गिरीश उपाध्याय
राज्यसभा द्वारा वस्तु एवं सेवा कर विधेयक (जीएसटी) पास कर दिए जाने की खबरें सबसे ज्यादा सुर्खियों में रहने के कारण, उतनी ही महत्वपूर्ण एक और खबर वैसी चर्चा में नहीं आ पाई जितनी आनी चाहिए थी। मेरे हिसाब से यह खबर हमारी रोजमर्रा की जिंदगी से, वस्तु एवं सेवा कर से भी अधिक जुड़ी हुई है। 3 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय केबिनेट की बैठक में मोटरवाहन (संशोधन) विधेयक 2016 को मंजूरी दे दी गई। यह मामला लंबे समय से लटका हुआ था और समाज के अलग अलग क्षेत्रों से इस दिशा में सुधार की मांग लगातार आ रही थी।
देश की परिवहन एवं यातायात व्यवस्था में क्रांतिकारी बदलाव लाने वाले इस कदम का श्रेय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी को जाता है। कैबिनेट द्वारा विधेयक को मंजूरी दिए जाने के बाद गडकरी ने इसे ऐतिहासिक कदम बताते हुए कहा कि इससे लाखों निर्दोष लोगों की जानें बचाई जा सकेंगी। साथ ही सड़कें भी सुरक्षित होंगी। नए विधेयक किए गए प्रावधानों को 18 राज्यों के परिवहन मंत्रियों की सिफारिशों के आधार पर अंतिम रूप दिया गया है।
ये संशोधन कितने महत्वपूर्ण हैं इस पर बात करने से पहले इनका मोटा मोटा ब्योरा जान लेना बहुत जरूरी है। संशोधित विधेयक के अनुसार अब वाहन चलाने की पात्रता न रखने वाले बच्चे यदि वाहन चलाते हैं और उनके हाथ से कोई दुर्घटना हो जाती है तो उस स्थिति में बच्चे के अभिभावक दोषी होंगे। ऐसे मामलों में 25 हजार रुपए तक का जुर्माना और तीन साल की जेल भी हो सकती है। इसी तरह बिना लायसेंस के गाड़ी चलाने पर 5000 रुपए का जुर्माना और लायसेंस की शर्तों का उल्लंघन करने पर एक लाख रुपए का जुर्माना किया जा सकेगा।
वाहनों से होने वाली दुर्घटनाओं में शराब पीकर गाड़ी चलाना, गाड़ी चलाते वक्त मोबाइल पर बात करना और सीट बेल्ट तथा हेलमेट का इस्तेमाल न करना बहुत ही बड़ा कारण हैं। इन सभी मामलों में जुर्माने की राशि मामूली होने के कारण लोग जुर्माना भरकर छूट जाया करते थे। लेकिन अब शराब पीकर गाड़ी चलाने पर दस हजार रुपए तक का जुर्माना हो सकेगा। ‘हिट एंड रन’ मामलों में पीडि़त को दो लाख रुपए तक का मुआवजा और सड़क दुर्घटना में मौत हो जाने पर दस लाख रुपए तक के मुआवजे का प्रावधान किया गया है। इसी तरह वाहन चलाते समय मोबाइल पर बात करने या आईपैड आदि का इस्तेमाल करने पर पहली बार 500 रुपए का और दूसरी बार पकड़े जाने पर दो से पांच हजार रुपए तक का जुर्माना लगेगा। रेड लाइट पार करने, हेलमेट या सीट बेल्ट का इस्तेमाल न करने पर 500 से 1500 रुपए का जुर्माना होगा। ऐसे ही और भी कई मामलों में जुर्माने की भारी भरकम राशि तय की गई है।
परिवहन और यातायात के मामले में नियमों का पालन कैसे हो और जान माल की सुरक्षा कैसे सुनिश्चित की जाए इस विषय पर पिछले कई बरस से बहस हो रही है। एक वर्ग का मानना रहा है कि कानून का सख्ती से पालन करवाया जाए जबकि दूसरे पक्ष का कहना रहा है कि जुर्माने और सजा की मात्रा इतनी अधिक हो कि आदमी नियमों का उल्लंघन करने से डरें। ऐसा लगता है कि नए विधेयक में दूसरी राय को ज्यादा महत्व दिया गया है। अब जबकि सरकार ने संशोधित विधेयक को मंजूरी दे दी है, अगली सबसे बड़ी चुनौती यही होगी कि इसके प्रावधानों को विधेयक की मूल भावना के अनुसार लागू कैसे किया जाए। यातायात और परिवहन की व्यवस्था अपने भ्रष्टाचार के लिए कुख्यात है। कहीं ऐसा न हो कि बढ़ी हुई जुर्माने की राशि, इस तंत्र में भ्रष्टाचार को और अधिक बढ़ा दे।
ऐसा नहीं है कि जुर्माने और सजा के प्रावधान अभी तक नहीं थे। लेकिन होता यही आया है कि या तो नियम लागू करने वाली एजेंसियां और अमला इस दिशा में उदासीन रहता है या फिर लोग मुट्ठी गरम करके बच निकलते हैं। शहरों में ऐसे दृश्य सरेआम देखने को मिल जाते हैं, जब यातायात नियमों का पालन करवाने वाले पुलिस कर्मचारी दूर किसी कोने में या किसी गली में कानून तोड़ने वाले से सौदा कर रहे हों। जिस तरह से यातायात या परिवहन के नियम तोड़ने वालों पर सख्ती की जरूरत है, उसी तरह इन नियमों का पालन करवाने वालों के साथ भी वैसी ही सख्ती आवश्यक है। ले देकर नियमों से समझौता कर लेने के गंभीर दुष्परिणामों की खबरें मीडिया में भरी पड़ी रहती हैं।
एक मामला यातायात और परिवहन नियमों की निगरानी करने वाले अमले की कमी और उन्हें दी जाने वाली सुविधाओं का भी है। आज भी यातायात व्यवस्था में लगा सिपाही कई बार ऐसी दयनीय अवस्था में दिखाई देता है कि लगता है, अपराध नियम तोड़ने वाले ने नहीं बल्कि उसे रोकने वाले उस सिपाही ने किया हो। उन्हें समुचित उपकरणों से लैस किया जाना भी जरूरी है। ताकि वे वाहनों की गति और नशे की हालत वाले चालकों की सही पहचान कर सकें। अभी तो हालत ये है कि या तो वे चालकों का मुंह देखते रहते हैं या मुंह सूंघते रहते हैं। जिस देश में हर साल करीब डेढ़ लाख लोग सड़क दुर्घटनाओं में मर जाते हों वहां व्यवस्था का चाक चौबंद होना किसी परिवार के लिए ही नहीं बल्कि देश के लिए भी जरूरी है। असमय होने वाली ये मौतें देश की प्रगति को भी प्रभावित करती हैं।