गिरीश उपाध्याय
खबरनवीस होने के साथ साथ मैं एक इंसान भी हूं। यह बात अलग है कि आजकल खबरनवीस होना और इंसान होना, दोनों अलग-अलग बातें होती जा रही हैं। लेकिन पत्रकारिता के जो थोड़े-बहुत, सही-गलत संस्कार हमारी पीढ़ी को मिले हैं, उनमें इंसानियत पहले है और बाद में पत्रकारिता। और शायद इसलिए हम लोग ‘आउटडेटेड’ होते जा रहे हैं या आउटडेटेड करार दिए जा रहे हैं।
यह फालतू टाइप की आदर्शवादी भूमिका मैंने इसलिए बांधी क्योंकि जिस मुद्दे पर आज मैं बात करना चाहता हूं, उसमें कुछ खबरवादियों को आदर्शवादी बू आ सकती है। मसला फिर से उसी मध्यप्रदेश विधानसभा का है जिसका मानसून सत्र इन दिनों चल रहा है।
शुक्रवार को सदन में ऐसा नजारा देखने को मिला जो पकी उम्र के नेताओं के लिए एक सबक है। उम्रदराज होने के कारण मंत्री पद से हटा दिए गए वरिष्ठ नेता बाबूलाल गौर इन दिनों सदन में विधायक की हैसियत से बैठ रहे हैं। मंत्री पद पर रहते हुए गौर साहब ने सवाल पूछने के बजाय, जवाब देने की जिम्मेदारी बरसों निभाई। लेकिन अब वे फिर अपने पुराने विधायक वाले रंग में दिखाई दे रहे हैं। उनका यह रंग मीडिया वालों को रोज नई खबरें दे रहा है लिहाजा गौर साहब सुर्खियों में भी बने हुए हैं।
हुआ यूं कि गौर साहब ने भोपाल और इंदौर में मेट्रो रेल परियोजना के अमल में देरी को लेकर एक ध्यानाकर्षण प्रस्ताव दिया। चूंकि वे स्वयं लंबे समय तक नगरीय विकास विभाग संभाल चुके हैं, इसलिए आप कह सकते कि उनकी जान आज भी इस विभाग में बसती है। उन्होंने बहुत तीखे अंदाज में नगरीय विकास विभाग की नई मंत्री मायासिंह से सवाल पूछे। मायासिंह ने गौर साहब का पूरा सम्मान करते हुए बड़ी शालीनता से अपनी क्षमतानुसार जवाब देने की कोशिश की और वे यह जताने से भी नहीं चूकीं कि वे तो गौर साहब का संरक्षण और मार्गदर्शन चाहेंगी। लेकिन गौर साहब शायद किसी और ही रंग में थे।
मायासिंह ने जब यह कहा कि इंदौर और भोपाल में मेट्रो रेल परियोजना पर तेजी से काम चल रहा है और 2021-22 तक इसे पूरा करने का लक्ष्य है। तो गौर साहब ने विभाग की आलोचना के बहाने मंत्री को निशाने पर लेते हुए यहां तक कह डाला कि तब तक ‘’आप भी नहीं रहेंगे, हम भी नहीं रहेंगे विधानसभा में… खूब योजना बनाई है।‘’ अब यह तो पता नहीं कि गौर साहब यह कहते हुए अगले विधानसभा चुनाव में अपनी पार्टी को लेकर कोई भविष्यवाणी कर रहे थे या उसे शाप दे रहे थे, लेकिन उनकी तल्खी हैरान कर देने वाली थी।
ऐसे ही बहुत तकनीकी सवालों में मंत्री को उलझाते हुए गौर साहब बोले कि आपने और आपके अधिकारियों ने अध्ययन किया हो तो मेरे सवाल का जवाब दें, नहीं तो मुझे उस (मंत्री वाली) सीट पर बैठने की अनुमति दें, मैं बता दूंगा। उनके इस कथन ने यकीन दिला दिया कि मंत्री पद से हटाए जाने के हादसे से उबरने में पार्टी के इस दिग्गज नेता को काफी समय लगेगा।
चर्चा के दौरान वरिष्ठ मंत्रियों ने गौर साहब को संभालने और माहौल को हलका करने की भरपूर कोशिश की। वन मंत्री गौरीशंकर शेजवार ने कहा कि मैं तो स्थानीय शासन मंत्रीजी को बधाई देना चाहता हूं कि उन्होंने कितना अच्छा उत्तर दिया। गौर साहब को तो निरुत्तर होना चाहिए। पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री गोपाल भार्गव गौर साहब से बोले कि- आप तो उत्तरप्रदेश के गवर्नर बनकर जा रहे हो। अब आपको भोपाल की मेट्रो से क्या करना है? इस पर बाबूलाल गौर ने तंज कसा कि आप तो अब मुझे भोपाल से भी दूर करना चाहते हो।
कटाक्षों का सिलसिला लंबा चला। क्लाइमेक्स यह रहा कि गौर साहब के तीखे तेवरों से तंग आकर एक तरह से पलटवार करते हुए मायासिंह ने कहा- ‘’मैं केवल यह कहना चाहती हूं कि इस प्रोजेक्ट के फिजिबलिटी टेस्ट में ही तीन साल लगे हैं और यह वो समय है जब माननीय गौर साहब मंत्री थे। सवाल तो मैं आपसे पूछना चाहती हूं कि आप नगरीय विकास मंत्री थे तो इसमें तीन साल क्यों लगे, इसमें इतनी देरी क्यों हुई?’’
मायासिंह के इस सवाल में छिपा संकेत गौर साहब को समझना होगा। निश्चित रूप से वे पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं, सदन में उनका सम्मान भी है। लेकिन खबरनवीस की तरह नहीं, बल्कि एक इंसान की तरह सोचूं, तो खुद को खबर बनाने की अनावश्यक कोशिशों से उन्हें बचना होगा। सुर्खियों में बने रहने के लिए गौर साहब ने अपनी पीड़ा को जिस तरह खीज के रूप में प्रस्तुत करना शुरू कर दिया है, उसके चलते इस बात की पूरी संभावना है कि वे अपना वर्तमान सम्मान भी खो बैठें। निश्चित रूप से सरकार या पार्टी में कोई भी उनका असम्मान नहीं चाहेगा, लेकिन यदि उन्होंने खुद को सक्रिय दिखाने के लिए संयम से समझौता किया, तो उसकी परिणति शायद उन्हें और अधिक ठेस पहुंचाने वाली होगी। आडवाणीजी का उदाहरण सबके सामने है…