इंगलिश इज इंडिया एंड इंडिया इज इंगलिश, हाल ही में रीलीज हुई फिल्म ‘हिंदी मीडियम’ के ट्रेलर का ये डॉयलाग जब आप सुनते है तो निश्चित तौर पर कहीं ना कहीं भारत के हिंदी भाषी राज्यों के बहुतायत लोग इससे इत्तेफाक रखते होंगे। इस देश में अंग्रेजी की फांस कुछ ऐसी है कि ना तो लोगों से निगलते बन रही है ना ही थूकते। हिंदी के अच्छे-खासे विद्वानों को मैंने अंग्रेजी बोलनेवाले लोगों के सामने दुम हिलाते और दांत निपोरते देखा है। हैरानी की बात तो ये हैं फिल्म इंडस्ट्री, न्यूज इंडस्ट्री, टीवी इंडस्ट्री, मीडिया से लेकर स्पोर्ट्स तक हिंदी का बाजार जबरदस्त है लेकिन यहां का वर्क कल्चर इंगलिश है। कुल मिलाकर अंग्रेजी की कुंठा ने ज्यादातर होनहार लोगों की जिंदगी का सुकून और चैन हराम कर रखा है। वैसे ही जैसे फिल्म हिंदी मीडियम के ट्रेलर में इरफान खान का किरदार दिख रहा है।
फिल्म के ट्रेलर में एक और डॉयलॉग है जिसमें नायिका कहती है कि “इस देश में अंग्रेजी ज़बान नहीं क्लास है” फिल्म के कहानीकार ने मानो भारतीय जनमानस की नब्ज पकड़ी है। मैं भी इससे अछूता नहीं हूं/मध्यप्रदेश के शहडोल के देसी माहौल में पलकर, पढ़कर जब मैं पहली बार नौकरी की तलाश में भोपाल पहुंचा, तो जितने भी हिंदी अखबारों के दफ्तर में इंटरव्यू के लिए जाता, सारे संपादक एक ही सवाल करते कि क्या अंग्रेजी आती है? तो मैं सीधे कहता कि नहीं आती, बस मुझे हिंदी आती है, एक-दो बार तो मैंने खिसियाकर कह भी दिया कि अंग्रेजी आती तो अंग्रेजी अखबार में नौकरी करता आपके यहां नौकरी मांगने क्यों आता!
जाहिर है ऐसे जवाब से भला मुझे कौन नौकरी देता। लेकिन एक वक्त के बाद नौकरी मुझे हर हाल में चाहिए थी, सो मैंने समझौता किया और इस बार अंग्रेजी के दो-चार जुमले रटकर इंटरव्यू देने पहुंचा। संपादक महोदय ने हिंदी में अंग्रेजी ज्ञान पर सवाल पूछा तो मैंने अंग्रेजी के रटे-रटाये जुमले चिपका दिये। यहां भाषा ने नहीं मेरे बनावटी मनोबल ने रंग दिखाया और मेरा सेलेक्शन हो गया। फिर आगे मुझे नौकरी में कभी कोई दिक्कत नहीं हुई क्योंकि सारा काम हिंदी में होता था। हां! जब छुट्टी लेनी होती थी, जब साल भर की परफॉरमेंस रिपोर्ट भरनी होती थी या संपादक से कोई पत्रव्यवहार करना होता था तब अंग्रेजी जानने वालों के आगे-पीछे घूमना पढ़ता और काम हो जाता था।
अपना काम तो हो जाता था लेकिन क्लास कोई और ही मेंटेन करता था। मीटिंग्स में, बॉस के साथ उन महिलाकर्मियों का और चुनिंदा पुरुषकर्मियों का बोलबाला रहता था जो हिंदी की चीजों को भी अंग्रेजी में गिट-पिट करके पेश करते थे। ये एक सामाजिक समस्या भी थी क्योंकि ज्यादातर महिलाकर्मी अंग्रेजी में ही वार्तालाप करती थीं। सो ज्यादातर हिंदी भाषी मनमसोस कर, आहें भरकर रह जाते। कई को इस चक्कर में नौकरी के दौरान इंग्लिश क्लास ज्वाइन करते देखा है मैंने।
नौकरी के लिए एक और इंटरव्यू देने जब मैं मुंबई पहुंचा तो बहुत बड़े न्यूज चैनल की चकाचौंध देखकर और वहां रिसेप्शनिस्ट की अदा और अंग्रेजी अंदाज-ए-बयां को देखकर ही समझ गया कि यहां मेरी दाल नहीं गलनेवाली। लेकिन जिन दो लोगों ने मेरा इंटरव्यू किया वो मीडिया जगत में आज की तारीख में देश के सबसे ताकतवर लोगों में हैं। उन्होंने प्रभावशाली तरीके से इंटरव्यू किया, मैंने उतनी ही ईमानदारी से जवाब दिया और मेरा चयन हो गया। लेकिन मेरे कुछ साथी जिनको मेरी अंग्रेजी अज्ञानता का भान था उन्होंने मेरी नौकरी लगने पर आश्चर्य ही प्रगट नहीं किया बल्कि समय-समय पर मुझे मेरी औकात बताने में भी पीछे नहीं रहे।
हिंदी संस्थान में अंग्रेजी का हौवा जबरदस्त तरीके से हावी था। मुंह बंद करके दफ्तर जाता था और मुंह बंद करके आता था। इस दौरान दो तरह के लोगों से पाला पड़ा, एक वो जिनको अंग्रेजी विरासत में मिली थी और वो उसी माहौल में पले-बढ़े थे, उनसे कभी भी बातचीत करने में उनके साथ रहने में असहजता नहीं हुई। लेकिन दूसरे वे थे जिन लोगों ने नई-नई अंग्रेजी सीखी थी, यही नहीं शायद वो अपनी पीढ़ी के पहले अंग्रेज होंगे। वो अंग्रेजी झाड़ने में और अंग्रेजी का दिखावा करने में सबसे आगे रहते थे। लेकिन इतना जरूर महसूस किया कि कई अंग्रेजी बोलने वाली सुंदरियों ने अपने इस हुनर का इस्तेमाल हथियार की तरह किया और आगे बढ़ने के लिए बॉसेज को जमकर ठगा और शायद वो उस लायक भी थे।
फिल्म ‘हिंदी मीडियम’ में एक और डायलॉग है जिसमें इरफान खान कहते हैं की ‘’माई लाइफ इज हिंदी, बट माई वाइफ इज इंग्लिश।‘’ छोटे-छोटे हिंदी भाषी शहरों से बड़े शहरों में आये नौजवानों में अंग्रेजी बोलने वाली लड़कियों को लेकर बड़ा क्रेज मैंने देखा। कई लड़कियों में तो बात करने की तमीज भी नहीं थी, लेकिन लड़के इस बात पे खुश कि मोहतरमा अंग्रेजी बोलती हैं और उन्हें अंग्रेजी में गरियाती है। एफ से शुरू होनेवाले अंग्रेजी के कुछ घटिया और सस्ते शब्द तो कुछ लोग आम बोलचाल में मंत्र की तरह इस्तेमाल करती हैं/करते हैं। कई लोग अच्छे ओहदों पर है लेकिन लेकिन अंग्रेजी बोलने वाली बीवी हासिल करने के चक्कर में घर का सुकून भी गवां बैठे हैं।
यहां इस बात को कहने का मतलब सिर्फ इतना है कि कैसे अंग्रेज जीवन संगिनी चुनने के चक्कर में अच्छे खासे भले लोग अपनी मति खो बैठते हैं। कई साथी तो ऐसे हैं जो आज भी अंग्रेजी से जूझते है, लेकिन अपने बच्चों को अंग्रेज बनाने के चक्कर में उनसे ऐसी अंग्रेजी बोलते है कि अंग्रेज भी पगला जाये। हंसें कि सिर कूटें, आप को भी समझ नहीं आएगा।
मैं अंग्रेजी भाषा का कतई विरोधी नहीं हूं, भाषा का सम्मान करता हूं बस दुख इस बात का है कि क्लास के चक्कर में खुद का, संस्कृति का और सभ्यता का कचरा होते नहीं देख पा रहा। मुझे आपत्ति है कि लोग दिखावे के चक्कर में भारत को इंडिया बनाये डाल रहे हैं, जहां अंग्रेजी की जरूरत नहीं है, वहां भी अंग्रेजी ठूंसे जा रहे है। आपको भी पता है कि ऐसे लोग कहीं से भी अंग्रेजी का भला नहीं कर रहे बल्कि हिंदी का जरूर सत्यानाश किये जा रहे हैं।
मुझे बस एक ही बात का मलाल है, वो ये कि जब बचपन में मेरे पिताजी मुझे अंग्रेजी पढ़ाते थे तो भाग क्यों जाता था? क्यों डरता था? जिसके चलते आज भी मैं अंग्रेजी से भाग रहा हूं… लेकिन हां 17 साल से ज्यादा पत्रकारिता में गुजारने के बाद ये बात जरूर कहूंगा कि मैंने भले ही झूठ बोलकर ये किला भेदा हो लेकिन अपने काम से कभी बेईमानी नहीं की।
इरफान खान अभिनीत फिल्म ‘हिंदी मीडियम’ का ट्रेलर देखने के बाद मुझे लगता है कि जिस तरह इस फिल्म ने मेरी कमजोर नस को छेड़ा है वैसा कई के साथ हुआ हो। ये फिल्म हो सकता है भारत में अंग्रेजी भाषा के नाम पर जो कूड़ा, कचरा, दिखावा हो रहा है, उस पर एक करारा प्रहार साबित होगी। 12 मई को रीलीज हो रही फिल्म ‘हिंदी मीडियम’ को मेरी शुभकामनाएं।