मैं सौ टका आपके साथ हूं, बस यह फैसला लागू करवा दें

मेरी इस बात में न तो कोई तंज है और न ही मैं राजनीतिक क्षेत्र में प्रचलित कोई ‘गिरगिटी टाइप’ समर्थन देने की बात कर रहा हूं। मैं सचमुच उस फैसले का स्‍वागत करता हूं जो मध्‍यप्रदेश की राजधानी भोपाल के जिला प्रशासन ने लिया है। और मुझे लगता है कि कुछ हुड़दंगी लोगों या लफंगों को छोड़ दें तो देश के अधिकांश शहरों के ज्‍यादातर लोग इस फैसले का समर्थन ही करेंगे।

फैसला यह है कि भोपाल में आज से यानी 24 अप्रैल से सड़कों पर डीजे नहीं बजाया जा सकेगा। इसके अलावा मैरिज गार्डंस में भी रात दस बजे के बाद डीजे बजाए जाने पर रोक रहेगी। अब बारातों में डीजे बजाया जाना प्रतिबंधित होगा।

मैरिज गार्डन में यदि डीजे का इस्‍तेमाल किया जाता है तो उसके लिए भी सुप्रीम कोर्ट और नैशनल ग्रीन ट्रिब्‍यूनल के मानकों का पालन करना होगा। बारातें अब डीजे के साथ नहीं सिर्फ बैंड बाजे के साथ ही निकल सकेंगी। जहां तक धार्मिक कार्यक्रमों का सवाल है, मंदिरों में होने वाली पूजा अर्चना और मस्जिद में होने वाली अजान के लिए लगाए गए लाउड स्‍पीकारों को इस फरमान से राहत दी जाएगी। (वैसे मैं इससे सहमत नहीं हूं।)

दरअसल हमारे आसपास ‘दिमागफोड़ू’ शोर का दखल दिनों दिन बढ़ता जा रहा है। ‘दिमागफोड़ू’ मैने इसलिए कहा क्‍योंकि अब बात ‘कानफोड़ू’ शोर से आगे निकल चुकी है। अब यह शोर हमारी सुनने की क्षमता को ही नहीं, बल्कि सोचने की क्षमता को भी प्रभावित कर रहा है। जाने अनजाने इस शोर से रूबरू होने वाले बच्‍चे कम उम्र में ही बहरेपन का शिकार हो रहे हैं।

गायक सोनू निगम ने पिछले दिनों लाउडस्‍पीकर पर अजान से होने वाले शोर पर आपित्‍त उठाई थी। मैं न तो इस मामले को सोनू निगम के नजरिये से देखना चाहता हूं न ही अजान के नजरिये से। सोनू निगम का मकसद चाहे जो रहा हो, लेकिन शोर के मुद्दे पर समाज को बात तो जरूर करनी होगी और आज ही करनी होगी। क्‍योंकि यह एक ‘साइलेंट किलर’ की तरह हमारी सेहत को नुकसान पहुंचा रहा है।

हमारे आसपास होने वाले शोर के बारे में सुप्रीम कोर्ट से लेकर नैशनल ग्रीन ट्रिब्‍यूनल तक ने कई बार चेतावनियां दी हैं और समय समय पर दिशानिर्देश भी जारी किए हैं। लेकिन असल जिंदगी में इन दिशानिर्देशों की धज्जियां ही उड़ती रही हैं। शोर के गिरोह और शोर के गुंडे समाज में दिनों दिन बढ़ते जा रहे हैं। यह डेसीबल से फैसले किए जाने का समय है और ऊंची आवाज वाले, लगातार सामान्‍य आवाजों को कुचल रहे हैं। हम राजनीति में धनबल और बाहुबल की तो बहुत बातें करते हैं लेकिन अब समाज में कंठबल भी फैसले करने लगा है।

वैज्ञानिक तथ्‍य की बात करें तो हमारी सामान्‍य बोलचाल में ध्‍वनि की जितनी मात्रा का उपयोग होता है वह 60 डेसीबल तक होती है। यानी आवाज की इतनी तीव्रता हमारे कानों के लिए सहनीय है। इसके बाद लगातार बढ़ता डेसीबल, हमारे कानों और उसके बाद पूरे शरीर को बुरी तरह प्रभावित करता है।

शादी ब्‍याह व अन्‍य समारोहों में बजने वाले डीजे हों या बारात अथवा चल समारोह में निकलने वाले डीजे वाहन, इनका शोर हमें बहरा कर सकता है। एक मोटे अनुमान के मुताबिक 2000 वॉट का एक स्‍पीकर 80 से 100 डेसीबल तक का शोर पैदा करता है। और हम देखते हैं कि चल समारोहों में या अन्‍य धार्मिक आयोजनों में ऐसे 6 से 10 स्‍पीकर तक इस्‍तेमाल किए जाते हैं। कभी कभी तो इनकी संख्‍या और भी अधिक होती है। और ये कई बार 12 से 24 घंटे तक चलते रहते हैं। नवरात्रि जैसे आयोजनों में तो पूरे नौ दिन तक यह शोर घंटों बना रहता है।

चिकित्‍सा विशेषज्ञों के अनुसार 100 डेसीबल का शोर हम अधिकतम 15 मिनिट तक सुन सकते हैं उसके बाद यह हमारी सुनने की क्षमता को प्रभावित करने लगता है। और शोर यदि 130 डेसीबल का हुआ तो उसे हमारे कान सामान्‍य तौर पर सिर्फ 30 सेकंड तक ही सहन करने योग्‍य होते हैं। और कोई भी प्रोफेशनल डीजे सिस्‍टम सामान्‍य तौर पर 130 डेसीबल का ही शोर पैदा करता है।

हम सब जानते हैं कि ऐसे डीजे हमारे आसपास होने वाले चल या अचल समारोहों में कितने घंटे चीखते रहते हैं। यानी जो शोर हमें सिर्फ 30 सेकंड तक ही सुनना चाहिए उसे हम घंटों सुनने के लिए मजबूर किए जा रहे हैं। यह भी वैसा ही है जैसे कोई व्‍यक्ति खुद सिगरेट न पीता हो लेकिन उसके आसपास के लोग चेन स्‍मोकर हों और उनके धुंए से सिगरेट न पीने वाले व्‍यक्ति के फेफड़े भी बीमारी का शिकार हो जाएं।

इस शोर का थमना बहुत जरूरी है। इसे न तो धार्मिक प्रतिष्‍ठा का प्रश्‍न बनाया जाना चाहिए न ही राजनीतिक या सामाजिक प्रतिष्‍ठा का। यह मूलत: हम सबकी, खासकर छोटे बच्‍चों की सेहत का प्रश्‍न है, बुजुर्गों की सेहत का प्रश्‍न है। बीमार लोगों को होने वाली परेशानी का प्रश्‍न है। जवानी या दबंगई के जोश में हम भले ही तेज आवाज वाला डीजे बजाना अपनी शान समझें लेकिन अंतत: वह हमारे अपने ही लोगों को बहुत भारी नुकसान पहुंचा रहा है।

इसीलिए मैंने कहा कि मैं सौ टका भोपाल जिला प्रशासन के फैसले के साथ हूं। मेरी गुजारिश केवल इतनी है कि आपने यदि सोच समझकर फैसला किया है तो आपको समाज का वास्‍ता, इसे पूरी ईमानदारी से लागू करवा दीजिए। सच कहता हूं, बहुत से लोग आपको दुआएं देंगे…

 

 

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