मध्यप्रदेश के श्योपुर जिले में कुपोषण से बड़ी संख्या में बच्चों की मौत होने के बाद मचे हल्ले से मजबूर होकर सरकार ने इस पूरे मामले में ‘श्वेतपत्र’ लाने का फैसला किया है। लेकिन श्योपुर से जो खबरें आ रही हैं वे बताती हैं कि इस मामले से ‘श्वेत’ शब्द को जोड़ना ही सबसे बड़ा मजाक होगा। वहां तो पूरी दाल ही ‘काली’है। आंकडे बता रहे हैं कि यह हादसा पूरे तंत्र के काले कारनामे की मिसाल है और इस पर ‘श्वेतपत्र’ नहीं बल्कि ‘कालाचिट्ठा’ आना चाहिए।
श्योपुर हादसे को लेकर इलाके के जागरूक कांग्रेसी विधायक रामनिवास रावत ने शुकवार को मुख्यमंत्री को लंबा पत्र लिखा है। यह पत्र प्रदेश में कुपोषण की जिस स्थिति को बयान करता है वह रोंगटे खड़े कर देने वाली है। रावत ने जो तथ्य जारी किए हैं वे पूरी शासन-प्रशासन व्यवस्था की घोर आपराधिक लापरवाही की पोल खोलने वाले हैं।
जरा रावत के पत्र में दी गई जानकारी पर एक नजर डालिए। वे कहते हैं कि उन्होंने 26 फरवरी को विधानसभा में एक प्रश्न पूछा था जिसके जवाब में सरकार ने खुद माना था कि एक अप्रैल 2014 से जनवरी 2016 तक अकेले श्योपुर जिले में शून्य से 6 वर्ष तक की आयु के 1160 और 6 से 12 वर्ष तक की आयु के 120 यानी कुल 1280 बच्चों की मौत कुपोषण के कारण हुई है। जिले में किए गए सर्वे के दौरान 80918 बच्चों में से 19724 बच्चे कुपोषित पाए गए। अकेले श्योपुर जिले में ही पिछले 152 दिनों में कुपोषण से 132 बच्चों की मौत हुई। यानी करीब रोज एक बच्चा वहां कुपोषण से मर रहा है।
बकौल रावत अब जरा पूरे प्रदेश का हाल भी सुन लीजिए। और ये आंकड़े भी सरकार ने उनके 18 जुलाई 2016 को विधानसभा में पूछे गए प्रश्न के उत्तर में दिए हैं। जून 2016 तक की अवधि में जिन 87 लाख 62 हजार 638 बच्चों का सर्वे किया गया उनमें से 13 लाख 31 हजार 88 बच्चे कुपोषित पाए गए। श्योपुर जिले में 80 हजार 918 में से 19 हजार 724 बच्चे कुपोषित मिले।
कुपोषण की यह करुण गाथा पढ़ते पढ़ते थकिए मत… पिक्चर अभी बाकी है…
एक जनवरी 2016 से जून 2016 तक 152 दिनों में प्रदेश में डायरिया, निमोनिया और कुपोषण से 9167 बच्चों की मौत हुई। यानी रोज 60 बच्चे मरे। और ये मौतें कहां कहां हुई वो ब्योरा भी जान लीजिए- भोपाल जिले में 587, बड़वानी में 537, बैतूल में 332, विदिशा में 341, उज्जैन में 301, सतना में 346, मुरैना में 228,झाबुआ में 251, जबलपुर में 276, धार में 223 और गुना में 260।
रावत ने बताया है कि श्योपुर में पिछले दो माह में 70 से अधिक बच्चों की मौत कुपोषण से हो चुकी है और हजारों बच्चे कुपोषण से पीडि़त हैं। उनका आरोप है कि सरकार द्वारा बच्चों एवं महिलाओं को बांटा जाने वाला पूरक पोषण आहार एवं मध्याह्न भोजन, भारी भ्रष्टाचार के चलते उन तक पहुंच ही नहीं रहा है। भारी सूखे के बावजूद रोजगारमूलक काम शुरू न हो पाने से गरीब आदिवासियों को दो समय भोजन भी उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। दूसरी तरफ लोगों को राहत पहुंचाने के बजाय प्रशासन बच्चों की मौत पर परदा डालने का काम कर रहा है। रावत की मांग है कि सरकार ‘श्वेतपत्र की नौटंकी’ करने के बजाय वास्तविकता से रूबरू होकर कुपोषण दूर करने के ठोस उपाय करे।
शुक्रवार को हमने इसी कॉलम में राज्य सरकार द्वारा किए गए ‘प्रशासनिक सुधार आयोग’ के ऐलान पर बात की थी। आयोग तो जब बनेगा तब बनेगा और उसकी रिपोर्ट पता नहीं कब तक आएगी। सरकार में सचमुच यदि प्रशासनिक व्यवस्था में सुधार की इच्छाशक्ति है तो वह एक काम कर ले। श्योपुर को मॉडल मानकर एक साल का टारगेट रखते हुए वहां कुपोषण की समस्या दूर करने का संकल्प ले और पूरी प्रशासनिक मशीनरी को लक्ष्य देकर यह काम ईमानदारी से पूरा करवाए। यदि इतना भी कर लिया तो आपको पता चल जाएगा कि आपकी प्रशासनिक मशीनरी की क्षमता क्या है और उसमें सुधरने की गुंजाइश कितनी है।
और सवाल केवल प्रशासनिक मशीनरी पर ही मत उठाइए। जरा अपने संगठन की कार्यशैली का रुख भी जनता की ओर मोडि़ए। प्रदेश भाजपा का दावा था कि उसने एक करोड़ सदस्य बनाए हैं। कहां हैं ये एक करोड़ सदस्य और क्या कर रहे हैं? क्या उनका काम यह देखना और बताना नहीं है कि बच्चे कुपोषण से मर रहे हैं?अफसरशाही तो ऐसी घटनाओं को छुपाने में लगी रहती है, लेकिन आपके नेता और कार्यकर्ता आखिर किस‘खास वजह’ से इन मामलों को दबा रहे हैं? जरा इस ‘नेक्सस’ को भी तोडि़ए। अभी तो हालत यह है कि आपके मंत्री और सांसद तक श्योपुर में घटना के एक माह बाद पहुंचते हैं। और प्रभारी मंत्री की व्यवस्था तो आप खत्म ही कर दें तो बेहतर होगा।
Comment:nice ramnivash Rawat