धरती बचाने, मानव का आविष्कार करना होगा

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राव श्रीधर

मानव जाति अगर मानव को खोज ले तो दूसरी धऱती खोजने की जरूर ही नहीं पड़ेगी। अगर मानव अपने मौलिक आचरण के साथ मिल गया तो सारी समस्याओं का समाधान मिल जाएगा। सारे सुखों की खोज हो जाएगी। लेकिन उसके लिए दुनिया के तमाम विद्वानों को अपने अहंकार को किनारे रखकर भारत की परंपराओं में शोध करना होगा।

जिस दिन ताकतवर देशों का अहंकार टूटेगा उस दिन ये धरती स्वर्ग हो जाएगी। मानव देवता हो जाएगा और पूरा विश्व परिवार हो जाएगा। भारत की परंपरा हजारों सालों से वसुधैव कुटुंबकम की ओर इशारा कर रही है लेकिन दुर्भाग्य कि विज्ञान अपने अधूरेपन से उबर ही नहीं पा रहा है।

भारत का वैदिक दर्शन, भारत का परंपरागत ज्ञान और विज्ञान आज इसलिए प्रासंगिक हो गया है क्योंकि दुनिया के महान भौतिकशास्त्री स्टीफन हॉकिंग ने पूरी मानवजाति को आगाह करते हुए कहा कि खुद को बचाए रखने के लिए सभी मानव 100 साल के भीतर पृथ्वी को छोड़कर अन्य किसी ग्रह पर चले जाएं। उन्होंने ये बात जलवायु परिवर्तन, बढ़ती आबादी और उल्का पिडों के टकराव से पैदा होने वाले हालात से बचने के लिए कही है।

हॉकिंग की इस बात से ये स्पष्ट हो गया कि जो विज्ञान मानव को सुख नहीं दे सकता, जिस विज्ञान में जलवायु परिवर्तन, बढ़ती आबादी और उल्का पिंडों के टकराव को रोकने की हैसियत ही नहीं हैं उसे कम के कम अब ये स्वीकार कर लेना चाहिए कि प्रकृति को, अस्तित्व को जानने की उसकी समझ ही विकसित नहीं हो सकी है।

बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री ‘एक्पेडिशन न्यू अर्थ’ में स्टीफन हॉकिंग और उनके स्टूडेंट क्रिस्टोफ गलफर्ड बाहरी दुनिया में मानव जाति के लिए जीवन की तलाश करते नजर आएंगे। पिछले महीने भी हॉकिंग ने चेताया था कि तकनीकी विकास के साथ मिलकर मानव की आक्रामकता ज्यादा खतरनाक हो गई है। यही प्रवृति परमाणु या जैविक युद्ध के जरिए हम सबका विनाश कर सकती है। एक वैश्विक सरकार ही हमें इससे बचा सकती है। मानव बतौर प्रजाति जीवित रहने की योग्यता खो सकता है।

हॉकिंग की सोच अभी वैश्विक सरकार तक ही पहुंची है लेकिन भारत की परंपरा हजारों सालों से वैश्विक परिवार को ओर इशाऱा कर रही है। भारत का मानव व्यवहार दर्शन कहता है कि जब तक मानव खुद का अध्ययन नहीं करेगा, खुद को नहीं जानेगा वो दुनिया के किसी भी ज्ञान को पूर्णता के साथ ग्रहण ही नहीं कर सकता है।

इशोपनिषद कहता है कि मानव इस धरती पर सबसे पूर्ण और महत्वपूर्ण इकाई है और इस पूर्णता को समझकर, पूर्णता में शामिल हुए बिना उसकी ये यात्रा पूरी नहीं हो सकती।

“पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।

पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥”

इस दर्शन को विज्ञान की दृष्टि से जानने की जरूरत है।

भारत का दर्शन कहता है मानव शरीर को अपनी जरूरतों के लिए बहुत ज्यादा सुविधा और साधनों की जरूरत नहीं है, लेकिन भौतिक विज्ञान ने पूरी ताकत सुविधा और साधनों को जुटाने में लगा दी, विज्ञान ने अपनी सबसे बड़ी ताकत  बाजारवाद में झोंक रखी है और इस लक्ष्यविहीन और दिशाविहीन प्रगति ने हमें ग्लोबल वार्मिंग की ओर धकेल दिया।

जो यूरेनियम धरती में हजारों फुट गहरे दबा था, जिसकी रेडियो एक्टिवता का असर ये है कि मानव जाति की नस्ल ही खत्म हो जाये, उसे दुनिया के तथाकथित समृद्ध और ताकतवर देशों ने परमाणु बम के तौर पर सजा रखा है। लेकिन उन देशों की इतनी हैसियत नहीं कि वो उसका इस्तेमाल कर सकें, क्योंकि उन्हें पता है जो करेगा वो मरेगा।

खुद पर इतराने वाला भौतिक विज्ञान अब मान रहा है कि धरती खतरे में है, मानव जाति खतरे में हैं। लेकिन भारत का दर्शन कहता है कि ना ये धरती खत्‍म होगी, ना अस्तित्व खत्म होगा। जिस अस्तित्व ने इसे बनाया है, उसे इस अस्तित्व को संभालने का हुनर भी आता है।

लेकिन ये अस्तित्व अपने तरीके से इस धरती को बचाये, इससे अच्छा होगा कि उससे पहले मानव अपनी भूमिका जान ले, समझ ले और सुधर जाये। विज्ञान को प्रकृति के अध्ययन में इस्तेमाल करे ना कि उसके विनाश में। हॉकिंग की चेतावनी को हल्के में लेने की गलती ना करें।

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