आपकी दाल फिर काली करने की कोशिश हो रही है…

पहले नोटबंदी और अब पांच राज्‍यों के चुनावी हो हल्‍ले में कुछ जरूरी मुद्दों पर बात ही नहीं हो रही है। इनमें से एक मुद्दा ऐसा है जो घर-घर से जुड़ा है। बीच में जब केंद्र सरकार का बजट पेश हुआ तो लगा था कि राजनीति, चुनाव, सरकार और आर्थिक स्थिति जैसे भारी भरकम और सदाबहार जुमलों के बीच कुछ दाल-रोटी टाइप मुद्दों पर भी बात होगी। लेकिन बजट भी इन मामलों पर कोई गंभीर बहस या चर्चा के बिना गुजर गया।

मैं जिस मामले का जिक्र कर रहा हूं वह खेत-खलिहान और किसान से शुरू होता है और आपके घर के किचन तक जाता है। एक समय घर-घर को रुलाने वाली दाल एक बार फिर किसान को रुलाने जा रही है। और इससे भी ज्‍यादा चिंता की बात यह है कि दाल का यह मामला किसान तक ही सीमित नहीं रहने वाला बल्कि उससे भी आगे जाकर एक बार फिर घर-घर को रुलाएगा। सरकार वायदों का कितना ही पानी डाले, लेकिन आम लोगों के लिए इस मामले में राहत की दाल नहीं गलने वाली। खबर आई है कि मध्‍यप्रदेश में नोटबंदी और प्राकृतिक आपदाओं की मार से पहले से ही जूझ रहे किसानों के लिए तुअर की बंपर पैदावार मुसीबत का सबब बन सकती है।

ऐसा क्‍यों हुआ, पहले यह जान लीजिये। आपको याद होगा कि कुछ समय पहले प्‍याज और टमाटर जैसी सब्जियों की भारी किल्‍लत हुई थी और इनके दाम आसमान छूने लगे थे। बाजार से प्‍याज गायब होने के बाद उसका आयात तक करने की नौबत आ गई थी।

आठ-दस रुपये किलो बिकने वाले प्‍याज और टमाटर जब 80 रुपये किलो या उससे भी अधिक दाम तक पहुंच गए तो किसानों को लगा कि प्‍याज और टमाटर की पैदावार लेने में खासा मुनाफा है। मेहनत के बदले जेब में ज्‍यादा पैसा आने की उम्‍मीद लगाकर उन्‍होंने प्‍याज और टमाटर की बंपर पैदावार कर डाली। और इसका नतीजा वही हुआ जो होना था। इन दोनों सब्जियों के दाम इतने नीचे गिर गए कि उन्‍हें बेचना तो दूर संभालकर रखना तक मुश्किल हो गया। लिहाजा प्‍याज और टमाटर सड़कों पर फेंके गए। प्‍याज के मामले में तो मध्‍यप्रदेश सरकार ने किसानों को राहत देने के लिए खुद उसकी खरीद की और करोड़ों की चपत सहन की।

अब यही हाल तुअर दाल के मामले में होने जा रहा है। पिछले साल खेरची बाजार में 200 रुपये किलो तक पहुंच गई दाल के दाम आज खेरची में 80 से 90 रुपए प्रति किलो तक नीचे आ गए हैं। दालों के मामले में मध्‍यप्रदेश में सबसे ज्‍यादा खपत तुअर दाल की ही होती है। कमोडिटीकंट्रोल डॉट कॉम के अनुसार मध्‍यप्रदेश में वर्ष 2014-15 में करीब 3.71 लाख टन और 2015-16 में 3.80 लाख टन तुअर दाल की पैदावार हुई थी। इस बार यह अनुमान 10 से 15 लाख टन का है।

इतनी अधिक पैदावार का कारण यह है कि सरकार ने तुअर दाल की किल्‍लत को देखते हुए तुअर के लिए 5050 रुपये क्विंटल का समर्थन मूल्‍य घोषित किया था। अच्‍छे दाम मिलने की उम्‍मीद में किसानों ने बंपर फसल ले डाली। अब हालत यह है कि मंडियों में तुअर की आवक शुरू हो गई है और व्‍यापारी उसे काफी कम दाम पर खरीद रहे हैं। 6 फरवरी को भोपाल की मंडी में तुअर के भाव 3200 से 4000 रुपये क्विंटल थे। यानी समर्थन मूल्‍य से काफी कम। उधर खबरें यह भी आ रही हैं कि सरकार ने इस बार सिर्फ 74 हजार क्विंटल की ही खरीद समर्थन मूल्‍य पर करने का फैसला किया है। यह खरीद चालू माह के अंत से शुरू होगी और मई तक चलेगी। जबकि किसान अपनी फसल लेकर मंडियों में आने लगे हैं।

सरकार ने यह भी स्‍पष्‍ट किया है कि वह सिर्फ अच्‍छी गुणवत्‍ता वाली तुअर ही खरीदेगी। यानी गुणवत्‍ता के नाम पर किसानों के साथ एक बार फिर खेल होगा और किसान को मजबूरी में अपनी पैदावार बिचौलियों या व्‍यापारियों के हाथ बेचनी पड़ेगी। इससे किसान को अच्‍छा दाम मिलना तो दूर उसकी लागत भी शायद ही मिल सके।

दूसरी तरफ बाजार में सस्‍ती तुअर आने का मतलब उपभोक्‍ता यदि यह समझ रहे हैं कि उन्‍हें दाल काफी सस्‍ते दाम पर मिलने लगेगी तो यह उनका भ्रम है। अच्‍छी पैदावार होने के बावजूद उन्‍हें कोई खास राहत नहीं मिलने वाली। देश में दाल की किल्‍लत को देखते हुए केंद्र सरकार ने मोजाम्बिक, तंजानिया, मलावी और म्यांमार से दालों का आयात शुरू किया था। लेकिन ठीक ठाक फसल आने के बाद कुछ ही दिनों में यह आयात बंद हो जाएगा। ऐसे में मई के बाद दालों के दाम अचानक बढ़ना शुरू होंगे और आम आदमी की दाल-रोटी एक बार फिर उसकी पहुंच से दूर होती चली जाएगी।

देखना बस यही है कि उस स्थिति में, केंद्र सरकार ने वर्ष 2017-18 के बजट में दालों की कीमतों को आसमान पर चढ़ने से रोकने के लिए जो 3500 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है, उस पोटली में से कितना लोगों को मिलेगा और कितना दाल को काली करने में खप जाएगा। 

 

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