मनोज श्रीवास्तव
ध्यान आता है कि मैंने गीता में भारत की बात की थी। लेकिन फिर मेरा मन हुआ कि विश्व के सबसे पुराने कहे जाने वाले ग्रंथ ऋग्वेद में भारत को खोजूं। हमें तो भारत आधुनिक समय के एक ‘कंस्ट्रक्ट’ की तरह पढ़ाया गया है, एक ‘कल्चर’ की तरह नहीं। तो मुझे जिज्ञासा हुई कि जिन्हें मैक्समूलर ‘गड़रियों के गीत’ कहते थे, उनमें यह देशाभिव्यक्ति है या नहीं।
मैंने देखा कि यह आदिवेद कहता है– श्रेष्ठं यविष्ट भारताग्ने द्युमन्तमा भर/ वसो पुरुस्पृहं रयिम्। (2.7.1) जिसका अर्थ यह किया गया है कि भारत वह देश है जिसके ऊर्जावान युवा सब विद्याओं में अग्नि के समान तेजस्वी विद्वान हैं, सबका भला करने वाले, वे कि जिन्हें ऋषि उपदेश देते हैं कि वे कल्याणमयी, विवेकशील तथा सर्वप्रिय लक्ष्मी को धारण करें।
फिर मैंने देखा कि भारत के साथ यह अग्न्योल्लेख ऋक् की एक डिफाइनिंग सी विशेषता है। मसलन यह वेद कहता है- त्वं नो असि भारताग्ने वशाभिरुक्षाभि:/अष्टापदीभिराहुतः।(2.7.5) यानी भारत में सब विषयों में अग्नि के समान तेजस्वी विद्वान आठ सत्यासत्य निर्धारक नियमों से संचालित जिंदगी जीते हैं।
एक जगह ‘उदग्ने भारत द्युमदजस्रेण‘ कहा है, एक जगह ‘तस्मा अग्निर्भारतः शर्म‘ कहा है। एक बार ‘आग्निरगामि भारतो वृत्रहा पुरुचेतनः‘ तो एक बार ‘अमन्थिष्ठा भारता रेवदग्निं‘।
तो यह भारत की कौन सी फायर है जो आज अनुसंधान के लिए बाकी है? कौन सी तेजस्विता? क्यों अग्नि का एक पर्याय भारत है? भारत की एक ऊर्ध्वरेता चेतना का यह कौन सा संकेत है?
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यह सामग्री हमने श्री मनोज श्रीवास्तव की फेसबुक वॉल से ली है। वे मध्यप्रदेश में संस्कृति विभाग के प्रमुख सचिव भी हैं।