डॉ. नीलम महेंद्र
मध्यप्रदेश में ‘व्यापमं’ अब एक बद’नाम है। ‘व्यापम’ यानी व्यवसायिक परीक्षा मण्डल, जो प्रदेश में चुनिंदा सरकारी पदों के अलावा मेडिकल व इंजीनियरिंग कार्सेस में भरती के लिए परीक्षा लेता है। लेकिन पिछले कुछ सालों से ‘व्यापमं’ पर इन परीक्षाओं को बेचने का दाग लगा है।
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने व्यापमं द्वारा ली गई मेडिकल प्रवेश परीक्षा में हुए घोटाले और फर्जीवाड़े पर बहुप्रतीक्षित फैसला सुनाते हुए 2008 से 2012 के बीच प्रवेश पाने वाले 634 छात्रों के दाखिले निरस्त किए गए हैं। जो डाक्टर बन चुके हैं उनकी डिग्री छीन ली जाएगी। न्यायालय ने अपना फैसला सुना दिया है, लेकिन क्या हम कह सकते हैं कि इस मामले में पूरा न्याय हुआ है?
जिस सिस्टम में यह सब सम्भव हो पाया उस सिस्टम का क्या? जिन अधिकारियों ने अपने अधिकारों का दुरुपयोग किया उनका क्या? जिन नेताओं के सरंक्षण में इस घोटाले को अंजाम दिया गया उन नेताओं का क्या? क्या इन सभी की मिलीभगत के बिना इतना बड़ा घोटाला संभव है? अगर सरकार की जानकारी के बिना यह प्रवेश हुए तो फिर सरकार क्या कर रही थी और अगर सरकार की जानकारी में हुए तो वो होने क्यों दे रही थी? दोनों ही स्थितियों में सरकार सवालों के घेरे से बच नहीं सकती।
जिस दोषी सिस्टम और सरकारी तंत्र के सहारे पूरा घोटाला हुआ उस का कोई दोष नहीं, उसे कोई सजा नहीं, लेकिन जिसने इस सिस्टम का फायदा उठाया वह दोषी भी है और सजा का हकदार भी। तो क्या यह समझा जाए कि सरकार की कोई जवाबदेही नहीं है, न सिस्टम के प्रति न लोगों के प्रति।
व्यापम घोटाले में 2000 से ज्यादा गिरफ़्तारियाँ हुई, 55 एफआईआर,26 चार्ज शीट दाखिल हुई, इस मामले से जुड़े 42 लोगों की संदिग्ध मौतें हुईं। 2500 से ज्यादा लोग आरोपी हैं। इतने बड़े मामले को समाज और सरकार इस हलके ढंग से कैसे ले सकते हैं?
और बात सिर्फ घोटाले तक सीमित नहीं है। जिस परीक्षा की तैयारी के लिए छात्रों के माता पिता स्कूल फीस के अलावा कोचिंग सेन्टर वालों को मोटी फीस देते हैं, पहली बार सिलेक्शन नहीं होने पर बच्चे ड्राप लेते हैं, पास होने के लिए जी तोड़ मेहनत करते हैं, उस परीक्षा की कोई विश्वसनीयता है या नहीं? और मेहनत के बजाय जो छात्र 25 से 40 लाख खर्च करके डॉक्टर या इंजीनियर बनेगा क्या वह नौकरी लगने पर अपने द्वारा किए गए इस ‘काले इनवेस्टमेंट’ को वसूल नहीं करेगा? ऐसे में भ्रष्टाचार का यह चक्रव्यूह कैसे टूटेगा?
जब तक योग्य व्यक्ति पदों पर नहीं होंगे तो देश आगे कैसे बढ़ेगा? इस तरह ली जाने वाली परीक्षाएँ और इनमें बिकने वाली डिग्रियाँ प्रधानमंत्री के ‘मेक इन इंडिया’ और ‘स्किल्ड इंडिया’ जैसे प्रोजेक्टों को कैसे आगे बढ़ाएँगीं? किसी भी देश की तरक्की में शिक्षा और शिक्षित युवा का महत्वपूर्ण योगदान होता है लेकिन जब शिक्षा में ही भ्रष्टाचार की दीमक लग जाए तो युवा नहीं देश का भविष्य दांव पर लग जाता है।
न्यायालय के फैसले से उन छात्रों को तो सजा मिल गई जिन्होंने गलत तरीके से परीक्षा उत्तीर्ण की। लेकिन पूर्ण न्याय तभी होगा जब ऐसी पुख्ता व्यवस्था हो कि भविष्य में न तो किसी छात्र के साथ अन्याय हो और न ही कोई छात्र अनुचित तरीके से डिग्री हासिल कर पाए। क्योंकि भविष्य तो दोनों ही स्थितियों में दांव पर लगता है।