मैं अंधविश्वासी नहीं हूं, लेकिन फिर भी कभी-कभी लगता है कि कुछ घटनाओं के होने का समय ऐसे खास चौघडि़ये से जुड़ा होता है कि वे कभी मरती नहीं। कहने को हमारे यहां कहा जाता है कि समय सारे घाव भर देता है, लेकिन इन खास चौघडि़ये वाली घटनाओं के बारे में आप कह सकते हैं कि इनके घाव तो समय भी नहीं भर पाता। समय समय पर यह घाव रह रहकर रिसता रहता है।
ऐसी ही एक घटना मध्यप्रदेश का व्यावसायिक परीक्षा मंडल यानी व्यापमं घोटाला है। पिछले करीब एक दशक से यह मध्यप्रदेश के राजनीतिक और प्रशासनिक हलकों को मथ रहा है। बीच-बीच में ऐसा लगता है कि मामला ठंडा पड़ गया, लेकिन सत्ता के गलियारों में स्थायी डेरा डाले पड़ा व्यापमं का भूत फिर अचानक किसी दिन खड़ा होकर लोगों को डराने लगता है।
जिस तरह इस घोटाले के कई एंगल हैं, उसी तरह इससे प्रभावित होने वाले लोग भी अलग अलग हलकों से आते हैं। लेकिन अभी तक व्यापमं घोटाले का सबसे ज्यादा नुकसान राज्य में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी को ही उठाना पड़ा है। उसमें भी खासतौर से वर्तमान मुख्यमंत्री शिवराजसिंह को। राजनीति की चौंसर पर व्यापमं के मोहरों को चलाते हुए शिवराज के पॉलिटिकल कॅरियर को कई बार झटके दिए गए।बीच-बीच में ऐसा लगा भी कि कहीं सचमुच व्यापमं का यह भूत भाजपा में तेजी से उभरते नेता शिवराज का कॅरियर ही न ले डूबे। लेकिन शिवराज ने हर बार ऐसे हमलों का डटकर मुकाबला किया।
उसी व्यापमं घोटाले को लेकर बुधवार को जो नया मोड़ आया है वह अब तक भाजपा पर हमलावर हो रही कांग्रेस और अन्य व्हिसलब्लोअर्स के लिए मुसीबत पैदा करने वाला है। कांग्रेस और अन्य व्हिसलब्लोअर्स ने सरकार को यह कहते हुए कठघरे में खड़ा किया था कि उसने मुख्यमंत्री शिवराजसिंह को बचाने के लिए व्यापमं घोटाले से संबंधित दस्तावेजों के साथ छेड़छाड़ की है। संबंधित हार्ड डिस्क में मौजूद सबूतों में से शिवराज का नाम हटा दिया गया है।
इस मामले को लेकर कांग्रेस के नेता दिग्विजयसिंह ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दायर की थी। लेकिन कुछ दिन पहले मामले की जांच कर रही सीबीआई ने कोर्ट से कहा था कि जांच में हार्ड डिस्क से किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ के सबूत नहीं मिले हैं। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने दिग्विजयसिंह की याचिका को खारिज करते हुए मामले की जांच मौजूदा हार्डडिस्क के आधार पर ही करने को कह दिया था।
उसके बाद व्हिसल ब्लोअर प्रशांत पांडे ने एक और याचिका सुप्रीम कोर्ट में लगाई। इसके जवाब में सीबीआई ने कहा कि पांडे की याचिका में लगभग वे ही आरोप हैं जो दिग्विजयसिंह की याचिका में थे और कोर्ट पहले ही ऐसे आरोपों का निपटारा कर चुका है। हैदराबाद की फोरेंसिक लेबोरेटरी ने पांडे द्वारा दी गई हार्ड डिस्क और पेन ड्राइव की जांच में भी पाया है कि सबूतों से कोई छेड़छाड़ नहीं हुई।
‘सीबीआई इस नतीजे पर पहुंची है कि हार्ड डिस्क के साथ छेड़छाड़ के आरोप झूठे हैं और इस तरह के आरोप लगाने वाले कुछ लोग पेन ड्राइव में झूठे डिजिटल रिकॉर्ड गढ़ने और झूठी शिकायत करने में लिप्त पाए गए। इस तरह के झूठे आरोप लगाने और फर्जी दस्तावेज बनाने के लिए सीबीआई कानून के मुताबिक दोषियों के खिलाफ जरूरी कदम उठाएगी।’
निश्चित रूप से भाजपा और उससे भी बढ़कर शिवराजसिंह के लिए यह बहुत बड़ी राहत की खबर है। भाजपा यदि इसे अपनी जीत के रूप में देख रही है तो उसका ऐसा करना स्वाभाविक है। क्योंकि फरवरी 2015 में दिग्विजय सिंह ने एक ऐसी पेन ड्राइव अपने पास होने का दावा किया था, जिसमें कथित तौर पर शिवराज और व्यापमं केस के कुछ आरोपियों के बीच भेजे गए संदेश होने की बात कही गई थी।
व्यापमं में मूल पेंच ही शिवराजसिंह और उनके परिजनों की कथित केंद्रीय भूमिका को लेकर था। कांग्रेस ने इसी बात को पिछले विधानसभा और बाद में लोकसभा चुनाव में भी मुद्दा बनाया था। वह समय समय पर व्यापमं को शिवराज के खिलाफ हथियार के तौर पर इस्तेमाल करती रही है। लेकिन अब भाजपा के हमलावर होने का समय है। गुरुवार को प्रदेश के तीन मंत्रियों ने भोपाल में सीबीआई को ज्ञापन देकर दिग्विजयसिंह, प्रशांत पांडे और डॉ. आंनद राय के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज करने की मांग करके इसकी शुरुआत कर डाली है।
व्यापमं का मामला जिन दिनों अपने चरम पर था, उन दिनों किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि एक दिन ऐसा भी आएगा कि भाजपा पर चलाया गया यह हथियार मुड़कर खुद कांग्रेस को ही आ लगेगा। मुझे याद है फरवरी 2015 का वो दिन जब भोपाल में कांग्रेस के तमाम दिग्गज नेताओं दिग्विजयसिंह, कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया,सुरेश पचौरी, तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष सत्यदेव कटारे के साथ ही सुप्रीम कोर्ट के नामी गिरामी वकील केटीएस तुलसी और विवेक तन्खा ने प्रेस कान्फ्रेंस कर दावा किया था कि सरकार ने व्यापमं घोटाले से जुड़ी हार्ड डिस्क और एक्सल शीट में हेराफेरी की है। हमारे पास इसके पुख्ता सबूत हैं और सुप्रीम कोर्ट में यह मामला साबित कर दिया जाएगा। कांग्रेस की ओर से कपिल सिब्बल जैसे वकीलों ने कोर्ट में पैरवी की थी। लेकिन वहां बात साबित नहीं हो सकी।
आज परिस्थिति बदली हुई है। बरसों से व्यापमं को लेकर लहूलुहान होती आई भाजपा के लिए ये कांग्रेस को उसी की तलवार से लहूलुहान करने के दिन हैं। हालांकि कोर्ट से अंतिम फैसला आना बाकी है, लेकिन अब व्यापमं पर राजनीति भाजपा करेगी। देखते जाइए अगले साल होने वाले चुनाव तक यह व्यापमं का भूत क्या क्या गुल खिलाता है।