मयंक मिश्रा
‘बाबू जी… आप… अचानक…यहां कैसे? फोन कर दिया होता। मैं स्टेशन आ जाता आपको लेने। सब ठीक तो है न?’, दरवाजे पर अचानक अपने बाबू जी को देखकर देवेश आश्चर्यचकित हो गया था। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि अचानक बिना बताए बाबू जी उसके घर कैसे आ गए। ‘सारे सवाल दरवाजे पर ही पूछ लेगा या घर के अंदर आने के लिए भी कहेगा? नालायक कहीं का।’ अवधेश प्रसाद ने कड़क आवाज में देवेश से कहा। ‘अरे…मैं तो भूल ही गया। माफ कर दीजिए। आप अंदर आइये।’ यह कहते हुए उसने बाबू जी का सामान उठाया और दोनों घर के अंदर आ गए।
देवेश ने पत्नी सीमा को आवाज लगाते हुए कहा, ‘बाबू जी आए हैं। जरा कुछ मिठाई और पानी लेकर आना।’ कुछ देर खामोश रहने के बाद देवेश ने कहा, ‘बाबू जी आपको किसी तरह का कष्ट तो नहीं हुआ आने में? सफर कैसा रहा? मां को साथ क्यों नहीं लाए? ’ अवधेश प्रसाद ने देवेश के किसी सवाल का जवाब नहीं दिया। कुछ ही देर में सीमा मिठाई और पानी लेकर आई। उसने बाबू जी के पैर छुए और फिर धीरे से देवेश को कमरे से बाहर आने का इशारा किया।
‘बाबू जी फिर से क्यों आ गए हैं? अभी चार महीने पहले ही तो आए थे। कितनी मुश्किल से उन्हें 5 हजार रुपये दिए थे। लगता है फिर से पैसे मांगने आए हैं। मैं कहे देती हूं मुन्ना के जन्मदिन के लिए जो पैसे बचाकर रखे हैं उन्हें बाबू जी को अगर दे दिया तो मुझसे बुरा कोई न होगा। अरे उनके दो और भी बेटे हैं। अकेले आपकी ही जिम्मेदारी थोड़ी न है बार बार पैसे देने की।’ सीमा ने गुस्से में देवेश से कहा। ‘अरे तुम चुप भी रहोगी? बाबू जी ने सुन लिया तो बवाल हो जाएगा। जाओ तुम उनके लिए चाय नाश्ता लाओ। मैं करता हूं बात उनसे। तुम निश्चिंत रहो। इस बार अगर वह पैसे मांगते हैं तो मैं कोई बहाना बना दूंगा।’ देवेश ने सीमा को समझाते हुए कहा।
देवेश बाबू जी के पास जाकर बैठ गया। उसकी यह पूछने की हिम्मत नहीं हो रही थी कि वह चार महीने बाद फिर से उनके पास क्यों आए हैं? सुबह से रात हो गई। लेकिन, बाबू जी ने न तो पैसे मांगे और न ही आने का कारण बताया। अगले दिन सुबह उठकर अवधेश प्रसाद ने देवेश को बुलाया। उन्होंने कहा, ‘बेटा मैं वापस गांव जा रहा हूं। तुम सबसे मिलने का मन किया तो आ गया।’ कुछ देर बाद अपनी जेब से पैसे निकालते हुए देवेश से बोले, ‘बेटा यह कुछ पैसे हैं। इसे रख लो। तुम्हारे काम आएंगे। दरअसल तुम्हारी मां ने पिछले कुछ सालों में पैसे जमा किए थे जिसकी जानकारी मुझे भी नहीं थी। अब जब पुराने नोट बंद हो गए तो तुम्हारी मां ने मुझे इन्हें बैंक खाते में जमा करने के लिए दिए। पिछले कुछ सालों में तुम्हारी मां ने अच्छी खासी रकम जमा कर ली थी। हमें लगा कि बैंक में पैसे रखने की जगह तुम्हें दे दें ताकि तुम्हारे काम आ सकें। और चाहिए होंगे तो गांव आ जाना। हम दोनों का गांव में खर्चा ही कितना है। और वैसे भी जब मुझे जरूरत होती है तो तुम दे ही देते हो।’
यह कह कर अवधेश प्रसाद तो लौट गए। लेकिन, देवेश काफी देर तक गुमसुम बैठा रहा। उसने पैसे गिने तो वह 40 हजार रुपये निकले। देवेश को खुद से घृणा हो रही थी। वह बार बार खुद को कोस रहा था। बाबू जी ने हमारे लिए इतना कुछ किया। अब भी वह हमारे बारे में ही सोचते हैं। और एक मैं हूं कि उन्हें पैसे न देने के लिए बहाना बनाने की सोच रहा था। कितना गलत था मैं। मुझे अपने मां-बाप का सहारा बनना चाहिए। उलटा वे मेरा सहारा बन रहे हैं।
अवधेश प्रसाद ज्यादा पढ़े लिखे नहीं थे। वह गांव में खेतीबाड़ी करते थे। आय सीमित होने के बाद भी उन्होंने अपने तीनों बेटों को इस काबिल बनाया कि वह अपने पैरों पर खड़ा हो सकें।
कई बार ऐेसी स्थिति भी आई कि फसल अच्छी न होने पर अवधेश प्रसाद को अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए पैसे उधार लेने पड़े थे। उन्होंने अपने बेटों को किसी चीज की कभी कमी नहीं होने दी। जैसे जैसे अवधेश प्रसाद की उम्र बढ़ रही थी वह काम पर ज्यादा ध्यान नहीं दे पा रहे थे। उन्होंने अपने खेत किराए पर दे दिए जिससे उन्हें हर महीने एक बंधी बंधाई राशि मिल जाती थी और उनका व उनकी पत्नी का इस राशि से अच्छे से गुजारा चल जाता था। लेकिन, कई बार ऐसी स्थिति आ जाती थी कि उन्हें समय पर किराया नहीं मिलता था। इस वजह से उन्हें कुल छह बार अपने बेटों से पैसे मांगने जाना पड़ा था। तीनों बेटों से उन्होंने कुल दो-दो बार पैसे मांगे थे। लेकिन, उनके बेटों ने कभी भी खुशी खुशी उन्हें पैसे नहीं दिए थे।
अवधेश के जाने के दो दिन बाद देवेश के बड़े भाई सचिन ने उसे फोन किया। देवेश ने सचिन को बता दिया कि बाबू जी उसे 40 हजार रुपये देकर गए हैं। उसने कहा, ‘बाबू जी ने हमेशा हम सब के बारे में सोचा है। एक हम लोग हैं जो जरूरत पडऩे पर भी उनकी मदद न करने के बहाने तलाशते हैं।’ सचिन ने अपनी पत्नी साधना को देवेश की यह बात बताई तो साधना ने कहा, ‘आप भी तो बाबू जी को पैसे देते हैं। लेकिन जब पैसे देने की बारी थी तो उन्हें अपना सबसे लाडला बेटा देवेश ही याद आया। आइंदा आपने बाबू जी को एक भी रुपया नहीं देना है।’ सचिन ने अपने बड़े भाई विकास को भी सारी बात बताई और फिर सचिन और विकास ने यह तय किया कि बारी बारी वह दोनों अपने अपने घरों में बाबू जी को किसी बहाने से बुलाएंगे ताकि देवेश की तरह वह उन्हें भी कुछ पैसे दे जाएं। दोनों के बीच यह तय हुआ कि पहले सचिन बाबू जी को अपने घर बुलाएगा और इसके बाद विकास।
विकास से बात करने के बाद सचिन ने साधना से कहा कि हम किसी बहाने से बाबू जी को इंदौर बुला लेते हैं। फिर हो सकता है वह हमें भी थोड़े पैसे दे जाएं। साधना ने खुशी खुशी हामी भर दी। सचिन ने उसी दिन बाबू जी को फोन किया और कहा, ‘बाबू जी नेहा और बंटी आपको और मां को कई दिनों से याद कर रहे हैं। कुछ दिनों के लिए आप उनके पास इंदौर आ जाते तो वह भी खुश हो जाते। आप ऐसा करिए दो तीन दिन में ही इंदौर आ जाइये।’ अवधेश प्रसाद सचिन की बात सुन कर हैरान हो गए। इससे पहले कभी भी सचिन ने फोन कर उन्हें अपने पास आने के लिए नहीं कहा था। दो बार जब वह उसके पास गए थे तो घर में ऐसे हालात पैदा कर दिए गए थे जिससे उन्हें दो दिन बाद ही गांव लौटना पड़ा था।
अपने पोते-पोती का मोह उन्हें व उनकी पत्नी कमला को इंदौर खींच कर ले गया। सचिन और साधना ने दोनों की खूब सेवा की। रोज उनके लिए खाने की अच्छी अच्छी चीजें बनाई गईं। उन्हें खुश करने में किसी तरह की कमी नहीं छोड़ी। अवधेश प्रसाद और कमला भी बेटे बहू के सत्कार से काफी प्रसन्न थे। सचिन और साधना रोज इंतजार करते थे कि बाबू जी शायद आज उन्हें कुछ पैसे देंगे। लेकिन, ऐसा नहीं हुआ। फिर उन्हें लगा कि शायद बाबू जी गांव वापस जाते समय पैसे देंगे। जब इंतजार की हद हो गई तो एक सप्ताह बाद सचिन ने कहा, ‘बाबू जी तीन दिन बाद बच्चों की परीक्षा शुरू है। जब से आप दोनों आए हैं तब से उनका मन पढ़ाई में नहीं लग रहा है। अगर आप बुरा न मानें तो आपकी वापसी की कल की टिकट ले आऊँ? ’
‘इसमें बुरा मानने वाली क्या बात है? हम लोग तो खुद ही सोच रहे थे वापस लौटने को। बच्चों की पढ़ाई ज्यादा जरूरी है। तू कल की टिकट ले आना।’, अवधेश प्रसाद ने भावुक होते हुए कहा। सुबह उठकर सचिन और साधना बेसब्री से पैसे मिलने का इंतजार करने लगे। लेकिन, अवधेश प्रसाद और कमला ने जाते हुए सिर्फ बच्चों के हाथ में कुछ पैसे रख दिए। जब अवधेश प्रसाद से पैसे मिलने की कोई उम्मीद नहीं दिखी तो सचिन और साधना का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। साधना ने सचिन की तरफ देखते हुए कहा, ‘इनसे किसी तरह की उम्मीद करना ही बेकार है। यह लोग सिर्फ लेना जानते हैं, देना नहीं। देने के लिए तो इन्हें छोटा बेटा ही मिलता है। हम लोग तो जैसे इनके लिए कुछ हैं ही नहीं। हमारा एक हफ्ता बेकार कर दिया।’ साधना की बात सुन कर अवधेश प्रसाद पूरी बात समझ गए। उन्हें समझ आ गया था कि उन्हें इंदौर क्यों बुलाया गया था और उनकी इतनी खातिरदारी क्यों की गई? साधना की इस बात का जवाब कमला ने देना चाहा लेकिन अवधेश प्रसाद ने उन्हें रोक दिया और बिना कुछ कहे वे दोनों स्टेशन आ गए।
गांव आने के बाद उन्होंने अपने तीनों बेटों को गांव बुलाया और उन्हें यह सख्त हिदायत दी कि उन्हें अकेले ही आना है अपनी पत्नियों के साथ नहीं आना है। उन्हें पता था कि देवेश तो गांव आ जाएगा, लेकिन सचिन और विकास बिना कोई लालच दिए गांव नहीं आएंगे। इसलिए उन्होंने सचिन और विकास से कहा कि उन्हें तीनों बेटों से अपनी संपत्ति के बंटवारे को लेकर कुछ बात करनी है। … जारी
कल पढि़ए क्या बोले अवधेश अपने बेटों से