गिरीश उपाध्याय
जब वह खबर मेरे पास चैक होने के लिए आई तो मैंने उसे कई बार पढ़ा। इसलिए नहीं कि उसमें गलतियां थीं, बल्कि इसलिए कि मुझे उस खबर पर विश्वास ही नहीं हो रहा था। जब मुझे यकीन के साथ कहा गया कि खबर सही है और उसमें संबंधित व्यक्ति से बात भी हो गई है, तब मजबूरन मुझे विश्वास करना पड़ा कि ऐसा भी हो सकता है।
खबर यह थी कि 75 साल की उम्र पार करने के कारण, हाल ही में मध्यप्रदेश के शिवराजसिंह मंत्रिमंडल से हटाए गए लोक निर्माण विभाग के मंत्री सरताजसिंह के निवास ‘विंध्य कोठी’ पर कुछ लोग पहुंचे। बताया जाता है कि इन लोगों ने खुद का परिचय, हाल ही राज्य मंत्री बनाए गए पूर्व मुख्यमंत्री गोविंदनारायण सिंह के बेटे हर्ष सिंह के स्टाफ के रूप में दिया। इन लोगों ने सरताज सिंह के यहां पहुंचकर यह जानना चाहा कि वे बंगला कब खाली कर रहे हैं।
सरताज सिंह मध्यप्रदेश भाजपा के वरिष्ठ नेता हैं। वे 1989 से 2004 तक पांच बार लोकसभा सदस्य चुने गए। उसके बाद 2008 और 2013 में वे मध्यप्रदेश विधानसभा के सदस्य चुने गए। वे अटलबिहारी वाजपेयी सरकार के समय केंद्र में मंत्री रह चुके हैं। इसके अलावा पार्टी में भी कई वरिष्ठ पदों पर रहे हैं। उन्होंने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत ही 1963 से की थी।
ऐसे में बंगला खाली करने को लेकर इस तरह की गई पूछताछ पर सरताज का दुखी होना स्वाभाविक था। उन्होंने आश्चर्य और दुख के साथ इस घटना पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि बंगले में रहने के लिए जो नियम हैं वे सब पर समान रूप से लागू होने चाहिए। सिर्फ मेरे लिए अलग नियम क्यों माने जा रहे हैं। और भी पूर्व मंत्री बंगलों में रह रहे हैं। मंत्रियों की भी छोड़ दें, कई विधायक बड़े बंगलों में रह रहे हैं। अगर कोई नियम है तो वह फिर सब पर लागू हो।
इस घटना में अपना नाम उछलने पर हर्ष सिंह ने मीडिया को जो प्रतिक्रिया दी है, उसके अनुसार उन्होंने इनकार किया है कि उनके समर्थक सरताज सिंह के बंगले पर गए थे। हर्षसिंह ने यह भी कहा कि अभी यह बंगला उन्हें आवंटित नहीं हुआ है। सरताज सिंह जब तक चाहें रहें। वे वरिष्ठ नेता हैं। मैं कैसे बंगला खाली करने के लिए कह सकता हूं।
लेकिन दरअसल यहां मुद्दा सरताज या हर्षसिंह नहीं बल्कि वह माहौल है जो प्रदेश में इन दिनों दिखाई दे रहा है। मान लिया कि जो लोग सरताज सिंह के बंगले पर गए वे हर्षसिंह के आदमी नहीं थे। लेकिन इस घटना के होने से तो इनकार नहीं किया जा सकता। और जब घटना हुई है तो, यह सवाल भी बनता है कि सरकार के एक पूर्व मंत्री के घर जाकर इस तरह की पूछताछ करने वाले वे लोग कौन थे? उनका पार्टी में ही किसी न किसी से तो वास्ता रहा होगा। वरना इतने वरिष्ठ नेता के यहां जाकर इस तरह की पूछताछ करने की हिम्मत कोई आम आदमी तो कतई नहीं करेगा। यानी जो लोग वहां गए होंगे उनके पीछे किसी न किसी की ताकत तो जरूर होगी। तो क्या इस बात की पड़ताल नहीं होनी चाहिए कि वो कौन लोग थे जो सरताज या उनके स्टाफ को मकान खाली करने के लिए चमकाने गए थे। वो कौन लोग हैं जिनकी उस बंगले पर निगाह है या जो उस बंगले को अपने लिए चाहते हैं।
अब तक प्रदेश में गली मोहल्लों में स्थानीय गुंडों या रंगदारी करने वालों के जरिए इस तरह मकान खाली कराए जाने की खबरें तो सुनी थीं लेकिन क्या अब यह नौबत आ गई है कि कुछ लोग आएं और बमुश्किल सप्ताह भर पहले मंत्री पद छोड़ने वाले नेता को बंगला खाली करने के लिए धमका जाएं। ऐसे कैसे कोई जाकर पूछ सकता है कि आप बंगला कब खाली करोगे, जब तक कि वह सरकार का कोई कारिंदा या उस काम के लिए अधिकृत किया हुआ आदमी न हो। क्या सरकार और पार्टी में लोगों को इस तरह की मनमानी करने की छूट मिल गई है? नैतिकता और संस्कारों की बात करने वाली भाजपा में क्या बुजुर्गों के प्रति सामान्य लिहाज तक खत्म होता जा रहा है? प्रदेश में ऐसा माहौल तो कभी नहीं रहा।
इसी सिलसिले में एक किस्सा याद आ रहा है। बरसों पहले एक दल की सरकार में नए नए बने मंत्री को एक पूर्व मुख्यमंत्री का बंगला पसंद आ गया। उस मंत्री ने सीधे उन पूर्व मुख्यमंत्री से पूछ डाला कि आप यह बंगला कब तक खाली करेंगे। पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि मैं आपके मुख्यमंत्री से बात करके बताता हूं। जब तत्कालीन मुख्यमंत्री को यह मामला पता चला तो उन्होंने न सिर्फ उस मंत्री को बुलाकर फटकार लगाई बल्कि उसे निर्देश दिया कि वह पूर्व मुख्यमंत्री से माफी मांगे। जबकि वे दूसरी पार्टी के नेता थे।
लेकिन राजनीतिक सौहार्द की ऐसी मिसाल मिलने की बात तो छोडि़ए, लगता है अब तो ऐसे किस्से भी कोई सुनना और सुनाना पसंद नहीं करेगा। सोचता हूं, मध्यप्रदेश पहले बीमार था या अब बीमार हो रहा है…