नीतीश कुमार चाहें तो राष्ट्रीय स्तर के करिश्माई नेता बन सकते हैं और चाहें तो अदालत के फैसले की आड़ में दुबककर बैठ भी सकते हैं। उनके पास दोनों विकल्प हैं। वैसे किसी भी नेता के जीवन में इस तरह के मौके ऐसे चलकर एक या दो बार ही आते हैं, लपक लिया तो ठीक वरना फिर शिकायतें और पछताना ही रह जाता है।
बिहार हाईकोर्ट के फैसले की वजह से नीतीश को बैठे बैठाए हीरो बनने का मौका हाथ लग गया है। शाहबुद्दीन रिहा तो बिहार हाईकोर्ट के आदेश की वजह से हुआ है, लेकिन प्रशासन तो आपका है, गृहमंत्री भी आप ही हैं, इसलिए लोगों की इस आशंका को दूर कीजिए कि सीवान के दबंग के बाहर आने से राज्य में कानून कमजोर पड़ जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट में अपील ना करके राज्य सरकार ने सही फैसला किया है, क्योंकि इसकी कोई गारंटी नहीं कि जमानत की हाईकोर्ट की दलीलों को सुप्रीम कोर्ट रद्द कर देता। अगर सुप्रीम कोर्ट भी हाईकोर्ट की तरह फैसला दे देता तो शाहबुद्दीन को कानून का डबल प्रोटेक्शन मिल जाता।
नीतीश बाबू को ज्यादा कुछ नहीं करना, एक दबंग एसपी तलाशिए बिहार पुलिस का, उसे पूरे अधिकार दीजिए। जरूरत पड़े तो सीवान और आसपास के तमाम इंस्पेक्टर, सब इंस्पेक्टर और यहां तक कांस्टेबलों को भी बदल डालिए। दबंग अफसरों की कमी नहीं है बिहार में, बस आपकी इच्छाशक्ति मजबूत हो। खाकी वर्दी के सामने कोई नहीं टिकता, कमांडो क्रेक टीम बनाइए और पूरे बिहार में अपराधियों को दौड़ाइए, जीवन के इस मौके को हाथ से जाने मत दीजिए। क्योंकि ये शायद आपके राजनीतिक जीवन को दोबारा ऊंचाइयों पर ले जाने का अंतिम अवसर हो।
कमजोर प्रशासक ही कानूनों और सबूतों के बहानों की आड़ लेते हैं। अभी कुछ कर गुजरिए वरना फिर सिर्फ नारे ही बचेंगे सामाजिक न्याय… सामाजिक न्याय। सांप्रदायिकता, फिरकापरस्ती, गरीब गुरबा, लेकिन हाथ कुछ ना आएगा। ईमानदारी का ढोल भी नहीं।
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यह सामग्री हमने श्री अरुण पांडे की फेसबुक वॉल से ली है।