ऐसा लगता है कि नोटबंदी के फैसले के कई पहलुओं को लेकर हो रही आलोचनाएं सरकार के मानस पर भी असर डाल रही हैं और ऊपर से अडिग दिखने वाली सरकार अंदर ही अंदर ‘डैमेज कंट्रोल एक्सरसाइज’ पर भी काम कर रही है। पिछले कुछ दिनों के घटनाक्रम बता रहे हैं कि सरकार इस मुद्दे को लेकर मोटे तौर पर दो मोर्चों पर लगी है और इसके तहत उसने अलग अलग लोगों या संस्थाओं को अलग अलग टॉस्क सौंपे हैं।
सरकार और सत्तारूढ़ दल की एक टीम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नोटबंदी की घोषणा को कालेधन पर अब तक का सबसे बड़ा प्रहार और देश की अर्थव्यवस्था के भविष्य के लिए संजीवनी साबित करने पर पूरी ताकत से लगी है। वहीं दूसरी टीम इस फैसले को लेकर पहले ही दिन से आने वाली शिकायतों और आलोचनाओं के अलावा लोगों को होने वाली व्यावहारिक दिक्कतों को यथासंभव हल करने की दिशा में काम कर रही है।
सरकार और भाजपा को यह लग गया है कि नोटबंदी के फैसले को आम जनता के व्यापक समर्थन के तमाम दावों और सर्वेक्षणों की कथित ‘अनुकूल रिपोर्टों’ के बावजूद कहीं तो कुछ ऐसा हो रहा जो पार्टी की सेहत के लिए ठीक नहीं है।
यही कारण था कि बुधवार को खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मोर्चा संभाला और भाजपा संसदीय दल की बैठक में पार्टी सांसदों से कहा कि वे नोटबंदी और डिजिटल लेने-देन का प्रचार भी उसी तरह करें जैसे अपना चुनाव प्रचार करते हैं। जाहिर है, यदि पार्टी को नोटबंदी के फैसले का जनता में भारी अनुकूल असर होने का इतना ही भरोसा होता तो सांसदों से यह कहने की नौबत नहीं आती कि वे जाकर लोगों को इस फैसले के फायदे समझाएं।
इसी तरह गुरुवार को आया सरकार का एक अत्यंत महत्वपूर्ण फैसला भी इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए। इसके मुताबिक अब यदि आप 2,000 रुपये तक की कोई वस्तु या सेवा की खरीद-फरोख्त अपने डेबिट या क्रेडिट कार्ड से कर रहे हैं तो इस पर आपको सर्विस टैक्स नहीं देना होगा। अभी तक ऐसे ट्रांजैक्शन पर 15फीसदी तक का टैक्स उपभोक्ताओं से लिया जाता रहा है। इसके अलावा सरकार ने डिजिटल ट्रांजैक्शन करने पर पेट्रोल डीजल की खरीद से लेकर जीवन एवं साधारण बीमा पॉलिसियों की खरीद तक कुल 11 मामलों में कई तरह की छूट देने का ऐलान भी किया है।
दरअसल सरकार की ओर से यह फैसला बहुत पहले ले लिया जाना चाहिए था। हमने 6 नवंबर को इसी कॉलम में लिखा था कि ‘’कायदे से होना तो यह चाहिए कि कैशलेस लेन देन को स्वीकार कर, कालेधन के विरुद्ध सरकार द्वारा चलाए जाने वाले अर्थयुद्ध में आहुति देने वाली आम जनता को इसका फायदा मिले और जो लोग प्लास्टिक मनी के जरिए या डिजिटल ट्रांजैक्शन के जरिए लेने देन करें उनसे ऐसे ट्रांजैक्शन के एवज में लिया जाने वाला कोई शुल्क न लिया लाए। …यदि सरकार कैशलेस या डिजिटल लेनदेन को बढ़ावा देने या उसे चलन में लाने के लिए इन्सेंटिव के तौर पर लोगों को कुछ छूट देती है तो उसका काम भी आसान होगा और लोग भी इस प्रक्रिया में होने वाले फायदे को देखते हुए उसके प्रति ज्यादा आकर्षित होंगे।‘’
हमने यह आशंका भी जताई थी कि यदि बिना कोई रियायात देते हुए लोगों को कैशलेस या प्लास्टिक ट्रांजैक्शन की ओर धकेला जाता है तो उसका मतलब यह होगा कि सरकार परोक्ष रूप से जनता पर अरबों रुपए का नया टैक्स थोपने जा रही है।
यानी सरकार अब उन बातों पर भी गौर कर रही है जो नोटबंदी के ‘सकारात्मक’ फैसले को उसके लिए राजनीतिक रूप से ‘नकारात्मक’ बना सकते हैं। डेबिट या क्रेडिट कार्ड से 2000 रुपए तक की खरीद फरोख्त को सर्विस टैक्स से छूट दिए जाने का फैसला इसी कड़ी में माना जाना चाहिए। हालांकि 2000 की यह सीमा बहुत कम है, इसे बढ़ाकर 5000 रुपए तक के लेन देन पर लागू किया जाए तो लोगों को और ज्यादा राहत मिलेगी और वे अधिक उत्साह से डिजिटल या प्लास्टिक मनी के जरिए ट्रांजैक्शन की ओर आकर्षित होंगे।
नोटबंदी को लेकर मीडिया में जो खबरें या चर्चाएं चल रही हैं, उनकी ‘टोन’ या ‘तेवर’ को लेकर सत्तारूढ़ दल और उसके समर्थकों को घोर आपत्ति हो सकती है, लेकिन मीडिया की चर्चाओं को सकारात्मक तरीके से लिया जाकर, उन पर विवेकशील फैसला किया जाए तो सरकार को लाभ ही होगा। 2000 तक के ट्रांजैक्शन पर कर से छूट, ऐसी ही चर्चाओं से सामने आए मुद्दे पर लिया गया विवेकशील फैसला है।
आप यदि कालेधन के सांड को नथना चाहते हैं तो यह काम सिर्फ नथुने फुलाकर या गाल बजाकर नहीं कर सकते। आपके इस अभियान को न तो कॉरपोरेट सफल बना सकते हैं न ब्यूरोक्रेट। इसे तो जनता ही सफल या असफल बना सकती है। जरूरत इस बात को गले उतारने की है कि इसमें जनता का फायदा है।
कोई भी चीज जनता के गले उतारने से पहले यह सामान्य सी बात तो ध्यान में रखना ही होगी कि कड़वी चीज को लोग जीभ पर भी मुश्किल से ही रखने को तैयार होते हैं। फिर यह तो नोट और जेब का मामला है।
wah kya bat he sirji