पाकिस्तान में ज़बरदस्ती धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए सिंध असेंबली के पाकिस्तान मुस्लिम लीग (एफ़) के सदस्य नंद कुमार ने क्रिमिनल लॉ एक्ट 2015 पेश किया था। पाकिस्तान के सिंध प्रांत की सरकार तीन महीने गुज़र जाने के बावजूद अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए बनाए बिल को लागू नहीं करवा पाई है। अधिकांश सांसदों का मानना है कि सिंध सरकार एक ओर रूढ़िवादी समूहों के दबाव के कारण इस बिल पर दोबारा चर्चा शुरू करने से कतरा रही है तो दूसरी ओर पाकिस्तान में हिंदू अल्पसंख्यकों में दहशत बढ़ गई है।
ये अगर पाकिस्तान का हाल है तो सोचने वाली बात ये है कि भारत इस बात से कितना अछूता है। हमारे देश में आये दिन हम घर वापसी, जबरिया धर्म परिवर्तन की खबरें सुनते रहते हैं। भारत हो या पाकिस्तान आखिर ये कौन सी मानसिकता है जिनके सिर पर धर्म परिवर्तन जुनून है। इसके मूल में जाएं तो पाएंगे कि इसके पीछे ज्यादातर वो लोग है जिनके इरादे सियासी हैं। जिनको धर्म के नाम पर धंधा करना है। जिनको धर्म के नाम पर सम्मान हासिल करना है। इसका मतलब वो लोग धर्म परिवर्तन कराने की कोशिश करते हैं जो मूलत: धार्मिक नहीं हैं।
मानव को, इंसान को दृष्टि में रखकर अगर हम प्रचलित धर्म को समझने जाएं तो पता चलता है कि सारे लोग सुख और शांति की कामना लेकर भटक रहे हैं और ये तभी संभव है जब व्यक्ति से लेकर परिवार, परिवार से लेकर समाज और समाज से लेकर ये धरती पूरी तरह से अभाव मुक्त और शिकायत मुक्त होकर एक दूसरे के कल्याण के विषय में कार्य करें। शायद इसीलिए इस्लाम में कहा गया है कि जो इस्लाम का विरोधी है वो काफिर है। इस्लाम का विरोधी मतलब जो इंसानियत का दुश्मन है, जो प्रेम का दुश्मन है जो मानवता का दुश्मन है।
हिंदू धर्म में हर हवन, हर पूजा के बाद हम कहते हैं अधर्म का नाश हो। यहां पर भी अधर्म का तात्पर्य सत्य, प्रेम, न्याय और मानवता विरोधी कार्यों से हैं। बाइबिल में भी इंसान से इंसान के प्रेम और भाईचारे की बात कही गई है। तो फिर सवाल ये उठता है कि आखिर वो कौन लोग है जो मानव को जबरदस्ती भय दिखाकर, डराकर, धमका कर, प्रलोभन देकर धर्म परिवर्तन करा रहे हैं? क्या उनके परिवार, उनके समाज पूरी तरह से भयमुक्त और शिकायतमुक्त जीवन जी रहे हैं। क्या वो लोग आपस में शांति और सद्भाव स्थापित कर पाये?
ये धरती, प्राण (पेड़- पौधे), जीव (पशु-पक्षी) और पदार्थ (नदी, पर्वत, हवा) और मानव इन चार इकाइयों से बनी है। और इसमें सिर्फ एक मानव है जिसके पास ज्ञान की असीमित क्षमता है। लेकिन विडंबना देखिए इस प्रकृति में प्राण, जीव और पदार्थ तीनों एक दूसरे के पूरक होकर जीते हैं। जितना एक दूसरे से ग्रहण करते हैं उतना ही एक दूसरे को देते हैं। यानी प्रकृति में इनका धर्म निश्चित है और ये अपने धर्म से टस से मस नहीं होते।
जैसे कभी शेर ने बकरी को भय दिखा कर उसे शेर बनाने की कोशिश नहीं की। लेकिन जिस मानव के पास ज्ञान की असीमित क्षमता है उसके कारण ये धरती आज ग्लोबल वार्मिंग का शिकार हो गई। परमाणु खतरे से विश्व जूझ रहा है। मानव के कथित भौतिक विकास की प्रकिया में कई जीव-जंतु, नदियां, वनस्पतियां लुप्त हो गईं और कई लुप्त होने की कगार पर हैं। ऐसे मानव को आप धार्मिक कैसे कह सकते हैं, फिर वो हिंदू कहलाता हो, चाहे मुसलमान, ईसाई या फिर किसी और संप्रदाय को मानने वाला।
प्रकृति के मुताबिक समझें तो जिस प्रकार प्राण, जीव और पदार्थ का धर्म एक है और वो ये है कि किसी को भी नुकसान पहुंचाये, बिना एक दूसरे के पूरक होकर, अपनी जरूरतों को पूरा करना। तो फिर मानव ज्ञानवान होकर भी ऐसा क्यों नहीं कर पा रहा है। क्यों मानव इस सरलतम धर्म को पहचान नहीं पा रहा है। जाहिर है वो अपने मौलिक धर्म को छोड़ कर, शऱीर की आवश्यकताओं के लिए लोभ में फंस कर, असुरक्षा के चलते प्रकृति की व्यवस्था में अराजकता पैदा कर रहा है। जबकि प्रकृति की बाकी इकाइयों की तरह उसका मूल धर्म है एक दूसरे के पूरक होकर जीना, एक दूसरे के लिए जीना।
जाहिर है अब आप किसी को जबरदस्ती हिंदू बना लो, मुसलमान बना लो, ईसाई बना लो, लेकिन जब तक आप इंसान नहीं बनाओ, मानव को मानव नहीं बनाओगे आपका धर्म बेकार है व्यर्थ है। तो फिर भारत हो या पाकिस्तान अल्पसंख्यकों की सुरक्षा हमेशा चिंता की बात रहेगी, बस कहीं कम होगा तो कहीं ज्यादा और अगर इस भय से मुक्त होना है तो सारे मतावलंबियों को ये समझना होगा कि इस धरती पर धर्म परिवर्तन कराना एक असंभव घटना है क्योंकि प्रकृति से टकराने की उनकी हैसियत ही नहीं है।