सिपहसालारों से संवाद के नतीजे भी मिलने चाहिए

मध्‍यप्रदेश के मुख्‍यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने दीवाली से पहले राज्‍य के कलेक्‍टर,कमिश्‍नर, जिला पंचायतों के सीईओ, पुलिस अधीक्षक, आईजी जैसे अधिकारियों को बुलाकर दो दिन उनके साथ प्रशासनिक कामकाज के अलावा कानून और व्‍यवस्‍था की स्थिति पर मंथन किया। यह मंथन इसलिए महत्‍वपूर्ण है क्‍योंकि पिछले कई महीनों से प्रदेश में न केवल विपक्ष बल्कि सत्‍तारूढ़ दल के नेता ही यह आरोप लगाते रहे हैं कि राज्‍य में अफसरशाही बेकाबू हो गई है। जनप्रतिनिधियों की कोई पूछ परख ही नहीं होती। नौकरशाही को निशाने पर लेने वाले भाजपा नेताओं के ही ऐसे कई बयानों ने सरकार और मुख्‍यमंत्री को समय समय पर मुश्किल में डाला है। ऐसे में जिलों के अधिकारियों से सीधा संवाद और भी अहम हो जाता है, क्‍योंकि यह उन मैदानी अधिकारियों से रूबरू होने वाला ‘आयोजन’ है जो सरकार की छवि बनाने और बिगाड़ने में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

मुख्‍यमंत्री ने इन मैदानी अफसरों को 11 सूत्री एजेंडा दिया है। बात को आगे बढ़ाएं उससे पहले जरा इस एजेंडा पर नजर डाल लीजिए। इसमें सुशासन और भ्रष्टाचार रहित स्वच्छ प्रशासन, पाँच वर्ष में कृषि आय को दोगुना करना, लघु-कुटीर उद्योगों को बढ़ाना, निवेश से समृद्धि, समय पर गुणवत्ता के साथ विकास कार्य,शिक्षा-स्वास्थ्य में सुधार, पर्यटन को बढ़ावा, गरीब कल्याण एजेंडा, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, कुपोषण को समाप्त करना और बेहतर कानून-व्यवस्था जैसे मुद्दे शामिल हैं।

ध्‍यान देने वाली बात यह है कि मुख्‍यमंत्री के एजेंडे का पहला ही बिंदु‘सुशासन और भ्रष्‍टाचार रहित स्‍वच्‍छ प्रशासन’ है। वैसे देखा जाए तो बाकी जितनी भी बातें कही गई हैं वे सब इस ‘सुशासन’ शब्‍द के दायरे में आ जाती हैं। यानी प्रदेश के मुखिया का मानना है कि प्रदेश में वह स्थिति नहीं है जिसे ‘सुशासन’कहते हैं। और शायद यही कारण है कि अधिकारियों को याद दिलाना पड़ रहा है कि वे विकास के काम समय पर और पूरी गुणवत्‍ता से करवाएं, शिक्षा और स्‍वास्‍थ्‍य के क्षेत्र में हालात सुधारें, कुपोषण जैसी समस्‍याओं पर ध्‍यान दें। लेकिन इस स्थिति को क्‍या कहा जाए, जहां प्रदेश भर से राजधानी में बुलाए गए अफसरों को, वे बुनियादी बातें बताना या समझाना पड़ रही हैं जो उनका मूल काम या कर्तव्‍य है।

अगर प्रदेश का राजनीतिक नेतृत्‍व यानी मुख्‍यमंत्री और प्रशासनिक नेतृत्‍व यानी मुख्‍य सचिव अपने मातहतों को ये बातें याद दिला रहे हैं तो यह पता लगाना आवश्‍यक हो जाता है कि जिले का प्रशासनिक और पुलिस अमला आखिर कहां व्‍यस्‍त है। इस सवाल का आधिकारिक जवाब कुछ भी हो लेकिन मुख्‍यमंत्री द्वारा दिए गए एजेंडा के पहले ही बिंदु में इसके साफ संकेत मिल जाते हैं। पहला बिंदु जिस बात पर जोर दे रहा है वह है सुशासन और भ्रष्‍टाचार रहित प्रशासन। यानी प्रदेश का मैदानी प्रशासनिक अमला यदि ‘सुशासन’ में व्‍यस्‍त नहीं है, तो संभवत: वह वहां व्‍यस्‍त है जिससे ‘रहित’ होने की अपेक्षा उससे की जा रही है। जब राज्‍य की नौकरशाही को यह काम ‘टास्‍क’ के रूप में दिया जाए कि वह प्रदेश की जनता को ‘भ्रष्‍टाचार रहित प्रशासन’ दे, तो यह भ्रष्‍टाचार के न सिर्फ मौजूद होने बल्कि उसके दिनोंदिन विस्‍तारित होते जाने का प्रमाण नहीं तो और क्‍या है?

यह दावे सरकार के साथ-साथ प्रदेश की जनता को भी सुनने में बहुत अच्‍छे लगते हैं कि मध्‍यप्रदेश बीमारू राज्‍य के टैग से बाहर आ गया है, हमारी विकास दर कई राज्‍यों की तुलना में बहुत अच्‍छी है, कृषि विकास दर के मामले में हमने कई राज्‍यों को पछाड़ दिया है, वगैरह। लेकिन सरकारी प्रचार के इस सकारात्‍मक शोरमें जनता की जो कराह सुनाई नहीं देती, वो यही है कि लोग कदम कदम पर भ्रष्‍टाचार का शिकार होने के लिए अभिशप्‍त हैं।

इसलिए मुझे लगता है कि यदि राज्‍य की नौकरशाही इस 11 सूत्री एजेंडे के पहले ही बिंदु पर ईमानदारी से अमल कर दे, तो प्रदेश की जनता और राजनीतिक नेतृत्‍व दोनों उसके आभारी रहेंगे। शायद मुख्‍यमंत्री की मंशा भी यही रही होगी। प्रदेश की नौकरशाही के रवैये को लेकर शिवराज हमेशा घाव झेलते रहे हैं। वे सार्वजनिक रूप से कह चुके हैं कि प्रदेश की समस्‍याओं को लेकर उन्‍हें रातों को नींद नहीं आती। अब जबकि वर्तमान सरकार का आधे से अधिक कार्यकाल पूरा हो गया है, तब तो कम से कम यह स्थिति बने कि राज्‍य का मुखिया और यहां की जनता चैन से सो सके। दो दिन तक मुख्‍यमंत्री ने अपने मैदानी अफसरों के साथ बैठकर जो प्रशासनिक मंथन किया है उसकी सार्थकता तभी है, जब ये सिपहसालार,राजा की सारी अपेक्षाओं को यथार्थ में बदलने का पौरुष दिखाएं।

यह भी एक संयोग ही है कि इस प्रशासनिक कुंभ के अंत के साथ ही राज्‍य की नौकरशाही को अपना नया मुखिया भी मिल गया है। गुरुवार को सरकार ने एंटनी डिसा की सेवानिवृत्ति की पुष्टि करते हुए बसंत प्रतापसिंह को राज्‍य का नया मुख्‍य सचिव बनाने का ऐलान किया है। परंपरा यह रही है कि चुनाव के बाद मुख्‍यमंत्री अपने मुख्‍य सचिव को अमल के लिए पार्टी का चुनाव घोषणा पत्र थमा देते हैं। हो सकता है शिवराज 2013 के चुनाव संकल्‍प पत्र की एक प्रति नए मुख्‍य सचिव को भी भेंट कर दें। लेकिन बसंत प्रतापसिंह के लिए मुख्‍यमंत्री का दिया गया ताजा 11 सूत्री एजेंडा ही काफी होगा। और उसमें भी उन्‍होंने पहले ही सूत्र यानी सुशासन और भ्रष्‍टाचार रहित प्रशासन पर ही अमल करवा लिया तो यह प्रदेश उनका आभारी रहेगा।

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