यदि ऐसा है तो मैं अपने सभी पाठकों से इस त्रुटि के लिए खेद प्रकट करता हूं।
महिला दिवस पर आज मैंने एक कविता प्रेषित की थी। यह कविता दरअसल मुझे हमारे एक परिचित ने भेजी थी और अच्छी लगी तो मैंने सोचा इसे सभी से शेयर करूं। कविता भेजने वाले ने इसे अमृता प्रीतम द्वारा रचित बताकर भेजा था। जैसीकि मेरी आदत है मैंने इसे गूगल गुरु पर सर्च करके इसकी पुष्टि करनी चाही, वहां भी इसे अमृता प्रीतम द्वारा रचित ही दर्शाया जा रहा था। बस यहीं मैं गच्चा खा गया। मैंने उस जानकारी को सच मानकर वह कविता अमृता प्रीतम के नाम से ही पोस्ट कर दी।
अभी अभी हमारी एक परिचित रक्षा दुबे जी का संदेश आया कि यह कविता दरअसल शरद कोकास की है जो नेट पर अमृता प्रीतम के नाम से चल रही है। वेबसाइट ‘कविता कोश’ में जब टटोला तो हमारे अपने बैतूल के शरद कोकास के नाम यह कविता कहीं नहीं दिखी। फिर भी लगातार सर्च जारी रखी। अंतत: किन्हीं रुचि शुक्ला जी की वेबसाइट पर यह कविता अमृता प्रीतम के नाम से ही प्रकाशित दिखी। उसी में नीचे कमेंट बॉक्स में श्री शरद कोकास का कमेंट छपा था। उसमें उन्होंने लिखा था-
‘’रुचि जी, नमस्कार, जानना चाहता हूँ यह कविता आपको कहाँ से प्राप्त हुई? कृपया मेरे फोन नंबर 8871665060 पर मुझसे संपर्क करें। वस्तुतः यह कविता मेरी है, जो वागर्थ पत्रिका के मार्च अंक में प्रकाशित हुई है। सादर– शरद कोकास’’
इस संवाद के बाद अपनी गलती का अहसास हुआ। लिहाजा आप भी मेरे द्वारा पोस्ट की गई कविता को शरद कोकास की रचना के रूप में स्वीकार करते हुए अमृता प्रीतम जी की जगह, इस शानदार कविता के लिए उन्हें बधाई दीजिए…
आपके संदर्भ के लिए मैं शरद कोकास के उस कमेंट का स्क्रीन प्रिंट भी पोस्ट कर रहा हूं…
गलती के लिए एक बार फिर से खेद है…
गिरीश उपाध्याय