श्रीकृष्‍ण का बुंदेलखंड से रहा है गहरा नाता

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योगेश्वर श्रीकृष्ण का जन्म भले ही मथुरा में हुआ हो और द्वारिका के राजा बने हों लेकिन बुंदेलखंड से भी उनका गहरा नाता रहा है। उनकी कुछ लीलाओं का गवाह बुंदेलखंड की धरती भी रही है। श्रीकृष्ण ने बुंदेलखंड के चंदेरी के राजा शिशुपाल का वध किया था। ललितपुर की मुचकुंद गुफा में उन्होंने कालयवन को भस्म करवाया था। ललितपुर के जंगलों में ही पांडवों ने अपना अज्ञातवास बिताया था, जहां उनसे मिलने गोवर्धन गिरधारी आए थे।

मान्यता है कि वैदिक युग में विंध्य का यह हिस्सा बुंदेलखंड दंडकारण्य क्षेत्र रहा। आर्यों की चेदि शाखा का निवास होने पर यह भूभाग चेदि राज्य के नाम से प्रसिद्ध हुआ। वैदिक साहित्य के मुताबिक प्राचीन काल में चेदि महाजनपद (वर्तमान में चंदेरी मध्यप्रदेश) के राजा शिशुपाल थे। धर्माचार्य हरिओम पाठक के मुताबिक शिशुपाल श्रीकृष्ण का मौसेरा भाई था, जिसका विवाह रुकमणि से तय हुआ था। रुकमणि श्रीकृष्ण से प्रेम करती थीं। रुकमणि के प्रस्ताव पर श्रीकृष्ण ने उनसे विवाह कर लिया। ऐसे में शिशुपाल श्रीकृष्ण से बेहद ईर्ष्या करने लगा। इधर, शिशुपाल की उद्दंडता से परेशान मौसी ने श्रीकृष्ण से वचन लिया कि वह शिशुपाल की 99 गलतियों को माफ करेंगे। लेकिन पांडवों के राजसूय यज्ञ में शिशुपाल ने 99 बार भगवान को अपशब्द कहकर गलती-दर-गलती की। सौवीं गलती पर भगवान ने अपने सुदर्शन चक्र से उसका वध कर दिया। भगवान चाहते तो पहली ही गलती में उसका वध कर सकते थे लेकिन तब प्रजा उनके खिलाफ जा सकती है। चतुर श्रीकृष्ण ने नीति के तहत शिशुपाल को गलतियां करने दीं और इससे प्रजा भी उसके खिलाफ हो गई। तब श्रीकृष्ण ने उसका अंत कर दिया।

हरिवंश पुराण और भागवत पुराण के अनुसार मगध के शासक जरासंध ने मथुरा पर हमला करने के लिए कालयवन को भेजा था। शिवजी के वरदान से कालयवन अजेय था। शिवजी के वरदान की लाज रखने के लिए श्रीकृष्ण युद्ध भूमि से भाग कर ललितपुर के धौर्रा के पास विंध्याचल पर्वत की गुफा में जाकर छिप गए थे। इस गुफा में महाराज मुचकुंद सो रहे थे। उन्हें इंद्र ने वरदान दिया था कि जो भी उन्हें नींद से उठाएगा वह जलकर भस्म हो जाएगा। श्रीकृष्ण ने अपनी ओढ़नी उन्हें उढ़ा दी और छिप गए। कालयवन ने मुचकुंद को कृष्ण समझकर जगाया और जलकर भस्म हो गया। इस घटना के बाद श्रीकृष्ण रणछोड़ कहलाए। इस गुफा का नाम मुचकुंद गुफा पड़ा। गुफा से डेढ़ किलोमीटर दूर बेतवा नदी के तट पर भगवान रणछोड़ का मंदिर है। पांडवों को जब अज्ञातवास मिला था तो उन्होंने वह समय ललितपुर जिले के मदनपुर के जंगलों में काटा था। यहां भगवान उनसे मिलने भी आए थे। वर्तमान में यह स्थान पांडव वन कहलाता है।

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