पाक से हम शरीर से निपटना चाहते हैं या दिमाग से

आज थोड़ा अकादमिक होने का मन है। उड़ी में पाकिस्‍तानी आतंकवादियों के हमले में हमारे 18 सैनिकों के शहीद हो जाने की घटना के बाद से देश में तरह तरह की बहस चल रही है। संयुक्‍त राष्‍ट्र में पाकिस्‍तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के भाषण के अलावा पाकिस्‍तान की तरफ से आने वाली प्रतिक्रियाओं के जवाब में हमारे यहां से भी नित नई उन्‍मादी प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। इस संबंध में कभी प्रधानमंत्री के कोझीकोड भाषण को टारगेट किया जा रहा है, तो कभी संयुक्‍त राष्‍ट्र महासभा में विदेश मंत्री सुषमा स्‍वराज के भाषण का हवाला दिया जा रहा है। पाकिस्‍तान पर सैन्‍य कार्रवाई करने या न करने को लेकर देश सीधे सीधे दो धड़ों में बंटा नजर आ रहा है। नरेंद्र मोदी को छप्‍पन इंच के सीने से लेकर, एक सिर के बदले दस सिर जैसे जुमले याद दिलाए जा रहे हैं।

याददाश्‍त ताजा करने के इस दौर में, मुझे भी कुछ घटनाएं याद आ रही हैं, जिन्‍हें मैं भी आज ताजा करना चाहता हूं। नहीं, मेरा इरादा इन दिनों तमाम सोशल मीडिया पर चबाई जा रही बहस की जुगाली करने का कतई नहीं है। मैं एक खास एंगल से की गई टिप्‍पणी पर बात करना चाहता हूं। इस टिप्‍पणी में, वर्तमान हालात को लेकर नरेंद्र मोदी की ठंडी प्रतिक्रिया के बारे में किसी ने लिखा कि वे मूलत: गुजराती हैं और गुजराती बुनियादी रूप से व्‍यापारी होता है, इसलिए उड़ी कांड पर मोदी की प्रतिक्रिया भी कमोबेश एक व्‍यापारी जैसी ही है।

विश्‍लेषण के इस एंगल से मुझे स्‍वामी विवेकानंद की याद आ गई। वही विवेकानंद जो मोदी सरकार बनने के दौर से लेकर भाजपा के सत्‍ता में आने के बाद तक पहले आदर्श पुरुष के रूप में प्रतिष्‍ठत थे। ‘थे’ मैंने इसलिए कहा क्‍योंकि भाजपा और उसका आज का नेतृत्‍व साल- छह माह में ही अपने आदर्श पुरुष बदलता रहा है। और इसी प्रक्रिया में वह पुराने आदर्श पुरुषों को विस्‍मृत करता रहा है। उदाहरण के लिए भाजपा ने पहले विवेकानंद की बात की, फिर सरदार पटेल आए, फिर गांधी, फिर आंबेडकर और इन दिनों दीनदयाल उपाध्‍याय इस सूची में शीर्ष पर हैं। बीच में खुद को आरोपों से बचाने के लिए नेहरू को भी याद कर लिया गया, लेकिन वो पत्‍ता ज्‍यादा चलाया नहीं गया।

कुल मिलाकर आज विवेकानंद याद नहीं किए जा रहे। लेकिन मुझे विवेकानंद की याद, नरेंद्र मोदी को मूलत: गुजराती चरित्र का व्‍यक्ति बताए जाने पर आई। मेरे हिसाब से पाकिस्‍तान के आतंकवादी हमले के जवाब में हमारी प्रतिक्रिया का मामला सिर्फ मोदी के गुजराती होने भर से नहीं बल्कि पूरी भारतीय नस्‍ल (Race) के चरित्र से जुड़ा है। अल्‍पायु में ही भारत का भ्रमण कर उसे जानने और बाद में विदेश में भारतीय संस्‍कृति का झंडा फहराने वाले स्‍वामी विवेकानंद ने, इसी चरित्र को पहचानते हुए  अपने अवसान से लगभग चार वर्ष पहले भारतीय धर्म, संस्‍कृति और सभ्‍यता के निचोड़ के रूप में अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण बात कही थी। उन्‍होंने एक पत्र में लिखा था- ‘‘हमारी जन्मभूमि का कल्याण तो इसमें है कि उसके दो धर्म, हिन्दुत्व और इस्लाम मिलकर एक हो जाएँ। वेदान्ती मस्तिष्क और इस्लामी शरीर के संयोग से जो धर्म खड़ा होगा, वही भारत की आशा है।’’

भारत ऐतिहासिक रूप से विदेशी आक्रांताओं से इतना पीडि़त रहा है कि उसकी मूल संस्‍कृति का स्‍वरूप ही बदल गया। पहले मुगलों और बाद में अंग्रेजों के लंबे शासन ने हमारी समूची नस्‍ल को बहुत गहरे तक प्रभावित किया। यह प्रभाव सकारात्‍मक और नकारात्‍मक दोनों तरह का रहा। बीच में एक दौर ऐसा आया जब लगने लगा कि अंग्रेजों को तो नहीं, लेकिन मुस्लिम समाज को भारतीय समाज ने आत्‍मसात कर लिया है, उसे अपना हिस्‍सा मान लिया है। लेकिन भारत विभाजन ने समरसता के उस प्‍लास्‍टर को उखाड़ फेंका और वैमनस्‍य की उधड़ी हुई दीवारें और दरारें मुंह चिढ़ाने लगीं। समय के साथ ये दरारें और चौड़ी होती गईं और राजनीति ने उन दरारों को पाटने के बजाय उनमें अपने सब्‍बल और अपनी बल्लियां घुसाने का ही काम किया।

इसलिए अब जब भी भारत और पाकिस्‍तान की बात होती है, वह दो देशों और उनके बीच होने वाली घटनाओं से अधिक हिन्‍दू मुस्लिम आधार पर ही होती हैं। हम चाहे युद्ध के मैदान में हों या क्रिकेट के मैदान में, हमारा सांप्रदायिक चेहरा ही आगे होता है। उड़ी की घटना के बाद व्‍यक्‍त होने वाली प्रतिक्रियाओं और युद्ध की ख्‍वाहिशों में हम जो उन्‍माद देख रहे हैं, उस उन्‍माद या एग्रेशन के पीछे यह एक बड़ा कारण है।

स्‍वामी विवेकानंद ने जब वेदांती मस्तिष्‍क और इस्‍लामी शरीर की बात की थी, तो वे शायद आज से 118 साल पहले इन स्थितियों की कल्‍पना कर रहे थे और उसके साथ ही एक समाधान भी दे रहे थे। कल्‍पना इस बात की कि, भारत में ये दोनों समुदाय पूरे मन से शायद कभी एक न हो पाएं। और समाधान के साथ आशा इस बात की कि यदि दोनों धर्म शरीर और दिमाग की तरह एकाकार हो जाएं तो हो सकता है भारत उस विश्‍वगुरू की अवस्‍था को हासिल कर सके जिसका सपना वे (विवेकानंद) देख रहे थे। (जारी)

कल पढि़ए- क्‍या मतलब है इस्‍लामी शरीर का…

 

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