उत्तरप्रदेश पुलिस में कानून एवं व्यवस्था के अतिरिक्त महानिदेशक (एडीजी) दलजीत चौधरी ने, मध्यप्रदेश में मंगलवार को हुई भोपाल-उज्जैन पैसेंजर ट्रेन में विस्फोट और उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ में आतंकवादियों से हुई मुठभेड़ को,यह बयान देकर उलझा दिया है कि इन घटनाओं से जुड़े लोगों के अंतर्राष्ट्रीय आतंकी संगठन आईएसआईएस से संबंधों की पुष्टि नहीं हुई है।
यह उलझन इसलिए पैदा हुई क्योंकि बुधवार की शाम दलजीत चौधरी का बयान आने से पहले मध्यप्रदेश पुलिस और राज्य के गृह मंत्री भूपेंद्रसिंह ही नहीं बल्कि खुद मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान बयान दे चुके थे कि इन लोगों के तार आईएसआईएस से जुड़े हैं। मुख्यमंत्री ने तो विधानसभा में बाकायदा विशेष वक्तव्य देकर कहा था कि- ‘’घटनास्थल की जांच से स्पष्ट हुआ है कि विस्फोट एक सुनियोजित आतंकवादी घटना थी जिसको आईएसआईएस की आतंकी विचारधारा से जुड़े हुए आरोपियों के द्वारा आईईडी (इम्प्रोवाइज्ड एक्स्प्लोसिव डिवाइस) के जरिये अंजाम दिया गया।‘’
हालांकि मुख्यमंत्री ने विधानसभा के अपने वक्तव्य में तो जिक्र नहीं किया, लेकिन विधानसभा से बाहर दिए गए उनके एक बयान के हवाले से मीडिया में यह खबरें भी आई हैं कि ट्रेन ब्लास्ट के आरोपियों ने, घटना को अंजाम देने के बाद, सोशल मीडिया के जरिए सीरिया स्थित अपने हैंडलर्स तक इसकी जानकारी पहुंचाई थी।
उत्तरप्रदेश पुलिस के सुपर कॉप और मध्यप्रदेश सरकार के बयानों के बाद इन घटनाओं के संबंध में जो धुंध पैदा हुई है उसका छंटना बहुत जरूरी है। मध्यप्रदेश की ओर से ही पहले बताया गया था उसकी ही सूचना पर उत्तरप्रदेश पुलिस ने लखनऊ, कानपुर, इटावा और औरैया में इस आतंकवादी घटना से जुड़े लोगों के खिलाफ कार्रवाई की, जिसमें सैफुल्लाह मारा गया। अब वहां के एडीजी दलजीत चौधरी का कहना है कि ‘’हो सकता है कि मध्य प्रदेश पुलिस के पास ऐसी कोई जानकारी हो, लेकिन हमें ऐसा कोई तथ्य नहीं मिला है।‘’
यह बयान दर्शाता है कि आतंकवाद से जुड़ी गंभीर घटनाओं के मामले में भी हमारे पुलिस व सुरक्षा तंत्र के बीच आपस में कोई तालमेल नहीं है। विरोधाभासी बयानों से अब यह विवाद पैदा करने की कोशिश होगी कि देश में लोगों को आतंकवादी संगठनों से जुड़ा हुआ बताकर उन्हें मारा जा रहा है। घटना के दिन से ही सोशल मीडिया में ऐसे बयान आ भी रहे हैं। हालांकि केंद्र सरकार ने पूरे मामले की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को दे दी है, लेकिन मध्यप्रदेश व उत्तरप्रदेश में हुई घटनाओं के तार किससे और कहां तक जुड़े हैं, इस बारे में अब खुद केंद्र सरकार को स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए।
यह इसलिए भी जरूरी है क्योंकि गुरुवार को मीडिया में ऐसी खबरें दिखाई गईं कि केंद्रीय गृह मंत्रालय भी, इन घटनाओं का संबंध आईएसआईएस से जोड़े जाने की जल्दबाजी को लेकर खासा नाराज है। यदि ये खबरें सही हैं तो केंद्र का यह रुख उत्तरप्रदेश पुलिस के बयान का ही समर्थन करता प्रतीत होता है। ऐसे में मध्यप्रदेश पुलिस… और पुलिस ही क्यों, पूरी सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़ा होता है।
मुख्यमंत्री ने भोपाल-उज्जैन ट्रेन ब्लास्ट में तत्काल कार्रवाई कर आरोपियों को पकड़ने के लिए मध्यप्रदेश पुलिस की सराहना करते हुए उसे बधाई दी है। पुलिस इसकी हकदार भी है। हमें नहीं भूलना चाहिए पिछले साल दीवाली की रात भोपाल जेल ब्रेक कर भागे सिमी से जुड़े आरोपियों को भी भोपाल पुलिस ने मार गिराया था। लेकिन किसी घटना के आरोपियों को दबोच लेना अलग बात है और उन आरोपियों के आईएसआईएस जैसे खूंखार आतंकी संगठन से रिश्ते साबित कर देना अलग बात।
दलजीत चौधरी की यह बात अतार्किक नहीं है कि आजकल कई लोग अपना असर कायम करने के लिए खुद को कुख्यात आतंकवादी संगठन से जुड़ा बता देते हैं,लेकिन जरूरी नहीं है कि ऐसा हो ही। लखनऊ में जिन लोगों के नाम सामने आए वे भी इंटरनेट, सोशल मीडिया और वेबसाइट के जरिए आईएस से प्रभावित हुए थे और’खुरासान ग्रुप’ बनाकर खुद अपनी पहचान बनाना चाहते थे।
ऐसे में यदि आगे चलकर इन अपराधियों का आईएसआईएस से किसी तरह का कोई संबंध साबित नहीं हो पाया या एनआईए की जांच में कोई और ही बात सामने आई,तो मध्यप्रदेश पुलिस की सराहना, उसकी किरकिरी में तब्दील हो सकती है। वह स्थिति पुलिस के मनोबल के लिए भी ठीक नहीं होगी।
मध्यप्रदेश हो या देश का कोई अन्य हिस्सा, आतंकवादी घटनाओं को जिस तरह अंजाम दिया जा रहा है और जिस तरह से ये घटनाएं बढ़ रही हैं, उनसे निपटने के लिए इस तरह की बयानबाजी पर रोक या बयानों पर संयम बहुत जरूरी है। आज जरूरत इस बात की है कि आतंकी संगठन जिस तरह से देश में अपना नेटवर्क खड़ा कर रहे हैं, उसे तोड़कर खत्म किया जाए।
मध्यप्रदेश के लिए चिंता की बात यह कि कुछ सालों में यहां इस तरह की गतिविधियों में इजाफा हुआ है। सरकार और पुलिस यह दावा करके खुद की पीठ थपथपा सकते हैं कि उन्होंने आरोपियों को या तो तत्काल दबोच लिया या उन्हें खत्म कर दिया, लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि ऐसे तत्व मध्यप्रदेश की जमीन को अपने लिए मुफीद मानने लगे हैं।
असल चिंता की बात यही है।