कार्यकर्ताओं से ऐसी बात पटवाजी ही कह सकते थे

मध्‍यप्रदेश के पूर्व मुख्‍यमंत्री सुंदरलाल पटवा बुधवार को नहीं रहे। आज पटवाजी से जुड़ी कुछ यादें…

यह 1990 की बात है। मैं समाचार एजेंसी यूएनआई के ब्‍यूरो चीफ के रूप में ग्‍वालियर पदस्‍थ था। मुख्‍यमंत्री बनने के बाद पटवाजी पीतांबरा पीठ के दर्शन करने और आशीर्वाद लेने दतिया की यात्रा पर आए। चूंकि दतिया मेरे कार्यक्षेत्र में आता था इसलिए मैं वह यात्रा कवर करने दतिया पहुंचा। इस इरादे से कि संभव हुआ तो मुख्‍यमंत्री से इंटरव्‍यू कर लूंगा। मैंने अपने स्‍तर पर इसके लिए कोशिश की, लेकिन कोई संतोषजनक समाधान नहीं निकला। तब मैंने भाजपा की दिग्‍गज नेता विजयाराजे सिंधिया के भाई ध्‍यानेंद्रसिंह से कहा कि मुझे पटवाजी से समय दिलवाएं। भाजपा में ‘मामा’ के नाम से मशहूर ध्‍यानेंद्रसिंह पटवाजी के मंत्रिमंडल में मंत्री भी रहे। उन्‍होंने कहा मैं पटवाजी से बात करके बताता हूं। मेरी इच्‍छा थी कि उसी दिन बात हो जाए और मैं ग्‍वालियर जाकर उस इंटरव्‍यू को एजेंसी पर प्रसारित भी कर दूं।

कुछ देर बाद ध्‍यानेंद्रसिंह ने बताया कि आज तो बात होना संभव नहीं है। लेकिन मुख्‍यमंत्री आज दतिया में ही रुक रहे हैं, लिहाजा आप भी यहीं रात रुक जाएं, कल सुबह उनसे बात हो जाएगी। हालांकि मैं इस तैयारी से नहीं गया था, लेकिन मुख्‍यमंत्री से खास बातचीत का मोह भी था। मैंने दतिया रुकने का फैसला किया और ध्‍यानेंद्रसिंह को सूचित कर दिया। उन्‍होंने कहा सुबह आठ बजे सर्किट हाउस आ जाएं वहीं बात हो जाएगी।

अगले दिन मैं समय से पहले ही सर्किट हाउस पर मौजूद था। थोड़े इंतजार के बाद पटवाजी आए। कुछ नेताओं व कार्यकर्ताओं से मुलाकात की और बाद में मुझे बुलवा लिया। वही चिरपरिचित झक सफेद धोती-कुर्ता पहने पटवाजी ने जाते ही कहा- अच्‍छा तो तुम आजकल यहां हो? शुरुआती दुआ सलाम के बाद बातचीत शुरू हुई। इंटरव्‍यू के बीच में ही चाय आ गई। पटवाजी ने पूछा- तुम्‍हारे सवाल खतम हुए कि नहीं… मैंने कहा- दो चार सवाल और हैं। वे बोले- तो चलो पहले चाय पी लेते हैं, उसके बाद बात कर लेंगे।

जिस समय मैं इंटरव्‍यू कर रहा था, उसी समय पटवाजी से मिलने के लिए सर्किट हाउस में भाजपा के स्‍थानीय नेताओं व कार्यकर्ताओं की भीड़ लगी थी। किसी ने अंदर आकर पटवाजी को बताया कि कई लोग आपसे मिलने का इंतजार कर रहे हैं। संभवत: समय का सदुपयोग करने के लिहाज से पटवाजी ने चाय पीते हुए ही कहा कि कुछ लोगों को बुला लो… फिर मेरी तरफ देखते हुए बोले- तुम अपने अगले सवाल तैयार कर लेना, तब तक मैं इन लोगों से बात कर लेता हूं।

थोड़ी ही देर में दतिया जिले के कुछ वरिष्‍ठ भाजपा नेता कमरे में दाखिल हुए। उनका अभिवादन स्‍वीकार करने और एक दो नेताओं को पहचान कर, नाम लेते हुए उनसे कुशलक्षेम पूछने के बाद पटवाजी फिर चाय पीने लगे। उनसे मिलने आए लोग सामने खड़े हुए थे। थोड़ी देर के लिए कक्ष में चुप्‍पी छा गई।

वह मौन पटवाजी ने ही तोड़ा और पार्टी नेताओं से पूछा- और कुछ बात करनी है क्‍या…? स्‍थानीय नेताओं ने इसके जवाब में एक दूसरे की तरफ देखा। पटवाजी का स्‍वर थोड़ा कड़ा हुआ- बोलो भई, कुछ और बात करनी है क्‍या? इस पर एक नेता ने हिम्‍मत करते हुए कहा- साब, बड़ी खुशी की बात है कि अपनी पार्टी की सरकार आई है, आप मुख्‍यमंत्री बने हो, हमारी बरसों पुरानी साध पूरी हुई… पटवाजी ने उसे बीच में ही टोकते हुए कहा- हां, मुझे मालूम है… आगे बोलो…

दतिया के नेताओं ने बड़ी हिम्‍मत से बात को आगे बढ़ाया और अपने साथ आए कुछ नौजवानों की ओर इशारा करते हुए कहा- साब, अब अपने इन लड़के बच्‍चों के बारे में भी कुछ सोचना चाहिए… इनको भी कुछ मिलना चाहिए… अब तो अपनी पार्टी की सरकार है…

यह बात सुनते ही पटवाजी के मुंह का स्‍वाद जैसे कसैला हो गया। उनके चेहरे के भाव ही बदल गए। उस व्‍यक्ति की बात पूरी भी नहीं हो पाई थी कि पटवाजी ने उसे चुप कराते हुए कहा- ‘’तो… अपनी सरकार आ गई है तो… क्‍या करें… कार्यकर्ताओं की माहवारी बांध दें? सरकार आ गई इसका क्‍या मतलब है? आप लोग इन नए छोरों को बिगाड़ो मत… सरकार आ गई है.. सरकार आ गई है… उछाले खाने की जरूरत नहीं है… सरकार टिकी रहे और लोगों के काम हों इस पे ध्‍यान लगाओ…’’

जाहिर है इसके बाद किसी की हिम्‍मत ही नहीं हो सकती थी कि आगे कुछ कहे। उन सारे नेताओं ने झुककर मुख्‍यमंत्री का अभिवादन किया और चुपचाप कमरे से बाहर निकल गए। चूंकि पटवाजी का मूड खराब हो चुका था, लिहाजा मेरे इंटरव्‍यू का बचा हुआ हिस्‍सा भी बरबाद हो गया। उन्‍होंने बेमन से एकाध सवाल का जवाब दिया और खड़े हो गए। बाहर निकलने के बाद मैं काफी देर तक उनके व्‍यवहार के बारे में सोचता रहा। क्‍या कोई मुख्‍यमंत्री अपनी ही पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं से ऐसा भी कह सकता है? लेकिन पटवाजी का यही स्‍वभाव था और यही शैली थी… आप सहमत हों तो ठीक वरना…

शासन और राजनीति की इस खुर्राट तासीर वाले नेता अब बहुत कम बचे हैं। 

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