जा रहा था उसकी भरपाई भी उन लोगों को करना पड़ेगी जिनका शराब से कोई वास्‍ता नहीं।

दूसरा नतीजा और घातक है। सरकार की व्‍यवस्‍था खत्‍म हो जाने से पीने वाले तो खत्‍म नहीं होंगे। यानी यह नौ हजार करोड़ का धंधा सीधे सीधे अवैध शराब माफिया के हाथ चला जाएगा। जरा कल्‍पना कीजिए कि नौ हजार करोड़ का सालाना कारोबार करने वाले माफिया की ताकत कितनी बड़ी होगी। जाहिर है इस माफिया में राजनीति और कानून व्‍यवस्‍था में लगे लोगों की भी भागीदारी होगी। तो क्‍या ये सारा खेल उसके लिए रचा जा रहा है?

मेरी सदेच्‍छाएं सरकार की सदेच्‍छाओं के साथ हैं, लेकिन बोतल खाली हो जाने बाद भी उसमें में बसी गंध की तरह ये सवाल तो बने रहेंगे। इस गंध का दूर होना भी तो जरूरी है…

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