प्रिया पांडे
बात ज़रा पुरानी और मेरे घर शक्तिनगर की है… एक दिन की बात है, मै अपने घर में बैठी थी… तभी मेरे स्कूल की सहेलियां खुशबूू,रानु और ब्यूटी आ गईंं और कहने लगींं… कि चलो आज मंदिर चलते है… मैंंने उनसे पूूछा क्यों? तो वो सब कहने लगींं की आज मंदिर में मेला जैसा माहौल है क्योंकि आज मकरसंक्राति है, इसी बहाने मंदिर भी हो आएंगे और लौटते समय कुछ शांपिग भी कर लेगें….।
मैने सोचा आइडिया अच्छा है… मैं भी फटाफट तैयार हो गई और मम्मी से पूूछा कि आप भी चलेंगी तो उन्होंंने भी अपनी स्वीकृति दे दी… हम सब मंदिर गए, वहां हर तरफ हाट लगा हुआ था… सभी लोग खरीदारी कर रहे थे,मेरी सहेलियां भी खरीदारी करने में लग गईंं… मैंंने सोचा जब तक ये खरीदारी कर रही हैंं तब तक मैं मंदिर के पार्क में टहल लूं… इस मंशा से मैने मंदिर में प्रवेश किया और पार्क में गई… पार्क बहुत सुंदर था,वहां गुलाब,चम्पा-चमेली,बेला,कनेर,गुड़हल के कई पेड़ थे, उनमें पारिजात का भी पेड़ था… मैंने कहीं सुना था कि पारिजात का पेड़़ स्वर्ग का वृक्ष है.. और ये देवताओ को बहुत प्रिय है… रुक्मणि को पारिजात के फूल बहुत पसंद थे, इसलिए श्रीकृष्ण पारिजात को धरती पे ले आए थे… मै मन ही मन रुक्मणी का आभार व्यक्त करने लगी…क्योंकि आज शायद रुक्मणी की ही वजह से मैंं इस पेड़ के इतने करीब थी…
पेड़ के पास बहुत से फूल बिखरे पड़े थे, मैं जमीन पर बैठकर फूल चुनने लगी,तभी मंदिर के पंडित जी वहां आ गए.. और मुझसे कहने लगे…. बेटा जमीन से फूल क्यों चुन रही हो…पेड़ से जितने चाहिए फूल तोड़ सकती हो… मैंंंने मन ही मन पंडित जी का आभार व्यक्त किया और पारिजात के फूलोंं को तोड़कर अपने दुपट्टे में इकठ्ठे करने लगी…मैंने एक अंजुली फूल इकठ्ठे कर लिए… तब तक मेरी सहेलियां और मम्मी भी आ गईंं…
फिर हम मंदिर के अंदर गए… उस मंदिर परिसर के अंदर कई छोटे-छोटे मंदिर बने हैंं… किसी में हनुमान जी की मूर्ति है, किसी में सूर्य देव की, किसी में शिवलिंग विराजमान हैंं.. मम्मी सभी मंदिरो में घंटी बजा कर माथा टेकने लगी, हमसब भी ऐसा ही करने लगे… आखिर में श्रीकृष्णजी का मंदिर आया,जिसमें कन्हैयाजी जी की मनोहारी प्रतिमा थी, पीला लिबास धारण किये हुए… हाथ में बांसुरी… होठोंं पे मोहक मुस्कान…
मैं सोचने लगी.. श्रीकृष्ण के इसी रूप पर फिदा होकर रसखान से लेकर अमीर खुसरो तक कितने ही सूूफी-संतोंं ने कृष्णजी पर गीत रच डाले… मै तुरंत मूर्ति के पास गई… और मेरे हाथोंं में जितने पारिजात के फूल थे सभी श्रीकृष्ण के चरणोंं में बिछा दिए…..
तभी पंडितजी बोल पड़े… ऐसा लगता है जैसे कृष्णजी की राधा ने ही पुष्प भेंट किए होंं…. मम्मी और मेरी सहेलियों ने पंडितजी की हां मे हां मिलाई… हमने प्रसाद लिया और घर वापस आ गए।
पारिजात के फूल चुनने से लेकर श्रीकृष्ण के कदमों मे रखने तक मैने जो लम्हे जिए… वो मेरी एहसासोंं में समाया है…आज भी जब पारिजात के फूलोंं को देखती हूं तो दिल को अजीब सा सुकूून मिलता है… मैं नहीं जानती कि श्रीकृष्णजी और पारिजात के फूलों से मेरा क्या रिश्ता है…
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यह सामग्री हमने प्रिया पांडे के ब्लॉग ‘दहलीज’ से साभार ली है।