एक तरफ मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की पहल पर मध्यप्रदेश सरकार,हमारी जीवनरेखा नर्मदा नदी को हमेशा लबालब रखने और उसे प्रदूषण से बचाने के लिए ‘नमामि देवि नर्मदे- नर्मदा सेवा यात्रा’ निकाल रही है और दूसरी तरफ नर्मदा को लेकर एक डराने वाली खबर छपी है। इस खबर ने नर्मदा के भविष्य को लेकर मुझे और आशंकित कर दिया है।
प्रदेश के एक बहुत बड़े अखबार में सोमवार को नुमायां हुई इस खबर में एक दवा बनाने वाली कंपनी के मालिक के हवाले से कहा गया है कि दवा बनाने के लिए नर्मदा का पानी गंगा से भी ज्यादा अच्छा है। हांगकांग में बसे भारतीय मूल के उद्योगपति और बालाजी स्टेरायड एंड हार्मोंस कंपनी के प्रमुख प्रेम अलदासनी ने अखबार को बताया कि उनकी कंपनी ने अपने भावी प्रोजेक्ट के लिए उत्तरप्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र में गंगा सहित अनेक नदियों के पानी की जांच कराई थी। जांच में पाया गया कि नर्मदा का पानी सबसे कम प्रदूषित व साफ है और इस पानी से बनाई गई दवाएं काफी प्रभावी होंगी।
इस रिपोर्ट के बाद कंपनी ने पीथमपुर के फार्मा क्लस्टर में 2000 करोड़ रुपए की लागत से अपना प्लांट लगाने की तैयारी शुरू कर दी है। इसके लिए कंपनी ने इंदौर के औद्योगिक केंद्र विकास निगम से करीब सवा लाख वर्गफीट जमीन भी ले ली है।
वैसे पहले भी यह बात सामने आई है कि नर्मदा का पानी देश की अन्य नदियों की तुलना में आज भी बेहतर है। राज्य का प्रदूषण नियंत्रण विभाग भी अपने परीक्षणों में नर्मदा के पानी को पीने के लिए बहुत साफ बता चुका है। और इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि नर्मदा किनारे आज भी बड़े उद्योग उतनी संख्या में नहीं हैं जितने गंगा और यमुना के किनारे हैं।
किसी भी राज्य में उद्योग धंधे आएं, लोगों को रोजगार मिले, यह कौन नहीं चाहता। सरकारें भी इसीलिए उद्योगपतियों को आकर्षित करने के लिहाज से इन्वेस्टर्स समिट और रोड शो जैसे आयोजन करती रहती हैं। इसलिए यदि वास्तव में कोई कंपनी यहां 2000 करोड़ रुपये का कारखाना लगाना चाहती है तो यह अच्छी बात है। और इससे भी अच्छी बात यह घोषणा है कि हमारी नर्मदा का पानी आज भी अपेक्षाकृत रूप से अधिक निर्मल और सुरक्षित है।
लेकिन नर्मदा के पानी का निर्मल और सुरक्षित होना और उसके पानी का दवा निर्माण के लिए मुफीद पाया जाना, यह खबर मुझे खुश करने के बजाय डरा रही है। मैं ऐसी खबरों को प्रदेश की जीवनदायिनी और देश की सबसे बड़ी नदियों में से एक नर्मदा के अस्तित्व पर भयानक खतरे के रूप में देखता हूं। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि भेडि़ये या गिद्ध वहीं मंडराते हैं, जहां मांस की मौजूदगी हो। नर्मदा के पानी का निर्मल होना ही इस नदी के लिए सबसे बड़ा खतरा है। हमें अभी से सावधान हो जाना चाहिए क्योंकि नर्मदा के पानी को दवा या अन्य किसी और उत्पाद के लिए सबसे मुफीद बताने वाली ये खबरें दरअसल उन गिद्धों के मंडराने के संकेत हैं जो हमारी इस अनुपम प्राकृतिक संपदा पर नजरें गड़ाए बैठे हैं।
सरकार को ऐसी खबरों से ज्यादा उत्साहित होने या उछलने की जरूरत नहीं है। इन खबरों और ऐसी कोशिशों को प्रदेश में निवेश के रूप में नहीं बल्कि नर्मदा पर मंडरा रहे खतरे के रूप में देखा जाना चाहिए। यह नर्मदा के पानी की तारीफ के बहाने इस नदी के शोषण की शुरुआत है। आने वाले दिनों में इस प्रचार के आधार पर कि नर्मदा का पानी दवा या अन्य उत्पादों के लिए सबसे श्रेष्ठ है, कई खतरनाक उद्योग यहां खिंचे चले आएंगे या उन्हें न्योता जाएगा। और ये उद्योग एक दिन हमारी नर्मदा का भी वही हाल कर देंगे जो गंगा और यमुना जैसी पवित्र नदियों का हुआ है।
मेरा डर इसलिए भी है कि मध्यप्रदेश में उद्योगों के लिए नदियों के शोषण की बात नई नहीं है। वो पीढ़ी जिसे प्रदेश का चार पांच साल से ज्यादा का इतिहास मालूम नहीं है, उसे यह बताना जरूरी है कि इसी प्रदेश में, जब इसका विभाजन नहीं हुआ था, तब 1998 में छत्तीसगढ़ की शिवनाथ नदी के पानी को बेचने का एमओयू कर लिया गया था। यह करार तत्कालीन मध्यप्रदेश औद्योगिक केंद्र विकास निगम और रेडियस वॉटर लिमिटेड के बीच हुआ था। रेडियस को ठेका दे दिया गया था कि वह शिवनाथ नदी से पानी खींचे और वहां लगने वाले उद्योगों को सप्लाई करे।
तत्कालीन मध्यप्रदेश सरकार का तर्क था कि उसके पास उद्योगों को पानी सप्लाई की व्यवस्था करने लायक पैसा नहीं है और इसी तर्क के आधार पर सरकार ने दुर्ग जिले में शिवनाथ नदी का 23 किमी लंबा टुकड़ा नौ करोड़ रुपये के प्रोजेक्ट के लिए इस प्रायवेट कंपनी के हवाले कर दिया था। योजना यह थी कि कंपनी अपने खर्चे से नदी पर build, own, operate and transfer (BOOT) फार्मूले के तहत बैराज बनाएगी और 3 करोड़ लीटर पानी प्रतिदिन बोराई औद्योगिक केंद्र के कारखानों को सप्लाई करेगी। यह बात अलग है कि इस सौदे को बाद में विधानसभा ने ही भ्रष्टाचार और भाई भतीजावाद का नायाब नमूना बताया था।
शिवनाथ का किस्सा मैंने इसलिये सुनाया क्योंकि सरकारें इतिहास दोहराने में कुछ ज्यादा ही रुचि लेती हैं। और यदि वे न भी चाहें तो बाजार की दुनिया इसमें उनकी रुचि जगा देती है। इसीलिये हमारी नर्मदा को लेकर हमें बहुत सतर्क रहने की जरूरत है। पता नहीं कब कौन इसका भी सौदा कर डाले…
wah kya bat he.badhai…