राव श्रीधर
संयोग की बात है कि आज मेरी एक ऐसे लड़के से बात हुई जो दिल्ली में रहकर सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रहा है।
मैंने पूछा क्यों कर रहे हो इतनी तपस्या?
वो फौरन बोला देश के लिए कुछ करना चाहता हूं।
मेरा दूसरा सवाल था, देश की सेवा करना चाहते हो कि अपना भविष्य सुरक्षित करना चाहते हो?
उसने ईमानदारी से कहा हां ये भी एक कारण है।
मैने उससे कहा तो फिर सीधे-सीधे कहो की खुद के लिए कुछ करना चाहते हो, देश को बीच में क्यों ला रहे हो और वो चुप।
ये सिर्फ इस युवक की बात नहीं है, इस देश में जितने भी लोग सिविल सर्विसेज की तैयारी करते हैं, सब का प्राथमिक दृष्टिकोण हूबहू ऐसा ही रहता है। अतीत का दुख, वर्तमान का दर्द और भविष्य के देवत्व में झूलती इनकी जिंदगी ही भारत के विकास की सबसे बड़ी बाधा है। यही वजह है कि प्रशासनिक सेवा में पहुंचते ही व्यक्ति अपने खुद के भविष्य को सुरक्षित करने में इस कदर भिड़ जाता है देश की सेवा, मानव की सेवा सब बातें बन कर रह जाती है।
‘सिविल सर्विस डे’ के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हंसी-हंसी में ही सही लेकिन नौकरशाहों से साफ-साफ कहा कि आप लोगों की जिंदगी दफ्तर की फाइल बन कर रह गई है। प्रधानमंत्री ने अधिकारियों के मुरझाये चेहरे से बात शुरू की और परिवार तक ले गये। परिवार के साथ क्वॉलिटी टाइम बिताने का जिक्र कर उन्होंने कह दिया कि जब आपकी भागमभाग भरी जिंदगी से परिवार ही खुश नहीं तो आप लोग आम लोगों को क्या खुशी दे पायेंगे!
प्रधानमंत्री मोदी की लभगभ हर बात से जीवन का दर्शन झलक रहा था, उन्होंने कहा कि कहीं आप रोबोट की जिंदगी तो नहीं जी रहे। कहीं आप लोगों के अंदर का इंसान खो तो नहीं गया। उन्होंने यहां तक कह दिया कि मसूरी में मिली ट्रेनिंग के दौरान आप लोगों को मिली शिक्षा भी शायद आपको याद नहीं।
अपनी बात को प्रमाणित करने के लिए उन्होंने मसूरी में शिलालेख पर उद्धरित सरदार पटेल के उस वाक्य का जिक्र किया जिसका मज़मून ये है कि आप तब तक स्वतंत्र भारत की कल्पना नहीं कर सकते जब तक आपके पास स्वतंत्रतापूर्वक व्यक्त करने वाली प्रशासनिक व्यवस्था ना हो।
प्रधानमंत्री के मुताबिक व्यवस्था को समझने की जरूरत है, जिसके भीतर का इंसान ही खो गया होगा वो कैसे स्वतंत्र होगा? जिसका स्वयं पर कोई नियंत्रण नहीं हो, जो अव्यवस्था को ही अपनी सेवा का हिस्सा मान बैठा हो। उसके अंदर का जीवन, जिसे हम इंसान कहते हैं वो सत्य, प्रेम और न्याय की मूल भावना से कब का कोसों दूर हो गया है। अब ऐसे लोग उस भारत को कभी नहीं बना सकते जिसकी कल्पना सरदार पटेल और अन्य महापुरुषों ने की है।
सत्य को प्रमाणित करने के लिए मोदी प्रशासनिक सेवा से जुड़े लोगों को उस भाव की ओर ले गये जिस पवित्र भाव से उन्होंने प्रशासनिक सेवा से जुड़ने का मन बनाया था। वैसे ही जैसे मैंने लेख के शुरू में एक युवा के प्रसंग का वर्णन किया। उन्होंने स्पष्ट कहा इस नौकरी में आपका वो परम पवित्र भाव विचार खो गया है।
मोदी के विचारों को समझें तो वो कहते हैं कि असल में आपका वो भाव ही नहीं खोया इस नौकरी में आप का अस्तित्व ही खो गया है। तभी उन्होंने अपनी बात की शुरुआत सभा में मुरझाये बैठे अधिकारियों को इंगित करके कही। फिर उन्होंने कहा कि आपका परिवार ही आपसे प्रसन्न नहीं है। जब परिवार ही प्रसन्न नहीं है तो फिर आप लोग दूसरों की परेशानियों को कैसे समझेंगे?
उन्होंने कहा कि आप अपने बच्चों के उदाहरण बनें, सोशल नेटवर्किंग साइट पर खुद का महिमामंडन आपके अहंकार का प्रतीक है। इसमें सेवा की भावना परिलक्षित नहीं होती।
कुल मिलाकर प्रधानमंत्री ने इस देश की सबसे बड़ी कमजोरी को पकड़ लिया है। वो जान गये हैं कि मानव को मानव बनाये बिना ये देश, ये समाज और ये राष्ट्र समस्यामुक्त नहीं हो सकता। उन्होंने अफसरों से अपील की मसूरी ट्रेनिंग कैंप के ध्येय वाक्य “शीलम परम भूषणम” को कृपया आप लोग अपने जीवन का हिस्सा बनायें, देश अपने आप सुधर जायेगा ।