ये नदियां बाजारू नहीं हैं, इन्‍हें बाजार से बचाना होगा

 

नर्मदा नदी के पानी की गुणवत्‍ता के बखान के बहाने उसके आसपास उद्योग लगने से जुड़े संभावित खतरे पर बात करते समय कल मैंने छत्‍तीसगढ़ की शिवनाथ नदी को बेचे जाने का जिक्र किया था। कई लोगों के लिए यह जानकारी नई थी और शायद इसीलिये उन्‍होंने फोन करके मुझसे कन्‍फर्म किया कि क्‍या वास्‍तव में ऐसा हुआ था?

मैं दोहराना चाहूंगा कि शिवनाथ नदी को बेचे जाने की वह घटना न सिर्फ सच है, बल्कि 18 साल पुरानी होने के बावजूद हमारे समय के खतरों को और अधिक गंभीरता से रेखांकित करती है। हैरान कर देने वाली बात यह है कि इस नदी को बेचे जाने वाला समझौता, विधानसभा से लेकर अदालत तक, हर जगह आलोचना और विरोध के बावजूद आज भी बरकरार है।

संयुक्‍त मध्‍यप्रदेश से शुरू हुई शिवनाथ नदी की कहानी, विभाजित मध्‍यप्रदेश के हिस्‍से छत्‍तीसगढ़ में आज भी जिंदा है। छत्‍तीसगढ़ के पूर्व जल संसाधन सचिव डॉ. सुशील त्रिवेदी याद करते हैं कि उनके पास जब यह मामला आया तो उन्‍होंने टिप्‍पणी की थी कि एमओयू करने वाली कंपनी ने नदी पर बैराज बनाने के लिए जितनी लागत बताई है उसमें यदि वह सोने का बैराज भी बना दे तो भी इतना पैसा नहीं लगेगा। लेकिन हुआ वही जो राजनीति और बाजार के ‘नेक्‍सस’ ने चाहा।

मजे की बात देखिये कि नदी इस देश की, उसका पानी सरकार का लेकिन एक कंपनी सरकार के साथ एमओयू करके नदी का 23 किमी से अधिक हिस्‍सा अपने नाम कर लेती है, फिर सरकार से ही अनुदान/मदद लेकर उस पर बैराज बनाती है और सरकार का ही पानी सरकार को बेचकर अरबों रुपये का मुनाफा कमाती रहती है। हमारे यहां नदियां ऐसे बिकती हैं।

जिस बात को सुनकर ही हमारे रोंगटे खड़े हो रहे हैं, चूंकि वह हमारे अपने ही समय में, अपने ही प्रदेश में घटित हो चुकी है, लिहाजा कुछ भी कहना मुश्किल है कि व्‍यवस्‍था और बाजार अपने हितों के लिए, नैसर्गिक संसाधनों का शोषण किस सीमा तक ले जाएं। नाम इसे दोहन का दिया जाता है, लेकिन होती यह खुली लूट ही है।

भारत में पानी का व्‍यापार पिछले दो दशकों में बहुत अधिक बढ़ा है। कम लागत और बेहतर मुनाफे के चलते कई बहुराष्‍ट्रीय कंपनियों की भारत के जलस्रोतों पर नजर है। भारत में बोतलबंद पानी का कारोबार 2013 में जहां 6000 करोड़ रुपये से अधिक का था वहीं 2018 तक इसके 16000 करोड़ रुपये से अधिक का हो जाने की संभावना है। अब जरा अनुमान लगाइये कि पानी का यह कारोबार देश में कितनी तेजी से पैर पसार रहा है।

और यह तो केवल बोतलबंद पीने के पानी के कारोबार का आंकड़ा है। पानी पर आधारित उद्योग की कहानी तो अलग ही है। यानी एक तरफ हमारे सिकुड़ते जलस्रोत और प्रदूषित होती नदियां हैं, तो दूसरी तरफ उनकी कीमत पर लगातार फलता-फूलता, मुटाता, बाजार का मुनाफा है। ऐसे में यदि नदियों और उनके पानी को लेकर कोई खबर आए तो उसे बहुत सावधानी से देखने, पढ़ने और समझने की जरूरत है।

खासतौर से जब नदियों का जिक्र करते हुए बाजार कुछ कहता या दिखाता है तो उस हमारे कान खड़े होने ही चाहिये। बाजार ने हमारी नदियों के नामों, उनकी पवित्रता और उनके प्रति जनमानस में पैठी आस्‍था को निर्मम तरीके से भुनाने की कोशिश हर बार की है। मुझे याद है 1990 के दशक में माधवराव सिंधिया अपनी राजनीतिक रियासत ग्‍वालियर के आसपास के दो जिलों भिंड और मुरैना में दो बड़े औद्योगिक केंद्र लेकर आए थे। मुरैना जिले के बामौर और भिंड जिले के मालनपुर में स्‍थापित ये केंद्र उस समय बहुत बड़ा निवेश और रोजगार के लिहाज से उस क्षेत्र के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि माने गये थे। (इन दोनों औद्योगिक केंद्रों की कहानी भी आपको जल्‍दी ही सुनाऊंगा)

मालनपुर में ही गोदरेज कंपनी ने अपनी साबुन इकाई भी लगाई थी। मैं उसकी प्रेस कान्‍फ्रेंस में मौजूद था। उस साबुन इकाई की याद इसलिये आई क्‍योंकि गोदरेज ने ऐलान किया था कि मालनपुर इकाई में वह अपना नया प्रॉडक्‍ट गंगा साबुन बनाएगी। बहुत जोर शोर से लांच किए गए इस साबुन के बारे में कंपनी ने दावा किया था कि उसके बनाने में गंगा नदी का पानी इस्‍तेमाल किया जाएगा। लेकिन यह लोगों की धार्मिक भावनाओं को देखते हुए गंगा का नाम भुनाने की बाजार की चाल थी।

खैर, मैंने पता लगाया और समाचार एजेंसी यूएनआई से एक खबर चला दी कि गंगा के पानी से साबुन बनाने का दावा एक छलावा भर है। असलियत में तो पवित्र गंगा के बजाय, डकैत गिरोहों के कारण बदनाम हो गई चंबल नदी का पानी इस साबुन को बनाने में इस्‍तेमाल होगा, जो गंगा की तुलना में मालनपुर के ज्‍यादा नजदीक बहती है।

मेरी इस खबर से सिंधिया बहुत खफा हुए थे और उन्‍होंने उलाहना देते हुए कहा था- ‘’तुम लोग किसी भी अच्‍छे काम को कभी फेवर नहीं कर सकते।‘’ मेरा कहना था- ‘’मैंने फैक्‍ट्री का विरोध थोड़े किया है, मैं तो उस झूठ को सामने ला रहा हूं जो अपना माल बेचने के चक्‍कर में लोगों से बोला जा रहा है…’’

हो सकता है इसी तर्ज पर आने वाले दिनों में कोई कंपनी यह विज्ञापन दे कि यही दवा लीजिये या यही नमकीन खाइये, यह नर्मदा के पानी से बना है। क्‍या हमें वह मंजूर होगा?

आइये दुआ करें, हमारी नर्मदा के साथ ऐसा कुछ न हो… और कोशिश करें, ऐसा कुछ न होने देने की…

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