‘रामराज्‍य’ भले न मिले, हमें तो ‘कामकाज्‍य’ ही मिल जाए

कभी कभी मुझे लगता है कि हमारी न्‍याय व्‍यवस्‍था बहुत ही ‘आशिक मिजाज’ है। जिस तरह किसी आशिक का दिल कब किस पर आ जाए कहा नहीं जा सकता, उसी तरह हमारी न्‍याय व्‍यवस्‍था का दिल भी कब किस मामले पर आ जाए कहना मुश्किल है। कई बार यह होता है कि कोई आशिक किसी सुंदर से सुंदर स्‍त्री की तरफ भी आंख उठाकर नहीं देखता और दूसरी तरफ किसी साधारण सी दिखने वाली स्‍त्री पर मर मिटने को तैयार हो जाता है, कुछ कुछ वैसा ही हाल हमारे न्‍याय तंत्र का है।

यह बात मुझे पिछले कुछ दिनों के दौरान देश की विभिन्‍न अदालतों द्वारा स्‍वीकार और अस्‍वीकार किए जाने वाले मामलों को देखकर ध्‍यान में आई। सबसे ताजा मामला गुजरात हाईकोर्ट का है जिसने इन दिनों दुनिया भर के लोगों को इंतहा की हद तक दीवाना बना देने वाले गेम पोकेमान गो को बनाने वाली अमेरिकी सॉफ्टवेयर कंपनी ‘नियांटिक’ के साथ साथ राज्‍य व केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है। यह नोटिस अलय अनिल दवे नाम के एक व्‍यक्ति की जनहित याचिका पर बुधवार को जारी किया गया है। दवे के वकील नचिकेत दवे का कहना है कि पोकेमान गो में लोगों को धार्मिक स्‍थलों (मंदिरों) में आभासी (Virtual) अंडे खोजने को कहा जा रहा है। इससे बहुत से लोगों, खासकर हिन्‍दू व जैन धर्मावलंबियों की धार्मिक भावनाएं आहत हो रही हैं। याचिकाकर्ता ने इसके साथ ही इस गेम के कारण राष्‍ट्रीय सुरक्षा को होने वाले खतरे का मुद्दा भी उठाया है।

इस मामले में यह महत्‍वपूर्ण तथ्‍य बताना जरूरी है कि पोकेमान गो गेम भारत में आधिकारिक रूप से लांच नहीं हुआ है। लेकिन इसे कुछ खास एप्‍लीकेशंस के जरिए उन देशों से डाउनलोड किया जा सकता है जहां यह लांच हो चुका है। यानी याचिकाकर्ता ने उस खेल पर आपत्ति उठाई है जो भारत में आधिकारिक रूप से लांच ही नहीं हुआ है। और इस पर नोटिस भी जारी हो गए हैं।

अब जरा थोड़े दिन पीछे जाइए। 26 अगस्‍त को सुप्रीम कोर्ट ने एक जनहित याचिका पर अहम टिप्‍पणी करते हुए कहा कि वह देश में रामराज्‍य की स्‍थापना का आदेश नहीं दे सकता। वह चाहता तो बहुत कुछ है लेकिन उसकी भी अपनी सीमाएं हैं।

कोर्ट ने अपना यह मत देश में सड़कों व फुटपाथों पर होने वाले अतिक्रमणों की समस्‍या को लेकर लगाई गई एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए व्‍यक्‍त किया। उसने याचिकाकर्ता से पूछा कि क्‍या आप यह सोचते हैं कि हमारे आदेश दे देने सारी चीजें ठीक हो जाएंगी? हम यदि आदेश दें कि देश में भ्रष्‍टाचार नहीं होना चाहिए तो क्‍या भ्रष्‍टाचार खत्‍म हो जाएगा?क्‍या हम ऐसा आदेश पारित कर सकते हैं कि देश में ‘’राम राज्‍य’’ होना चाहिए? चीजें इस तरह से नहीं चलतीं।

मुख्‍य न्‍यायाधीश टी.एस.ठाकुर की अध्‍यक्षता वाली खंडपीठ ने कहा कि हम करना तो बहुत कुछ चाहते हैं लेकिन समस्‍या यह है कि हमारी क्षमताएं सीमित हैं।

याचिकाकर्ता एनजीओ का कहना था कि यदि सुप्रीम कोर्ट ही यह काम नहीं करेगा तो फिर इसे कौन करेगा? लेकिन कोर्ट ने कहा कि हम यह मानकर नहीं चल सकते कि देश में सबकुछ गलत ही हो रहा है। सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने जब याचिकाकर्ता को यह सलाह दी कि वो उनके पास आने से पहले हाईकोर्ट में आवेदन करे तो याचिकाकर्ता ने कहा कि यह तो पूरे देश की समस्‍या है, आखिर वो किस किस हाईकोर्ट में जाएगा। वह बड़ी उम्‍मीद लेकर सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे पर आया है। यहां से कोई आदेश तो होना ही चाहिए। सड़कों और फुटपाथों पर बड़े पैमाने पर अतिक्रमण हो रहे हैं। इस पर कोर्ट ने उसे सलाह दी कि- ‘’आप लोगों को इस बारे में जागरूक करिए।‘’ कोर्ट ने पहले तो याचिका को खारिज करने का संकेत दिया था लेकिन बाद में उसने इसकी सुनवाई अगले साल फरवरी माह तक के लिए टाल दी।

अब जैसी कि हमारे यहां व्‍यवस्‍था और परंपरा है, उसके प्रति पूरा सम्‍मान प्रकट करते हुए हम कोर्ट से यह तो नहीं पूछ सकते कि उन्‍होंने फलां मामले का संज्ञान क्‍यों लिया और फलां का क्‍यों नहीं लिया, लेकिन इन दोनों मामलों में गुणदोष के आधार पर न्‍याय व्‍यवस्‍था के कामकाज के आकलन का काम मैं अपने पाठकों पर छोड़ता हूं। मुझे बस इतना ही कहना है कि ये दोनों मामले सोचने पर तो मजबूर करते ही हैं। और इसीलिए मैंने कहा कि कोर्ट का दिल कब किस मामले पर आ जाए कहा नहीं जा सकता।

चलते चलते सुप्रीम कोर्ट की उस टिप्‍पणी पर थोड़ी सी बात कर लें जिसमें माननीय न्‍यायालय ने कहा कि हमारे आदेश दे देने से देश में रामराज्‍य नहीं आ जाएगा। मैं कोर्ट की इस बात से सौ फीसदी सहमत हूं। अरे जब स्‍वयं भगवान राम अपने राज में सौ टंच खरा रामराज्‍य नहीं ला सके तो कोर्ट, सरकार या हमारी क्‍या बिसात? लेकिन माननीय कोर्ट से इतनी गुजारिश है कि रामराज्‍य न सही, कम से कम ऐसी कामकाज्‍य व्‍यवस्‍था के लिए तो वो जरूर पहल करें जहां नागरिकों की वाजिब बात तो अवश्‍य सुनी जाए।

 

 

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