सरकार आप तो एकाध को अब निपटा ही दो…!!

मध्‍यप्रदेश के मुख्‍यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने नए साल की यात्रा से लौटने के बाद विभागीय समीक्षाओं का दौर शुरू कर दिया है। ऐसी समीक्षाएं वे पिछले कुछ सालों से लगातार कर रहे हैं। इनमें अंदर क्‍या होता है इसकी ठीक ठीक जानकारी मेरे पास नहीं है, लेकिन ऐसी बैठकें हो जाने के बाद, बाहर जो बताया जाता है उसमें कोई बहुत ज्‍यादा फेरबदल नहीं होता। नए साल में भी वही बातें कही जाती हैं जो पिछले साल कही गई थीं। और यह भी पक्‍का है कि आने वाले साल में यदि ऐसी बैठकें करने का अवसर मिला तो भी ये ही बातें कही जाएंगी।

इन बैठकों का एजेंडा एक तरह से फिक्‍स रहता है। ज्‍यादातर संबोधन अफसरों के नाम होता है और थोड़ा बहुत मंत्रियों के नाम। बैठक की जो खबर बनती है उसमें विभाग कोई भी हो मजमून करीब-करीब एक जैसा ही रहता है, जैसे- नए साल की प्राथमिकताएं तय करें, लक्ष्‍यों को समय पर पूरा करें, कमजोर वर्ग को ध्‍यान में रखते हुए योजनाएं बनाएं, भ्रष्‍टाचार को बर्दाश्‍त नहीं किया जाएगा, भ्रष्‍टाचार में लिप्‍त पाए जाने वालों पर सख्‍त कार्रवाई होगी आदि आदि…

लेकिन इस बार मुझे लगा कि बात थोड़ी आगे बढ़ी है। पहले सारी चेतावनियां अफसरों तक ही सीमित रहा करती थीं, लेकिन इस बार यह जानकर अच्‍छा लगा कि मुख्‍यमंत्री ने मंत्रियों को भी यह कहते हुए हड़काया है कि विभाग में भ्रष्‍टाचार हुआ तो उनकी भी खैर नहीं। भ्रष्‍टाचार की शिकायत मिलने पर अफसरों के साथ साथ मंत्रियों पर भी कार्रवाई होगी। मुख्‍यमंत्री ने यह भी कहा कि अफसरों को बार बार चेताया जा रहा है लेकिन वे सुधरने का नाम नहीं ले रहे हैं। ऐसे अफसर सीधे बर्खास्‍त किए जाएंगे।

सरकार यदि भ्रष्‍टाचार के खिलाफ सख्‍त हो तो अच्‍छा लगता है। और मुझे ही क्‍या, सबको अच्‍छा लगता है। लेकिन मुसीबत यह है कि हर कोई चाहता है ऐसे मामलों में कोई भी सख्‍त कार्रवाई पड़ोसी के घर हो। बस इसी में सब गड़बड़ हो जाता है। सरकार की कथनी, कथनी तक ही सीमित रह जाती है, वह करनी में तब्‍दील ही नहीं हो पाती।

वैसे यह विचार बुनियादी रूप से ठीक है। विभाग में भ्रष्‍टाचार हुआ तो सिर्फ कर्मचारी या अफसर ही दोषी क्‍यों हुए? विभाग का मंत्री दोषी क्‍यों न माना जाए?मेरे विचार से तो भ्रष्‍टाचार के खिलाफ उपजी इस भावना का और ज्‍यादा विस्‍तार होना चाहिए। कर्मचारी ही क्‍यों अफसर क्‍यों नहीं, अफसर ही क्‍यों मंत्री क्‍यों नहीं, मंत्री ही क्‍यों सरकार क्‍यों नहीं… और यदि ऐसा हो जाए तो कहना ही क्‍या… न रहेगा भ्रष्‍ट आचरण का बांस और न बजेगी भ्रष्‍टाचार की बांसुरी…

पर जैसा मैंने कहा, ये बातें सिर्फ बतोलेबाजी बनकर रह जाती हैं। अब राजधानी भोपाल का ही किस्‍सा ले लीजिये। शहर के सबसे बड़े सरकारी अस्‍पताल,हमीदिया अस्‍पताल में पिछले दिनों भारी गड़बड़ी सामने आई। विभाग का काम देख रहे अतिरिक्‍त मुख्‍य सचिव स्‍तर के अधिकारी से लेकर नीचे के कई अफसरों को हटा दिया गया। लेकिन जिम्‍मेदारी तो मंत्री की भी बनती है। उसका क्‍या?

और मंत्री ही क्‍यों, राजनीतिक दल और सरकारें इसके लिए जनप्रतिनिधियों की पूरी श्रृंखला की जिम्‍मेदारी क्‍यों नहीं तय करते? यदि शहर के सबसे बड़े अस्‍पताल में ऐसी घोर लापरवाहियां हो रही हैं तो कहां है उस इलाके का पार्षद, कहां है विधायक, कहां है मंत्री, कहां है सांसद ????

जाहिर है इन सवालों के जवाब न तो कभी आते हैं और न ही कभी आएंगे। एक और उदाहरण लीजिये। राजधानी में गुमटीबाजों द्वारा नगर नियोजन से किए जा रहे सरेआम बलात्‍कार का मामला पिछले दिनों मीडिया ने जोर शोर से उठाया। खुद मुख्‍यमंत्री ने एक सार्वजनिक कार्यक्रम में अफसरों को फ्री हैंड देते हुए कहा कि आप बेखौफ होकर कार्रवाई करें। नगर निगम वाले मन मसोस कर, अपनी रोजी रोटी पर लात मारते हुए, जैसे तैसे कार्रवाई के लिए निकले भी,लेकिन सत्‍तारूढ़ दल के ही कुछ शूरवीर कार्रवाई के खिलाफ अपनी जबान भांजते हुए मैदान में कूद पड़े। बोले- भोपाल क्‍या, पूरे एमपी की पुलिस ले आओ पर गुमटियां तो नहीं हटेंगी…

अब आप ही बताइये सरकार, एक तरफ तो सर्वोच्‍च स्‍तर से कार्रवाई का फ्री हैंड दिया जाता है और दूसरी तरफ आपका ही विधायक, आपके ही निर्देशों का पालन करने वाली प्रशासनिक व्‍यवस्‍था की सरेआम धज्जियां उड़ा देता है। और यह विधायक पहली बार ऐसा नहीं कर रहा होता है, वह पहले भी इसी तरह सरकार और उसके अमले को उसकी औकात बता चुका होता है… और शायद इसीलिए जो गुमटियां मूल रूप से अवैध तरीके से लगाई गई होती हैं, वे बाकायदा किसी और जगह पर शहर की छाती में खूंटे की तरह ठोक दी जाती हैं।

अब ऐसे में किसके आचरण को भ्रष्‍ट मानें और किस पर कार्रवाई की उम्‍मीद करें। एक सिरा मजबूत करने जाते हैं तो दूसरा ढीला पड़ जाता है। ऐसे में प्रशासनिक कसावट आए तो कैसे? और जब इस व्‍यवस्‍था में एक पार्षद या एक विधायक का बाल बांका नहीं हो सकता, तो मंत्री तो बहुत बड़ी चीज है। इसलिये मैंने कहा कि अब तो यकीन तभी आएगा जब वास्‍तव में आप एकाध को निपटा दो…

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