हिन्दी का इंदौर और महात्मा गांधी से गहरा रिश्ता है। 1918 में इंदौर में हुए हिन्दी सम्मेलन में महात्मा गांधी ने अपने संबोधन में उत्तर भारत के हिन्दी भाषियों को दक्षिण भारत जाकर हिन्दी का प्रचार प्रसार करने की सलाह दी थी। गांधीजी के निर्देश पर ऋषिकेश शर्मा, देवदास गांधी और हरिहर शर्मा जैसे हिन्दीसेवियों ने दक्षिण में जाकर हिन्दी की अलख जगाई थी।
महात्मा गांधी 1935 में फिर इंदौर पधारे और वहीं उन्होंने हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाए जाने की नींव रखते हुए अपना ऐतिहासिक वक्तव्य दिया था कि- हिन्दुस्तान को यदि एक राष्ट्र बनना है तो, कोई माने या न माने, उसकी राष्ट्रभाषा तो हिन्दी ही बन सकती है।
गांधीजी के इन दोनों भाषणों को इंदौर की हिन्दी साहित्य समिति ने अपने प्रकाशन में संग्रहीत किया है।
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यह सामग्री मालवा के जाने माने इतिहासकार डॉ. जगदीशचंद्र उपाध्याय द्वारा दी गई जानकारी पर आधारित है।