गिरीश उपाध्याय
लंदन के ‘द टेलीग्राफ’ अखबार के नई दिल्ली प्रतिनिधि एंड्रयू मार्शल ने अपने अखबार में एक जुलाई को एक रिपोर्ट छापी। हम तो चूंकि यहां के अखबारों की ही खबरें पूरी तरह नहीं पढ़ पाते, इसलिए यह उम्मीद करना कि लंदन के अखबार में क्या छपा है, वह भी हमें पता होगा, यह हम लोगों के साथ ज्यादती होगी। लेकिन हाल ही में मेरे एक मित्र ने ‘द टेलीग्राफ’ में छपी उस खबर का जिक्र मुझसे किया। यह बात भी यूं आई कि वह खबर हमारे अपने मध्यप्रदेश और यहां के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह से जुड़ी हुई थी।
अपना जिक्र लंदन के अखबार में होने की सूचना मात्र से ही आप कूदने लगें हों तो जरा ठहरिए।
दरअसल यह खबर मध्यप्रदेश में गठित किए जाने वाले आनंद या खुशी मंत्रालय से ताल्लुक रखती है। और मेरे मित्र ने जिस कारण से मुझे यह खबर सुनाई वह इसकी शानदार शुरुआत को लेकर है। एंड्रयू मार्शल ने अपनी खबर की शुरुआत ही इन शब्दों से की है-
‘’India’s notoriously oversized bureaucracy has found a new way to expand – the country’s first ministry of happiness, dedicated to “putting a smile on every face”.
यानी जिस आनंद या खुशी मंत्रालय को हम अपने क्रांतिकारी कदम के रूप में देख रहे हैं उसके बारे में अंतरराष्ट्रीय मीडिया की धारणा है कि यह भारत की कुख्यात तरीके से मुटा रही नौकरशाही का, अपनी तोंद को विस्तार देने का एक और नया शगूफा है।
आनंद मंत्रालय से संबंधित इस खबर में मध्यप्रदेश के कुपोषण, शिशु मृत्यु दर और बलात्कार जैसे मामलों में अव्वल रहने और बड़ी संख्या में छात्रों के द्वारा आत्महत्या किए जाने का भी जिक्र किया गया है। इसमें शिवराजसिंह के हवाले से कहा गया है कि- ‘’आनंद की अनुभूति भौतिक उपलब्धियों या विकास से नहीं हो सकती। यह तो तभी हो सकती है जब हम लोगों के जीवन में सकारात्मकता लाएं।‘’
द टेलीग्राफ की खबर अपनी जगह है, लेकिन यहां अपने मध्यप्रदेश में और उसकी राजधानी भोपाल में रहते हुए मैं भी बड़ी आतुरता से प्रतीक्षा कर रहा हूं कि यह आनंद मंत्रालय कब गठित होगा और कब हम सारे लोग आनंद या खुशी से झूमने लगेंगे। यदि मैं गलत नहीं हूं तो आचार्य रजनीश ने एक बार भारतीय समाज के बारे में कहा था- ‘’आनंद आमार जाति, उत्सव आमार गोत्र’’। इसी संदर्भ में इस आनंद मत्रालय का बेसब्री से इंतजार है।
वैसे आज की राजनीति, आचार्य रजनीश की लाइन से थोड़ा अलग चलती है। उसका ध्येय वाक्य है ‘’राजनीति आमार जाति, सत्ता आमार गोत्र’’। लेकिन जब खुद सरकार ने ऐलान किया है कि वह प्रदेश में आनंद मंत्रालय बनाने जा रही है तो हमें इन विदेशियों की बात पर न जाकर अपने नुमाइंदों पर भरोसा करना चाहिए। दरअसल हमारे साथ मुश्किल ही यही है कि चाहे ‘अच्छे दिन’ का नारा हो या ‘आनंद मंत्रालय’ की बात, हम हमेशा ऐसी चीजों को संदेह की दृष्टि से देखने लगते हैं। ये जो नया मंत्रालय बन रहा है वह इसी ‘नकारात्मक सोच’ को बदलने के लिए है। उसका उद्देश्य ही यही है कि हम ‘जीवन में सकारात्मकता’ लाएं।
वास्तव में खोट हमारे भीतर ही है। हम चीजों को अच्छा महसूस ही नहीं करना चाहते। हम अच्छे दिनों अथवा आनंद या खुशी को भी न्याय के समकक्ष मानने लगते हैं। जैसे न्याय के बारे में कहते हैं कि न्याय हुआ यह पर्याप्त नहीं है, बल्कि न्याय हुआ है, यह महसूस भी होना चाहिए। वैसे ही अच्छे दिनों और आनंद का मामला है। पर हम महसूस तो करें, अच्छे दिन भी हैं और चारों ओर आनंद भी है। बस हमारी नकारात्मकता ने हमारी आंखों पर पट्टी बांध रखी है और उसी कारण हम इस ‘अच्छाई और आनंद’ को देख या महसूस नहीं कर पा रहे हैं।
सात समंदर पार, लंदन के उस अखबार ने, हमारे आनंद मंत्रालय को लेकर जाने किन किन बातों की समीक्षा कर डाली और इधर हम इसी सवाल में उलझे हैं कि आनंद मंत्रालय किसे मिलेगा? हाल ही में शिवराज मंत्रिमंडल के बहुचर्चित विस्तार के बाद भी यही सवाल पूछा गया कि आनंद मंत्रालय किसको मिला?
मेरे विचार से इस पर कोई विवाद नहीं करना चाहिए। मैं उन ज्यादातर लोगों से सहमत हूं जो यह मानते हैं कि मुख्यमंत्री ही यह विभाग अपने पास रखें, तो ठीक है। मेरे हिसाब से यह विभाग मिलना भी उसी को चाहिए जो सबसे ज्यादा खुश हो। निश्चित रूप से इस समय मुख्यमंत्री से ज्यादा खुश कौन हो सकता है। वैसे भी वे मुखिया हैं। पुरानी कहावत है कि हाथी के पांव में सबका पांव, उसी तरह मुखिया के आनंद में सबका आनंद। क्योंकि यदि मुखिया ही खुश नहीं रहेगा, तो कुनबे के खुश रहने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता। और हमारे यहां तो कुनबा भी कोशिश करता रहता है कि मुखिया खुश बना रहे, ताकि बाकी लोगों की खुशी न छिने। यही तो सकारात्मकता है, यही तो आनंद है।
अंत में एक चेतावनी। इस आलेख के शीर्षक को शब्दश: वैसे ही पढि़एगा जैसा मैंने लिखा है। इसमें अपना दिमाग लगाने की जरूरत नहीं है। हालांकि मुझे पता है कि आप इसे ‘’मजे लीजिए कि आप मध्यप्रदेश में हैं’’ जैसा कुछ पढ़ने की कोशिश करेंगे। लेकिन उसके बाद यदि किसी ने पूछ लिया कि किसके? तो आपकी मुश्किल हो सकती है…
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आप द टेलीग्राफ की मूल खबर इस लिंक पर देख सकते हैं http://www.telegraph.co.uk/news/2016/07/01/india-gets-its-first-ministry-of-happiness/