क्‍या यह केंद्रीय मंत्री पर कानूनी कार्रवाई का मामला नहीं है?

गिरीश उपाध्‍याय

देश के सामाजिक कल्‍याण राज्‍य मंत्री रामदास आठवले के हाल ही में आए एक बयान ने मुझे चौंका दिया है। मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि संविधान की शपथ लेने वाला एक व्‍यक्ति कैसे इस तरह का बयान दे सकता है? रिपब्लिकन पार्टी आफ इंडिया (आठवले) के नेता रामदास आठवले को गत 5 जुलाई को हुए नरेंद्र मोदी मंत्रिमंडल के विस्‍तार में, राज्‍य मंत्री बनाया गया है। लेकिन ऐसा लग रहा है कि गठबंधन दलों को संतुष्‍ट करने की रणनीति के साथ साथ उत्‍तरप्रदेश चुनाव में दलित राजनीति का फायदा उठाने के लिहाज से मंत्रिमंडल में शामिल किए गए आठवले आने वाले दिनों में सरकार के गले की हड्डी बनने वाले हैं।

दरअसल आठवले का एक इंटरव्‍यू रविवार को अखबारों में छपा है। इसमें आठवले ने बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती पर आरोप लगाया है कि वे कहने को तो डॉ. भीमराव आंबेडकर को अपना आदर्श मानती हैं, लेकिन वे आंबेडकर के आदर्शों पर चल नहीं रही हैं। वे आज तक हिन्‍दू धर्म को ही मानती हैं, उन्‍होंने बौद्ध धर्म को नहीं अपनाया। हालांकि, वे कई बार धर्म परिवर्तन की घोषणा कर चुकी हैं, लेकिन आज भी हिंदू ही बनी हुई हैं। आठवले ने मायावती से सवाल किया है कि खुद को दलितों की मसीहा बताने वाली मायावती खुद बौद्ध धर्म क्यों नहीं अपनाती?

आठवले के इस बयान पर मायावती ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी है। उन्‍होंने पलटवार करते हुए कहा है कि समय आने पर वे करोड़ों दलितों के साथ बौद्ध धर्म को अपनाएंगी। बसपा सुप्रीमो ने कहा कि बाबा साहब ने भी बौद्ध धर्म अपनाने में हड़बड़ी नहीं की थी, उन्‍होंने भी बहुत बाद में अपने लाखों अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म की दीक्षा ली थी। मैं भी समय आने पर बौद्ध धर्म अपना लूंगी।

चूंकि आठवले ने मीडिया में उनके नाम से छपे बयान का अभी तक कोई खंडन नहीं किया है, इसलिए यह मानकर चला जाना चाहिए कि उनके हवाले से जो बात प्रकाशित या प्रसारित हुई है वैसा उन्‍होंने कहा है। अब सवाल यह उठता है कि जब भारतीय कानून में किसी को भी धर्म परिवर्तन के लिए प्रलोभन देने, उसे उकसाने या उस पर किसी भी तरह का दबाव बनाने को अपराध समझा गया है, तो कोई केंद्रीय मंत्री इस तरह का बयान कैसे दे सकता है?

आठवले का एक राजनीतिक दल की अध्‍यक्ष से यह कहना कि वे हिन्‍दू धर्म छोड़कर बौद्ध धर्म क्‍यों नहीं अपनाती, क्‍या कानून के हिसाब से अनुचित नहीं है? क्‍या यह बयान उकसाने वाला या धर्म परिवर्तन के लिए परोक्ष रूप से दबाव बनाने वाला नहीं है?  अगर आठवले यह कह रहे हैं कि खुद को आंबेडकर की अनुयायी बताने वाली मायावती बाबा साहब की तरह हिंदू धर्म को छोड़कर बौद्ध धर्म क्‍यों नहीं अपना रही हैं, तो यह सीधे-सीधे आंबेडकर के नाम पर बसपा अध्‍यक्ष को धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर करने का मामला है।

इस दबाव का संकेत इस बात से भी मिलता है कि, आठवले के बयान के जवाब में मायावती ने धर्मपरिवर्तन से सीधे सीधे इनकार न करते हुए यह कहा है कि समय आने पर वे अपने करोड़ों अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म अपना लेंगी। यानी आठवले की बात ने मायावती को धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर किया है। और इसीलिए वे आज नहीं तो कल, न केवल स्‍वयं धर्मपरिवर्तन करने की, बल्कि अपने साथ अपने करोड़ों लोगों का भी धर्मपरिवर्तन कराने की बात सार्वजनिक रूप से कह रही हैं। ऐसे में क्‍या आठवले पर कोई कानूनी कार्रवाई नहीं होनी चाहिए?

इसी संदर्भ में एक सवाल भारतीय जनता पार्टी और उसके मातृ संगठन राष्‍ट्रीय स्‍वयं सेवक संघ से भी जुड़ा है। आठवले का बयान तो संघ की लाइन के अनुसार नहीं है। संघ हमेशा ही एक हिन्‍दू छतरी या सनातन धर्म की बात करता रहा है। उसका हमेशा से प्रयास रहा है कि कैसे हिन्‍दुओं को बिखरने के बजाय एक रखा जाए। इसीलिए वह दलितों से किए जाने वाले भेदभाव और छुआछूत को खत्‍म करने के लिए एक कुआं, एक मंदिर और एक श्‍मशान का नारा देता है। ऐसे में भाजपा की ही सरकार का एक मंत्री सरेआम हिंदू धर्म को त्‍यागकर बौद्ध धर्म अपनाने का आह्वान करता फिरे, क्‍या संघ इस बात को पचा पाएगा?

राजनीतिक मजबूरियों के चलते भाजपा को कई तरह के समझौते करने पड़ रहे हैं। कश्‍मीर का उदाहरण सबके सामने है। दलित मुद्दे ने सामाजिक रूप से समग्र हिन्‍दू समाज की संरचना को लेकर संघ की कोशिशों पर पानी फेरने का काम किया है। ऐसे में देखना होगा कि इस तरह के बयान सरकार को कितना असहज करते हैं और सहयोगी दलों के नेताओं के इन तेवरों से भाजपा कैसे निपटती है? क्‍योंकि यदि यह मुद्दा आगे बढ़ा तो मोदी सरकार की मुश्किलें भी और बढ़ेंगी। गुजरात में गो-गुडों द्वारा दलितों की पिटाई के बाद, वहां के एक हजार से ज्‍यादा दलित धर्म परिवर्तन की धमकी पहले ही दे चुके हैं। यानी भाजपा धीरे धीरे कुएं और खाई वाली स्थिति की ओर बढ़ रही है।

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