गोलू के लिए रुके रहे ‘प्राण’

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मयंक मिश्रा

‘अरे देखो नीले रंग की शर्ट में हमारा गोलू कितना प्यारा लग रहा है।’ मनोहर लाल जोर से चिल्लाते हुए लैपटॉप लेकर तेजी से बेडरूम की तरफ भागे। उन्होंने हंसते हुए पत्नी मनोरमा को देखा और उन्हें दोनों हाथों से पकड़ कर बेड पर बैठाया। फिर लैपटॉप मनोरमा के सामने रखा और खुद उनकी बगल में आकर बैठ गए। लैपटॉप पर मनोरमा ने जैसे ही गोलू की फोटो देखी उनकी आंखें नम हो गई। अपने दोनों हाथों से उसे आशीष देते हुए बोलीं,  ‘तुझे किसी की नजर न लगे। भगवान तुझे हमेशा खुश रखे।’ गोलू की फोटो देखकर मनोरमा चाहे भावुक हो उठीं, लेकिन अंदर से वह बेहद खुश भी थीं। चाहे यह खुशी क्षण भर की थी, लेकिन मनोहर लाल को मालूम था कि गोलू की नई फोटो देखकर मनोरमा का आज का दिन बहुत अच्छा बीतेगा।

मनोहर लाल हर सुबह आंख खुलते ही सबसे पहले लैपटॉप ऑन करते थे और अपना फेसबुक अकाउंट इस आशा के साथ खोलते थे कि शायद गोलू की कोई नई फोटो उन्हें दिख जाए। मनोरमा जिस दिन सुबह गोलू की नई फोटो देख लेती थी उस दिन उनकी आंखों से आंसू नहीं निकलते थे। वरना कोई भी ऐसा दिन नहीं बीतता था जब वह दिन में तीन-चार बार रो न लें। गोलू के दुनिया में आने के बाद उन्हें जीने का सहारा मिल गया था।  अगर गोलू न होता तो शायद मनोरमा अपने इकलौते बेटे सुदीप को खोने के गम में तीन साल पहले ही दुनिया को अलविदा कह देतीं। सुदीप के चले जाने के बाद उन्हें लगा कि अब वह गोलू में ही सुदीप की परछाई देख कर दिन काट लेंगी। लेकिन, सुदीप की मौत के छह महीने के बाद ही उनकी बहू अनीता ने दूसरी शादी कर ली और विदेश चली गई। उस समय गोलू साढ़े चार साल का था।

मनोहर लाल और मनोरमा ने अनीता को समझाने की बहुत कोशिश की। लेकिन, वह दूसरी शादी करने की अपनी जिद पर अड़ी रही। दूसरी शादी करने के बाद भी अनीता कुछ दिन तो लगातार मनोरमा को फोन कर उनका हाल चाल पूछती रही और उनसे गोलू की बात भी करवा देती थी। लेकिन, धीरे धीरे उसने फोन करना भी छोड़ दिया। मनोरमा गोलू की आवाज सुनने को तरस गई और उनके जीने का एक मात्र सहारा भी उनसे छिन गया। एक दिन मनोहर लाल अपने मित्र पारस नाथ के घर गए। उन्होंने मनोहर लाल को सुझाव दिया कि वह मनोरमा की जगह किसी और नाम से फेसबुक अकाउंट बना लें और अनीता को फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजें। अनीता अगर इस रिक्वेस्ट को स्वीकार कर लेती है तो वह उसके फेसबुक पर पोस्ट होने वाली गोलू की सभी फोटो देख पाएंगे और इन फोटो के माध्यम से वह गोलू को न सिर्फ बड़ा होता देख पाएंगे बल्कि उसकी हर गतिविधि के बारे में भी जानकारी हासिल कर पाएंगे।

मनोहर लाल को पारस नाथ की यह बात बड़ी अटपटी लगी। उन्होंने कभी फेसबुक का इस्तेमाल नहीं किया था। उन्हें लगा कि मनोरमा के नाम की जगह किसी और के नाम से फेसबुक का अकाउंट बनाकर वह किसी मुसीबत में न फंस जाएं। रात भर वह पारस नाथ से मिली सलाह के बारे में सोचते रहे। मन में उधेड़ बुन चलती रही। कभी लगता था कि अगर ऐसा करते हैं तो मनोरमा गोलू की तस्वीरों को देखकर बहुत खुश होगी। कभी लगता था कि यह सब करना गलत होगा। सोचते सोचते उन्हें कब नींद लग गई पता ही नहीं चला। सुबह उठकर वह अपना लैपटॉप लेकर पारस नाथ के घर आए और उनसे कहा कि मनोरमा का घर का नाम शन्नो है। अनीता को भी इस बात की जानकारी नहीं है कि मनोरमा का नाम शन्नो भी है। इसलिए वह चाहें तो शन्नो के नाम से फेसबुक अकाउंट बना सकते हैं। उन्होंने पारस नाथ को मनोरमा की बहुत पुरानी तस्वीर दी ताकि अनीता उन्हें पहचान न सके।

बस फिर क्या था। पारस नाथ ने कुछ ही देरी में शन्नो के नाम से फेसबुक अकाउंट बना दिया और किसी तरह से फेसबुक पर अनीता को खोजकर उसे फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी। लगभग एक महीने तक मनोहर लाल रोज सुबह लैपटॉप लिए पारस नाथ के घर पहुंच जाते इस आशा के साथ कि अनीता ने फ्रेंड रिक्वेस्ट को स्वीकार कर लिया होगा। मनोहर लाल ने स्पष्ट कर दिया था कि जब अनीता रिक्वेस्ट स्वीकार कर लेगी तभी वह फेसबुक का इस्तेमाल करना सीखेंगे। लगभग एक महीने बाद अनीता ने शन्नो की फ्रेंड रिक्वेस्ट कंफर्म कर दी। उस दिन मनोहर लाल ने पारस नाथ से फेसबुक इस्तेमाल करना भी सीख लिया और फिर घर पहुंच कर मनोरमा को आंखें बंद करने को कहा।

‘यह आप क्या कर रहे हैं। मुझे आंखें बंद करने के लिए क्यों कह रहे हैं?’, मनोरमा ने उत्सुकता से मनोहर लाल से पूछा। ‘बस एक मिनट और। सब्र रखो।’, मनोहर लाल ने मनोरमा को तसल्ली देते हुए कहा। मनोहर लाल ने लैपटॉप को मनोरमा के सामने रखा और फेसबुक पर गोलू की फोटो को बड़ा कर मनोरमा को आंखें खोलने के लिए कहा। ‘अरे यह तो अपना गोलू है। कितना बड़ा हो गया है। और कितना प्यारा भी। पर इसकी यह फोटो आपको मिली कैसे?’, मनोरमा ने बहुत ही भावुक होकर मनोहर लाल से यह सवाल किया और फिर लगातार गोलू को देखती रही। ‘हमारा सुदीप जब छह साल का था तो वह भी ऐसा ही दिखता था न। डेढ़ साल के बाद गोलू की नई फोटो देखने को मिली है। अब इस लैपटॉप को मेरे सामने ही रहने दीजिए।’, मनोरमा लगातार गोलू की फोटो को देखती रहीं।

‘अरे एक ही फोटो देखती रहोगी या मुझे गोलू की कुछ और फोटो भी दिखाने दोगी?’, मनोहर लाल हंसते हुए मनोरमा से बोले। ‘आपके पास उसकी और भी फोटो है? पहले क्यों नहीं बताया? और यह सब आपके पास आई कहां से? चलिए वह बाद में बताइयेगा, पहले फोटो दिखाइये।’, मनोरमा ने मनोहर लाल का हाथ पकड़ते हुए बोला। फिर मनोहर लाल ने मनोरमा को गोलू की कुछ और फोटो भी दिखाई और फेसबुक अकाउंट बनाने की पूरी कहानी भी बताई। इसके बाद से हर सुबह सबसे पहले मनोहर लाल फेसबुक चेक करते थे कि कहीं अनीता ने गोलू की कोई नई फोटो पोस्ट न की हो। जिस दिन उन्हें गोलू की नई फोटो दिख जाती उस दिन मनोरमा बहुत खुश होती।

सुदीप की मौत हुए तीन साल से ज्यादा हो चुके थे। सुदीप मनोहर लाल और मनोरमा का इकलौता बेटा था। शायद यही वजह थी कि दोनों ही उसे सेना में नहीं भेजना चाहते थे। लेकिन, सुदीप अपनी जिद पर अड़ा था कि उसे फौज में ही जाना है। सिर्फ 32 साल की उम्र में सुदीप चीन की सीमा पर हुए एक हादसे में शहीद हो गया था। सुदीप के जाने के गम में मनोरमा बहुत बीमार रहने लगीं और उन्होंने दो बार आत्महत्या करने की कोशिश भी की। गोलू मनोरमा के साथ बहुत घुला मिला था। ऐसे में मनोरमा को लगा कि अगर उन्हें कुछ हो जाता है तो वह अकेला हो जाएगा। इसके बाद उन्होंने आत्महत्या करने का ख्याल मन से हमेशा के लिए निकाल दिया और खुद को यह कह कर समझा लिया कि वह अब गोलू के लिए जिएंगी।

धीरे धीरे वक्त बीतता गया। गोलू लगभग 18 साल का हो गया था। मनोहर लाल और मनोरमा फेसबुक के जरिए गोलू को बड़ा होता देख रहे थे। एक दिन मनोहर लाल को लगा कि गोलू अब बड़ा हो गया है और फेसबुक पर उसका खुद का भी अकाउंट होगा। गोलू का स्कूल का नाम वितुल था। मनोहर लाल ने वितुल को फेसबुक पर खोज लिया और उसे भी शन्नो की तरफ से फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी। वितुल ने तुरंत इसे कंफर्म कर दिया। अब मनोरमा और मनोहर लाल गोलू के दोस्तों के साथ उसकी फोटो भी देखते रहे और उसकी फोटो देख देख कर खुश होते रहे।

जैसे जैसे उम्र बढ़ती जा रही थी मनोहर लाल और मनोरमा की बीमारियां भी बढ़ रही थी। मनोहर लाल को एक ही चिंता सताए जा रही थी कि अगर पहले उन्हें कुछ हो गया तो मनोरमा की देखभाल कौन करेगा? मनोरमा की सेहत दिन पर दिन गिरती जा रही थी। डॉक्टरों ने तो यहां तक कह दिया था कि अब वह कुछ ही दिनों की मेहमान है। मनोरमा ने एक ही रट लगा रखी थी कि मरने से पहले वह गोलू को देखना चाहती है। मनोहर लाल ने बहुत हिम्मत कर गोलू को फेसबुक पर मैसेज भेजा। यह मैसेज उसने मनोरमा की तरफ से लिखा था। इसमें उन्होंने सिर्फ इतना लिखा, ‘ बेटा मैं तेरी दादी हूं जिसके हाथ के बने लड्डू तू बचपन में बहुत पसंद से खाता था। मुझे खेद है कि फेसबुक पर तेरी झलक देखने के लिए मैंने मनोरमा की जगह  शन्नो के नाम का इस्तेमाल किया। अब मेरे पास ज्यादा वक्त नहीं है। मैं किसी भी पल मर सकती हूं। पर मरने से पहले एक बार तुझे देखना चाहती हूं। प्लीज मेरे पास आ जा गोलू।’ मैसेज लिखने के बाद उन्होंने अपना फोन नंबर भी लिख दिया।

वितुल ने जब वह मैसेज पढ़ा तो वह रोने लगा। उसे बचपन में दादा-दादी के साथ बिताए हर पल याद आने लगे। लेकिन, उसे लगा कि अगर वह मां को यह बात बताएगा तो वह उसे कभी भी अपने दादी के पास भारत नहीं जाने देंगी। उसने अपने दोस्त रमन को सारी कहानी बताई। रमन ने कहा कि वह उसकी मां को कहे कि वह उसे अपने भाई की शादी में भारत ले जाना चाहता है। दोनों ने भारत जाने की जो योजना बनाई वह सफल रही और अनीता ने बिना ज्यादा सवाल किए वितुल को भारत जाने की इजाजत दे दी। लेकिन, उसे साफ कह दिया कि वह भूल कर भी अपने दादा-दादी के घर न जाए। वितुल को लगा कि उसे बिना देरी किए जल्द से जल्द दादी के पास पहुंच जाना चाहिए। उसका बार बार मन कर रहा था कि वह एक बार दादी से फोन पर बात कर ले। लेकिन, वह उनके सामने पहुंच कर उन्हें सरप्राइज देना चाहता था। उसने बिना देरी दिए अगले ही दिन की अपनी और रमन की दिल्ली की फ्लाइट की टिकट बुक कराई और मन ही मन प्रार्थना करता रहा कि उसके भारत पहुंचने तक वह उसकी दादी को जिंदा रखें। दिल्ली पहुंच कर उन्होंने जयपुर की फ्लाइट ली।

वितुल चाहे लगभग 13 साल के बाद अपने घर जा रहा था। लेकिन, बचपन की हर बात उसे याद थी। जैसे ही वह अपने दादा के घर के सामने पहुंचा वह जोर जोर से रोने लगा। रमन ने उसे किसी तरह संभाला। घर पहुंच कर घंटी बजाई तो मनोहर लाल ने दरवाजा खोला। गोलू को अपने सामने खड़ा देख उन्हें खुद पर विश्वास नहीं हुआ। उनकी आंखों में खुशी के आंसू आ गए। गोलू को गले लगाया। मनोरमा को पता नहीं कैसे गोलू के आने का आभास हो गया। ‘अरे कौन है? क्या गोलू आ गया? मैं न कहती थी वह मुझसे मिलने जरूर आएगा। मैंने भी जिद कर रखी थी कि उसे देखे बिना मरूंगी नहीं। अब उसे ले भी आइये न मेरे सामने।’ मनोरमा धीरे धीरे बोल रही थी। लेकिन, उसके एक एक शब्द गोलू को सुनाई दे रहे थे। वह दौड़ते हुए बेडरूम की तरफ भागा और मनोरमा के बेड के पास आकर खड़ा हो गया। मनोरमा की आधी आँखें बंद थीं। लेकिन, वह गोलू का नाम लगातार बड़बड़ा रही थी। मनोहर लाल ने मनोरमा को हाथ पकड़ कर बैठाया और पूरी आंखें खोलने को कहा।

‘देखो आ गया तुम्हारा गोलू। एक बार उसे अच्छे से देख तो लो।’, मनोहर लाल की आंखें नम थीं। मनोरमा ने बहुत मुश्किल से आंखें खोलने की कोशिश की। ‘अरे यह तो वाकई में गोलू है। मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा। कितनी देर लगा दी बेटा तूने दादी के पास आने में?’ यह कहते हुए मनोरमा ने गोलू को जोर से गले लगा लिया और फिर फूट फूट कर रोने लगीं। 10 मिनट तक मनोरमा ने गोलू को अपने सीने से लगाए रखा और फिर अचानक वह बैठे बैठे नीचे लुढक़ गईं। मनोहर लाल ने मनोरमा को अपनी बांहों में लिया और जोर जोर से रोने लगे। ‘गोलू देख तेरी दादी हम सबको छोडक़र चली गईं। इसके प्राण तुझे देखने के लिए ही रुके हुए थे।’ गोलू ने किसी तरह से खुद को संभाला। उसे अपने दादा मनोहर लाल को भी संभालना था। थोड़ी देर बाद मनोहर लाल ने गोलू से कहा ‘बेटा तेरी दादी चाहती थीं कि उनकी चिता को मुखाग्नि तू दे। तू यह कर पाएगा? अगर बेटा तुझे बुरा न लगे तो अपनी दादी की इस इच्छा को पूरा कर दे। ’ इतना सुनते ही गोलू ने फूट फूट कर रोना शुरू कर दिया।’

गोलू भला अपनी दादी की अंतिम इच्छा को कैसे न पूरा करता। उसने रोते रोते अपना सिर ‘हां’ में हिला दिया। रात होने के कारण मनोरमा का अंतिम संस्कार उस दिन न हो सका। थके होने के बावजूद गोलू रात भर दादी के पार्थिव शरीर के सामने बैठा रोता रहा। मनोहर लाल ने उसे कई बार कहा कि वह सो जाए। लेकिन, गोलू ने उनसे कहा, ‘दादा जी, इतने समय बाद दादी को देख रहा हूं। कल से तो मुझे उनका चेहरा दिखेगा भी नहीं। एक बार जी भर कर उन्हें देख लेने दीजिए।’ यह कहते हुए गोलू मनोहर लाल के गले से लिपटकर रोने लगा। रोते रोते वह बोला, ‘आपको पता है मैं आप दोनों को कितना याद करता था। मैंने अपने कमरे की अलमारी में आप दोनों की बड़ी सी तस्वीर रखी हुई थी। मां से छिपाकर। जब भी दिल करता था आप दोनों को तस्वीर में देख लेता था। मां से मैंने कितनी बार आपका फोन नंबर मांगा। पर उन्होंने मुझे नहीं दिया। हर साल ग्रैंड पेरेंट्स डे पर मैं आप दोनों के लिए कार्ड बनाता था। मेरी अलमारी में हर साल के कार्ड सुरक्षित पड़े हैं। मैं जल्दीबाजी में उन्हें अपने साथ लाना भूल गया।’ मनोहर लाल और गोलू रात भर मनोरमा के पार्थिव शरीर के सामने बैठकर बातें करते रहे। सुबह अंतिम संस्कार के बाद गोलू जैसे ही घर आया उसे अनीता का फोन आया। उसने बहुत मुश्किल से खुद को संभाला और कहा कि वह रमन के साथ शादी की तैयारी में व्यस्त है। बाद में बात करेगा। उसने मनोहर लाल से आराम करने को कहा और खुद भी सोने चला गया।

आराम करने के बाद जब मनोहर लाल उठे तो उन्होंने गोलू को अपने कमरे में बुलाया। उन्होंने एक लिफाफा थमाते हुए कहा, ‘बेटा मुझे खुशी है कि विदेश जाने के बाद भी तू नहीं बदला। तुझमें आज भी वही संस्कार हैं जो बचपन में थे। मुझे गर्व है कि बचपन में मैंने और तेरी दादी ने जो संस्कार तुझे दिए थे तूने उनसे मुंह नहीं मोड़ा। इस लिफाफे में मेरी वसीयत है जो कि मैंने बहुत पहले लिखी थी। यह घर जमीन जायदाद सब कुछ मैंने तेरे नाम किया है। मुझे उम्मीद नहीं थी कि इस वसीयत को मैं तुझे अपने हाथों से दूंगा। लेकिन, इसे संभाल कर रखना और मेरे मरने के बाद इस घर को कभी बेचना नहीं। हो सके तो यहां कभी कभी आकर रह लेना। मेरी हर चीज अब तेरी है। उम्मीद करता हूं तू इन्हें सहेज कर रखेगा।’ मनोहर लाल की यह बात सुनकर गोलू जोर जोर से रोने लगा। उसने मनोहर लाल के पैर छुए और उन्हें विश्वास दिलाया कि उनकी हर चीज को वह बहुत संभाल कर रखेगा।

मनोरमा की तेरहवीं के अगले दिन गोलू और रमन की फ्लाइट थी। जयपुर से दिल्ली जाने के लिए कैब भी आ चुकी थी। गोलू मनोहर लाल के कमरे में उनसे मिलने गया। काफी देर तक दरवाजा खटखटाता रहा और दादा जी को जोर जोर से आवाज भी लगाई। लेकिन, दरवाजा नहीं खुला तो उसने रमन के साथ मिलकर उसे जोर जोर से धक्का मारना शुरू किया जिससे दरवाजे की कुंडी खुल गई। उसने देखा कि दादा जी सो रहे हैं। वह उनके करीब गया और जैसे ही उन्हें उठाने की कोशिश की उसे कुछ गड़बड़ लगा। रमन ने उनकी हाथों की नब्ज देखी और धडक़न सुनने की कोशिश की। गोलू को समझ आ गया था कि मनोहर लाल भी उसे छोडक़र चले गए हैं। नींद में ही दिल का दौरा पडऩे से मनोहर लाल की मृत्यु को गई थी। गोलू खूब रोया। उसे समझ आ गया था कि उसके दादाजी और दादीजी के प्राण सिर्फ उसके आने के इंतजार में ही रुके हुए थे। उसे तसल्ली थी कि मरने से पहले वह अपने दादा-दादी से मिल पाया और उसे उनका अंतिम संस्कार करने का अवसर मिला। मनोहर लाल के अंतिम संस्कार के बाद गोलू ने अनीता को फोन कर सब सच बता दिया और झूठ बोलने के लिए माफी भी मांगी। साथ ही यह भी स्पष्ट कर दिया कि वह जयपुर में ही रहेगा। अनीता ने उसे बहुत समझाया लेकिन वह विदेश नहीं गया। अपने दादाजी को दिया वचन उसने पूरा किया और आगे की पढ़ाई जयपुर में की। बाद में उसने नौकरी भी जयपुर में ही की और शादी भी यहीं की। अनीता गोलू से मिलने कई बार जयपुर आई। लेकिन, अपनी जिद के चलते वह उसके घर पर नहीं आई और होटल में रुकी। अनीता को भी मालूम था कि गोलू ने जो फैसला लिया है वह सही है। लेकिन, चाहते हुए भी वह उसके इस फैसले का हिस्सा न बन सकी।

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