26 जनवरी के हो हल्ले में मध्यप्रदेश की कुछ अहम खबरों की ओर शायद लोगों का ध्यान ज्यादा नहीं गया। ऐसी दो खबरें गणतंत्र दिवस के दिन ही प्रकाशित हुईं। और दोनों ही खबरें एक बार फिर हमारी व्यवस्था और शासन प्रणाली की विसंगतियों की चमड़ी उधेड़ती नजर आती हैं।
पहली खबर बताती है कि कथित हवाला कांड की जांच को लेकर कटनी जिले से हटाए गए पुलिस अधीक्षक गौरव तिवारी अपने नए जिले छिंदवाड़ा में भी मुसीबत में हैं। हुआ यूं कि पुलिस ने 20 जनवरी को छिंदवाड़ा में छापा मारकर सात लाख रुपये की अवैध शराब पकड़ी। पुलिस की इस कार्रवाई पर जिले के अतिरिक्त जिला दंडाधिकारी (एडीएम) ने आपत्ति की और उनकी कोर्ट से एसपी को नोटिस दे दिया गया कि लायसेंसी शराब ठेकेदार पर आबकारी विभाग ही एफआईआर दर्ज कर सकता है, लिहाजा पुलिस यह केस अपने हाथ में न ले और इसे आबकारी विभाग को ट्रांसफर किया जाए।
चूंकि इस मामले में राजनीति से लेकर कानूनी दांवपेंच के बहुत सारे लफड़े जुड़े हुए हैं इसलिये यह कहना मुश्किल है कि इसमें कौन सही है और कौन गलत। कानूनन अवैध शराब किसकी मिल्कियत है और उसे पकड़ने की जिम्मेदारी किसकी है…
लेकिन इस खबर के साथ ही उसी दिन एक और खबर पढ़ी तो दिमाग चकरघिन्नी हो गया। यह खबर कह रही थी कि कुपोषण के लिए देश भर में कुख्यात हो चुके उत्तरी मध्यप्रदेश के सीमावर्ती जिले श्योपुर में कानून व्यवस्था और अपराध नियंत्रण के लिए जिम्मेदार पुलिस गांव गांव जाकर कुपोषित बच्चों का पता लगा रही है। 116 बच्चों की कुपोषण से मौत के बावजूद महिला बाल विकास विभाग अपना काम ठीक से नहीं कर पा रहा है और पुलिस इस काम में जुटकर कुपोषित बच्चों को पोषण पुनर्वास केंद्र में भरती करा रही है।
श्योपुर जिले के पुलिस अधीक्षक साकेत प्रकाश पांडेय के निर्देश पर पिछले दिनों पुलिस की चार टीमें गांव गांव पहुंचीं और वहां मिले 19 कुपोषित बच्चों को श्योपुर, कराहल और विजयपुर के पोषण पुनर्वास केंद्रों में भरती कराया। एक गांव में तो दो आदिवासी कुपोषित बच्चों को अस्पताल ले जाने के नाम पर बवाल हो गया और बच्चों की मां ने बिफरते हुए पुलिस वालों को धमकी दे डाली कि यदि उसके बच्चों को हाथ भी लगाया तो वह आत्महत्या कर लेगी। काफी समझाने के बाद भी महिला नहीं मानी और पुलिस पार्टी को वहां से खाली हाथ ही लौटना पड़ा।
अब जरा छिंदवाड़ा और श्योपुर की घटनाओं की तुलना करके देखिये। एक जगह कथित रूप से राजनीतिक रसूख वाला एक आदमी अपने गोदाम में अवैध शराब रखता है। पुलिस उसके गोदाम से शराब की ये पेटियां बरामद कर उस पर कार्रवाई करती है तो पुलिस से उलटे सवाल पूछा जाता है कि आखिर उसने यह हिमाकत की ही कैसे? यह काम तो आबकारी विभाग का है। और दूसरी तरफ श्योपुर में पुलिस कुपोषित बच्चों को खोज कर उनका इलाज करवाने के काम में जुटी है। जबकि उसका मूल काम अपराधियों को पकड़ना और अपराध की रोकथाम करना है।
सवाल यह है कि प्रदेश में जिस विभाग का जो काम है, यदि वह विभाग अपना काम ठीक से अंजाम नहीं दे रहा तो क्या समाज और सरकार के सभी लोग हाथ पर हाथ धरकर या आंखें मूंदकर बैठ जाएं। छिंदवाड़ा मामले में एसपी गौरव तिवारी से जला भुना बैठा राजनीतिक और प्रशासनिक तंत्र उन्हें निपटाने या उलझाने के लिए, गैरकानूनी काम के खिलाफ कार्रवाई पर उलटे उन्हें ही प्रताडि़त करने पर उतर आता है। वे एडीएम साहब जिनकी कोर्ट ने एसपी को नोटिस दिया और वो आबकारी विभाग जिसकी जिम्मेदारी अवैध शराब का पकड़ने की है, पुलिस की कार्रवाई होने से पहले क्या मुंह में मूंग भर कर बैठे थे?
इसी तरह श्योपुर में कुपोषण को लेकर विधानसभा तक में भारी हल्ला मचने, खुद मुख्यमंत्री द्वारा इस मामले को गंभीरता से लेने और उच्च अधिकारियों द्वारा जांच कराने के बावजूद यदि महिला बाल विकास विभाग नाकारा साबित हो रहा है, तो क्या बच्चों को वैसे ही मरने के लिए छोड़ दिया जाए? और यदि वहां की पुलिस ने इस दिशा में कुछ करने का बीड़ा उठाया है तो यह सराहनीय पहल है।
आमतौर पर पुलिस आलोचना का ही शिकार बनती आई है। उसके रवैये और कामकाज को लेकर असंतुष्ट रहने वालों का प्रतिशत बहुत अधिक है। ऐसे में श्योपुर में पुलिस का मानवीय चेहरा उम्मीद जगाता है कि सारे लोग एक जैसे नहीं होते। लेकिन श्योपुर में अपने काम से अलग जाकर दूसरे विभाग का काम अपने सिर लेने वाली पुलिस यदि सराहना की पात्र है तो फिर छिंदवाड़ा में अवैध शराब पकड़ने वाले गौरव तिवारी नोटिस के पात्र कैसे हुए? समाजहित या मानवीय आधार पर, किसी दूसरे विभाग के काम को करना यदि उस विभाग के काम में अनुचित हस्तक्षेप है तो फिर गौरव तिवारी के साथ साथ आपको श्योपुर के एसपी साकेत प्रकाश पांडे को भी नोटिस देना चाहिए।
दरअसल इसी सरकारी ढर्रे और नकारात्मक रवैये के कारण कोई अफसर या सरकारी कर्मचारी नवाचार करने से कतराता है। क्योंकि उसे मालूम है यह नवाचार ऐसा फटा पजामा है जिसमें टांग फंसाना, खुद के लिए मुसीबत को न्योता देना है। आगे रहकर अपने लिए मुसीबत मोल लेना कौन चाहेगा?