अपनी असफलता सवालों से छुपाते हमारे नेता

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डॉ. नीलम महेन्‍द्र 

‘’हमें तो अपनों ने लूटा, गैरों में कहाँ दम था.. हमारी कश्ती तो वहाँ डूबी, जहाँ पानी कम था”

भारत का इतिहास गौरवशाली रहा है जहाँ हम अपने देश को माँ का दर्जा देते हैं। इस देश की मिट्टी को माथे पर लगाते हैं। एक ऐसा देश जो ज्ञान की खान है और जिसमें बड़ी से बड़ी बात छोटी छोटी कहानियों के माध्यम से ऐसे समझा दी जाती हैं कि एक बच्चा भी समझ जाए। इसी बात पर महाभारत का एक प्रसंग याद आ रहा है जब एक बार दुर्योधन को कुछ आदिवासी बंदी बना लेते हैं। उसी वन में पाण्डव भी वनवास काट रहे थे। पाण्डवों को जब इस बात का पता चला तो युद्धिष्ठिर अपने भाइयों के साथ जाकर दुर्योधन को छुड़ा लाए। भीम द्वारा विरोध करने पर उन्‍होंने कहा कि भले ही वे सौ और हम पाँच हैं लेकिन दुनिया के सामने हम एक सौ पाँच ही हैं।

वर्षों पुरानी यह कहानी आज हमारे देश के नेताओं को याद दिलानी आवश्यक हो गई है। उन्हें यह याद दिलाना आवश्यक है कि देश पहले आता है स्वार्थ बाद में, राष्ट्रहित पहले आता है निज हित बाद में, राष्ट्र के प्रति निष्ठा पहले होती है पार्टी के प्रति निष्ठा बाद में।

क्यों आज हमारे देश में राजनीति और राजनेता दोनों का ही स्तर इस हद तक गिर चुका है कि कर्तव्यों के ऊपर अधिकार और फर्ज के ऊपर स्वार्थ हावी है? कर्म करें न करें श्रेय लेने की होड़ लगी हुई है। हर बात का राजनीतिकरण हो जाता है फिर चाहे वह बात देश की सुरक्षा से जुड़ी हुई ही क्यों न हो वे अपने राजनैतिक फायदे के लिए सेना के मनोबल को गिराने से भी नहीं चूकते।

क्या वे भारत की जनता को इतना मूर्ख समझते हैं कि वह उनके द्वारा कही गई किसी भी बात में राजनैतिक कुटिलता को देख नहीं पाएगी, उसमें से उठने वाली साजिश की गंध को सूंघ नहीं पाएगी और चुनावी अंकगणित के बदलते समीकरणों के साथ ही बदलते उनके बयानों के निहितार्थों को पहचान नहीं पाएगी?

हमारे लोकप्रिय पूर्व प्रधानमंत्री स्व. लालबहादुर शास्त्री जी ने नारा दिया था “जय जवान, जय किसान”, कितने शर्म की बात है कि आज उसी जवान की शहादत पर प्रश्न चिह्न लगाया जा रहा है! जिस जवान के रात भर जाग कर हमारी सीमाओं की निगरानी करने के कारण आप चैन की नींद सो रहे हैं उसी को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं?

सर्जिकल स्ट्राइक का आधिकारिक बयान डीजीएमओ की ओर से आया था सरकार की ओर से नहीं और इस बयान में उन्होंने यह भी कहा था कि उन्होंने पाक डिजीएमओ को भी इस स्ट्राइक की सूचना दे दी है। तो हमारी सेना के सम्पूर्ण विश्व के सामने दिए गए इस बयान पर हमारे ही नेताओं द्वारा प्रश्नचिन्श्र लगाने का मतलब?

विडम्बना तो देखिए, हमारी सेना की कार्रवाई के बाद पाकिस्तान की स्थिति उसके नेताओं के बयान बयाँ कर रहे हैं। नवाज शरीफ, “हम भी कर सकते हैं सर्जिकल स्ट्राइक।” बौखलाया हाफिज सैइद,” सर्जिकल स्ट्राइक क्या होती है यह भारत को हम बताएगा”। घबराए राहिल शरीफ “पाक के सामने भारत के साथ युद्ध की चुनौती है और हमने परमाणु हथियार केवल दिखाने के लिए नहीं बनाए हैं।” मुशर्रफ,”पाक अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अलग थलग पड़ रहा है”।

अब जरा भारत के नेताओं को देखें।

अरविंद केजरीवाल ने बहुत ही नफ़ासत के साथ अपने खूंखार पंजे को मखमल की चादर में लपेटते हुए पाकिस्तान और अन्तर्राष्ट्रीय मीडिया की आड़ में भारत सरकार से सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत मांगें हैं। कांग्रेस नेता संजय निरुपम,”सरकार जिन सर्जिकल स्ट्राइक्स का दावा कर रही है वह तब तक सवालों में घिरा रहेगा जब तक कि सरकार सबूत नहीं पेश कर देती।”

अब जरा इतिहास में झांक कर देखें, अक्तूबर 2001 में कश्मीर विधानसभा पर आतंकवादी हमला हुआ था जिसमें 35 से अधिक जानें गईं थीं लेकिन हम चुप थे। फिर दिसम्बर 2001 में हमारे लोकतंत्र के मन्दिर, हमारी संसद पर हमला हुआ 6 जवान शहीद हुए, हम चुप रहे।   26/11 को हम भूले नहीं हैं, हम तब भी चुप थे। शायद हमारे इन नेताओं को इस खामोशी की इतनी आदत हो गई है कि न तो उनको पाकिस्तान की ओर से आने वाले शोर में छिपी उनकी टीस बर्दाश्त हो रही है और न ही भारत की जनता की खुशी के शोर के पीछे छिपे गर्व का एहसास। इस खामोशी के टूटते ही उन्हें अपने सपने टूटते हुए जरूर दिख रहे होंगे और उनके द्वारा मचाया जाने वाला शोर शायद उसी से उपजे दर्द का नतीजा हो।

क्या इस देश की जनता नहीं देख पा रही कि मोदी के इस कदम ने राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जो उनका कद बढ़ा दिया है वह विपक्ष को बेचैन कर रहा है? कांग्रेस और आप दोनों को, सम्पूर्ण विश्व में आज भारत के बढ़ते मान के कारण, देश में अपना कद घटता हुआ दिखने लगा है। आने वाले विधानसभा चुनाव परिणाम पर भारत सरकार के इस ठोस कदम का असर और उनकी राजनैतिक महत्वाकांक्षाएं उनकी राष्ट्र भक्ति पर हावी हो रही हैं।

अति दूरदर्शिता का परिचय देते हुए वे इस बात को स्वीकार कर रहे हैं कि विधानसभा चुनाव तो ठीक हैं लेकिन 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले ही सर्जिकल स्ट्राइक का विडियो इस प्रकार के दबाव बनाकर निकलवा लिया जाए जिससे, इसकी राजनीतिक हानि उठानी ही है तो आज ही पूरी उठा लें ताकि आने वाले लोकसभा चुनावों में बीजेपी इसका फायदा न उठाने पाए। फिर कौन जाने कि विडियो रिकॉर्डिंग को डाक्‍टर्ड कहा जाए और एक नया मुद्दा बनाया जाए।

यह इस धरती का दुर्भाग्य है कि जैसे सालों पहले ब्रिटिश और मुग़लों को भारत में सोने की चिड़िया दिखाई देती थी और उसे लूटने आते थे वैसे ही आज हमारे कुछ नेताओं को भारत केवल भूमि का एक टुकड़ा दिखाई देता है जिसका दोहन वे अपने स्वार्थ के लिए कर रहे हैं।

काश कि उन्हें धरती के इस टुकड़े में अपनी माँ नज़र आती, हमारी सीमाओं पर निगरानी करने वाले सैनिकों में अपने भाई नज़र आते। एक सैनिक का लहू भी हमारे नेताओं के लहू में उबाल लेकर आता। लेकिन एसी आफिस और एसी कारों के काफिले में घूमने वाले इन नेताओं को न तो 50 डिग्री और न ही -50डिग्री के तापमान में एक मिनट भी खड़े होने का अनुभव है, वे क्या जानें इन मुश्किल हालात में अपने परिवार से दूर दिन रात का फर्क करे बिना अपना पूरा जीवन राष्ट्र के नाम कर देने का क्या मतलब होता है।

चूँकि इन्हें न तो अपने देश की जनता द्वारा चुनी हुई सरकार पर भरोसा  है, ना प्रधानमंत्री पर भरोसा है और न ही सेना पर… तो बेहतर यही होगा कि अगली बार जब इस प्रकार की कार्रवाई की जाए तो पहली गोली इन्हीं के हाथों से चलवाई जाए।

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