मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान द्वारा नर्मदा नदी को प्रदूषण मुक्त एवं सदानीरा बनाने के लिए 11 दिसंबर को अमरंकटक से ‘नमामि देवि नर्मदे: नर्मदा सेवा यात्रा’ की शुरुआत किए जाने के संदर्भ में सुबह सवेरे ने‘मध्यप्रदेश के ब्रांड्स और ब्रांड मध्यप्रदेश’ को लेकर जो सवाल उठाया है उस पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है।
दरअसल जिस तरह से प्रदूषण और प्राकृतिक संपदा के सरेआम अंधाधुंध दोहन के बावजूद, सरकारी मशीनरी की उदासीनता के चलते, प्रदेश की जीवनरेखा नर्मदा नदी की सांसें उखड़ने लगी हैं, उसी तरह राज्य सरकार और नौकरशाही की उपेक्षा के कारण राज्य की वाणिज्यिक और औद्योगिक गतिविधियों की सांसें भी उखड़ रही हैं।
नर्मदा एक तरह से मध्यप्रदेश का प्रतीक है। वह यहां की मिट्टी और यहां की संस्कृति की पहचान है। नर्मदा के बिना मध्यप्रदेश की कल्पना नहीं की जा सकती। आज यदि नर्मदा को बचाने का कोई उपक्रम हो रहा है तो वह परोक्ष रूप से मध्यप्रदेश की मिट्टी, यहां की संस्कृति, समाज और जीवन को बचाने का ही उपक्रम है। लेकिन समाज सिर्फ प्राकृतिक संसाधनों या पर्यावरण पर ही अवलंबित नहीं होता। आधुनिक समाज की अन्य गतिविधियां भी विकास के लिए उतनी ही अनिवार्य हैं जितने कि प्राकृतिक संसाधन और पर्यावरण।
यदि हम सिर्फ प्राकृतिक संसाधनों पर ही ध्यान केंद्रित कर लेंगे तो बाकी जनजीवन और विकास की प्रक्रिया ठहर सी जाएगी। निश्चित रूप से विकास का मॉडल प्रकृति के साथ आवश्यक संतुलन बनाने वाला ही होना चाहिए, लेकिन केवल यही संतुलन बना रहे इस आग्रह (या दुराग्रह) से भी समाज आगे नहीं बढ़ सकता। सड़क बनाने के लिए यदि कुछ पेड़ों का कटना जरूरी है तो वह काम करना पड़ेगा। ध्यान केवल इस बात का रखा जाना चाहिए कि लक्ष्य सड़क बनाना ही हो, उसके बहाने पेड़ों या प्राकृतिक संपदा को अंधाधुंध तरीके से नष्ट कर अपना घर भरना नहीं।
जब हम अपने प्रदेश, अपनी मिट्टी और अपने समाज की बात करते हैं तो उसमें प्राकृतिक संसाधनों के साथ साथ भौतिक संसाधन और भौतिक गतिविधियां भी आ जाती हैं। समाज को चलाने के लिए व्यापार और उद्योग की आवश्यकता से इनकार नहीं किया जा सकता। इसीलिए जैसे नर्मदा के रूप में प्रदेश की प्राकृतिक संपदा को सहेजने और संवर्धित करने की बात हो रही है, उसी तरह प्रदेश के व्यापार और उद्योग को भी सहेजने के साथ संरक्षित व संवर्धित करने की आवश्यकता है। अंतत: इनसे हमारे समाज की तरक्की जुड़ी है, बढ़ती आबादी के साथ लगातार बढ़ रहे रोजगार का सवाल जुड़ा है। यदि प्रदेश के व्यापार और उद्योग ही उपेक्षित रहेंगे तो मध्यप्रदेश कहां से तरक्की करेगा, यहां के युवाओं को रोजगार कहां से मिलेगा, उनका भविष्य कैसा होगा?
मुझे याद है नवंबर 2009 में मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने राज्य के स्थापना दिवस पर बहुत ही सार्थक नारा दिया था। वह नारा- आओ बनाएं अपना मध्यप्रदेश- का था। उस नारे के पीछे मूल भावना प्रदेश की माटी के प्रति, यहां के समाज और जनजीवन के प्रति लगाव/जुड़ाव की भावना विकसित कर प्रदेश को विकास के पथ पर आगे बढ़ाने की थी। उसी दौरान मध्यप्रदेश गान भी तैयार हुआ था। माना गया था कि राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, बिहार जैसे राज्यों के वाशिंदों को जिस तरह अपने राजस्थानी,गुजराती, मराठी और बिहारी होने पर गर्व है उसी तरह का अपने मातृ प्रदेश और यहां की मिट्टी से जुड़ाव मध्यप्रदेश में दिखाई नहीं देता। यदि प्रदेश के लोगों में मध्यप्रदेशीय होने का भाव गौरव के साथ जाग्रत होगा तो राज्य और अधिक तेजी से तरक्की करेगा।
लेकिन ‘आओ बनाएं अपना मध्यप्रदेश’ और ‘मेक इन मध्यप्रदेश’ जैसे नारे देने वाली हमारी राजनीतिक व प्रशासनिक व्यवस्था कुछ सालों से वाणिज्य एवं उद्योग के मामले में जितनी तवज्जो बाहरी लोगों को दे रही है, उतनी तवज्जो स्थानीय या मध्यप्रदेशीय लोगों को नहीं मिल पा रही। और यह मामला केवल वाणिज्य एवं उद्योग जगत तक ही सीमित नहीं है।
कुछ साल पहले जब राज्य की नौकरियां राज्य के लोगों को ही मिलने की बात उठी थी तो भारी बवाल मचा था। बिहार के लोगों के संदर्भ में की गई ऐसी ही एक टिप्पणी पर खुद मुख्यमंत्री को बाद में सफाई देनी पड़ी थी, जबकि मूल रूप से वह बात मध्यप्रदेश के लोगों के हक को संरक्षित करने की मंशा से कही गई थी।
आज जब हम ‘नर्मदा सेवा यात्रा’ के रूप में एक बार फिर मध्यप्रदेश की विशिष्ट पहचान को रेखांकित करने चले हैं, तो ऐसे में यह सोचना लाजमी हो जाता है कि क्यों न सरकार यहां की अन्य विकास संबंधी गतिविधियों में भी मध्यप्रदेश के लोगों पर विशेष ध्यान दे। ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट जैसे आयोजन किसी बड़े निवेश को न्योतने के लिए तो अपनी जगह ठीक हो सकते हैं, लेकिन उनके लिए लाल कारपेट बिछाने के चक्कर में हम अपने लोगों के पैरों तले की जमीन ही खिसका लें यह कहां की बुद्धिमानी है। उलटे उन्हें तो विशेष रियायतें और सुविधाएं मिलनी चाहिए।
बाहर से आने वाला व्यक्ति पता नहीं निवेश लेकर आएगा या नहीं, और आएगा भी तो यहां टिकेगा कि नहीं और टिका भी तो यहां के लोगों को रोजगार देगा या नहीं, इन बातों की कोई गारंटी नहीं है। लेकिन यदि व्यक्ति मध्यप्रदेश का है तो उसे यहीं रहना है… यहीं जीना है, यहीं मरना है… उसके बारे में सोचने से हमारा कुछ घट नहीं जाएगा…