चूंकि नए साल में यह मेरा पहला कॉलम है इसलिए सबसे पहले तो आप सभी को नववर्ष की शुभकामनाएं !
आमतौर पर हम उस कहावत का अनुसरण करते हैं जो कहती है- ‘’बीती ताहि बिसार दे, आगे की सुधि लेय’’ लेकिन इस बार जो नया साल आया है उसमें इस कहावत पर अमल करना जरा मुश्किल है। मुश्किल इसलिए कि बीता हुआ साल जाते जाते इतना ज्यादा ‘चमका-धमका’ कर गया है कि वह चमक-धमक आने वाले कई सालों तक देश को महसूस होती रहेगी।
पिछले साल के ऐन आखीर में सोशल मीडिया पर तरह तरह के संदेश चल पड़े थे। ऐसा ही एक संदेश था- ‘’कुछ दोस्तों ने अपने एक मित्र से पूछा- नए साल के सेलीब्रेशन का क्या प्लान है? वह बोला- मित्रों…!! थोड़ी देर बाद बताऊंगा, पहले मोदीजी का देश के नाम संदेश आ जाने दो…।‘’
31 दिसंबर की शाम मोदी जी का राष्ट्र के नाम दिया गया संबोधन जैसे ही समाप्त हुआ, लोग चैन की सांस लेकर नए साल के जश्न की तैयारी में लग गए। हां, वे लोग जरूर मायूस हुए जो उम्मीद लगाकर बैठे थे कि प्रधानमंत्री 8 नवंबर के अपने ‘कुख्यात‘ नोटबंदी भाषण से पैदा हुई परिस्थितियों से त्रस्त लोगों के लिए कुछ लोक लुभावन घोषणाएं कर सकते हैं।
पहले जरा उन खास बातों पर नजर डाल लें जो प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में कहीं। मुख्य रूप से कमजोर वर्ग, निम्न एवं मध्यवर्ग, किसान और छोटे उद्योग धंधे वालों के लिए रियायतों का ऐलान करते हुए उन्होंने कहा कि-
‘’सहकारी बैंक और सहकारी समितियों से किसानों को और ज्यादा कर्ज मिल सके, इसके लिए उपाय किए गए हैं। नाबार्ड ने पिछले महीने 21 हजार करोड़ रुपए की व्यवस्था की थी जिसे दोगुना करते हुए सरकार इसमें 20 हजार करोड़ रुपए और जोड़ रही है।‘’
‘’लघु और मध्यम उद्योग (MSME) के महत्वपूर्ण योगदान को ध्यान में रखते हुए सरकार छोटे कारोबारियों के लिए क्रेडिट गारंटी 1 करोड़ रुपए से बढ़ाकर2 करोड़ रुपए करेगी। इस फैसले से छोटे दुकानदारों, छोटे उद्योगों को ज्यादा कर्ज मिलेगा।‘’
वे बोले कि-‘’प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत 2017 में शहरों में घर बनाने के लिए 9 लाख रुपए तक के कर्ज पर ब्याज में 4 प्रतिशत की छूट और 12लाख रुपए के कर्ज पर 3 प्रतिशत की छूट दी जाएगी। गांव में अपने घर का निर्माण कराने या अतिरिक्त निर्माण करवाने वालों को 2 लाख रुपए तक के ऋण में 3 प्रतिशत ब्याज की छूट मिलेगी।‘’
अब यदि इन सभी घोषणाओं में कोई कॉमन बात तलाशी जाए तो वह है ‘कर्ज’। सरकार खुद कह रही है कि उसने ऐसे उपाय किये हैं जिससे किसानों, छोटे दुकानदारों और छोटे उद्योगों को ‘ज्यादा से ज्यादा कर्ज मिल सके’। इसी तरह अपने घर का सपना देखने वालों के लिए भी कर्ज की कुछ लुभावनी घोषणाएं की गई हैं।
मेरी मूल चिंता और आपत्ति सरकार के इस रवैये को लेकर ही है। सरकारें चाहे कोई भी रही हों उन्होंने गरीबों, किसानों, छोटे व्यापारियों एवं उद्योगों को राहत देने के नाम पर हमेशा अधिक से अधिक कर्ज में डुबोने की नीतियां ही तैयार की हैं। और यह कर्ज भी बहुत बड़ा एहसान जताकर दिया जाता रहा है।
हमारे नीति नियंता और सरकारी अर्थशास्त्र के ‘कुटिल कौटिल्य’ ऐसा लुभावना जाल रचते रहे हैं कि किसान हो या छोटा कारोबारी, हमेशा कर्ज के दलदल में ही फंसे रहें। वे इस दलदल से जितना निकलने की कोशिश करते हैं सरकारें उन्हें हाथ पकड़कर बाहर लाने के बजाय इस दलदल में और गहरे तक धकेलती रही हैं। हमने हमेशा लोगों को कर्जदार बनाने की सोची, कर्जमुक्त बनाने की नहीं।
हमने चार्वाक के उस दर्शन को आदर्श स्थिति मान लिया जो कहता है कि- ‘’यावज्जीवेत सुखं जीवेत ऋणं कृत्वा घृतं पिवेत, भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुतः’’ फर्क सिर्फ इतना है कि चार्वाक के समय लोग भले ही कर्ज लेकर घी पी लेते हों, लेकिन आज तो कर्ज लेकर व्यक्ति जिंदगी भर ‘ब्याज’ का विष पीता रहता है और ज्यादातर मामलों में वह विष पीते पीते ही खत्म हो जाता है।
हमने कभी इस बात की चिंता नहीं की कि कर्ज में डूबे हमारे गरीब व कमजोर लोग, किसान और मजदूर, कैसे इस कर्ज की अर्थव्यवस्था से बाहर आ सकें। किसानों की यह मांग बरसों से चली आ रही है कि उन्हें कर्ज देकर ‘मजबूर’ बनाने के बजाय फसल का उचित मूल्य दिला कर ‘मजबूत’ बनाया जाए। छोटा मोटा प्रोत्साहन देने के बजाय लागत मूल्य को आधार बनाकर फसल का मूल्य तय हो। लेकिन इस पर कभी ध्यान नहीं दिया जाता। हम या तो किसान के लिए नए नए कर्ज की व्यवस्था करते हैं या फिर नई नई फसल बीमा योजनाओं की…। यही हाल छोटे कारोबारियों का है…
नोटबंदी के बाद बैंकों के पास अथाह पैसा जमा हुआ है। आने वाले दिनों में उनके पास पूंजी की उपलब्धता में कोई कमी नहीं रहेगी। खुद प्रधानमंत्री ने बैंकों से कहा है कि वे इस स्थिति का फायदा उठाकर कमजोर वर्ग के कल्याण की ओर ध्यान दें। लेकिन बैंकों का तो कारोबार ही ‘कर्ज और ब्याज’ की ऐसी व्यवस्था पर चलता है जिसमें उनका खुद का ‘कल्याण’ तो ‘सुनिश्चित’ होता है, जबकि कर्जदारों का ‘अनिश्चित’…
नए साल की पूर्वसंध्या पर दिया गया प्रधानमंत्री का राष्ट्र के नाम संदेश कर्ज की इस ‘अनिश्चित कल्याण’ वाली दलदली व्यवस्था को ही आगे बढ़ाने वाला है।