गिरीश उपाध्याय
साल डेढ़ साल से जिस मंत्रिमडल के विस्तार का हल्ला चल रहा था,मध्यप्रदेश में उसका अनुष्ठान पूरा हो चुका है। शनिवार रात नए मंत्रियों को काम देकर और कुछ पुराने मंत्रियों के काम बदल कर इस यज्ञ की पूर्णाहुति भी डाली जा चुकी है। इस खेल में जिसको जो-जो चालें चलनी थीं, उसने वो-वो चालें चलीं। कुछ के पांसे ठीक बैठे तो कुछ के उलट गए। कोई अपने लिए खेला, तो किसी ने दूसरे को निपटाने के लिए मोहरे चले। पिछले कई दिनों से मध्यप्रदेश भाजपा के नेता काम पर लगे थे। कोई काम कर रहा था, तो कोई ‘काम लगा’ रहा था। अब सवाल यह है कि ‘काम करने’ और ‘काम लगाने’ का यह खेल पूरा हो गया हो तो सबको आदेशित किया जाए कि जिस ‘काम’ का बहाना करके यह राजनीतिक खेल खेला गया है, सारे ‘खिलाड़ी’ उस ‘वास्तविक काम’ पर लग जाएं।
हालांकि जो हालात दिखाई दे रहे हैं, वे तो यही संकेत देते हैं कि काम लगने और लगाने का यह खेल जल्दी खत्म होने वाला नहीं है। हो सकता है यह खेल राज्य विधानसभा के अगले चुनाव तक जारी रहे। राजनीति में कुछ काम, सरकारी कामों की तरह होते हैं। चलते ही रहते हैं। जैसे सरकारी कामों का चलते रहना या लंबा खिंचना फायदे का सौदा होता है, उसी तरह राजनीति में भी जो काम चलते हैं, उनका लंबा खिंचना आमतौर पर फायदा ही देकर जाता है। इसलिए लोग काम जल्दी खत्म करने में रुचि कम ही लेते हैं।
लेकिन हुजूर, आपसे अपेक्षा है कि आप ऐसा ना होने दें। जिसको नौकरी दे दी है, जिसको पदोन्नति दे दी है या जिसको नई जिम्मेदारी दे दी है,उससे कहें कि भाई अब काम पर लग जा। जो होना था, वो हो चुका है। आखिर में काम ही काम आने वाला है। सरकार में बैठे लोगों का काम पर लग जाना इसलिए भी जरूरी है कि, इस विस्तार अनुष्ठान में जिनके काम लगा दिए गए, वे भी काम पर लग गए हैं।
अपने बाबूलाल गौर साहब को ही देख लीजिए। आपने उन्हें मंत्री पद से हटाया तो वे विधायकी के काम में लग गए हैं। पता चला है कि इसी माह होने वाले विधानसभा के मानसून सत्र के लिए गौर साहब ने बतौर विधायक दो प्रश्न भी लगा दिए हैं। कई सालों बाद गौर साहब सिर्फ विधायक की हैसियत से विधानसभा में प्रश्न पूछेंगे। कई सालों से वे उत्तर देने की जिम्मेदारी निभाते आ रहे थे। लेकिन चूंकि अब खुद उन पर ही सवाल खड़ा कर दिया गया है, तो उन्होंने इस बार सवाल पूछ कर, जवाब देने का काम पकड़ लिया है। ऊपरवाला उन्हें सेहतमंद बनाए रखे, तो दो ढाई साल वे ऐसे ही सवाल पूछ-पूछ कर अपने ऊपर सवाल खड़ा करने वालों को माकूल जवाब देते रहेंगे।
उधर मंत्रिमंडल विस्तार के बाद मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस भी काम पर लग गई है। उसने पहला काम ही गौर साहब के यहां जाकर उनके हाथ से मिठाई खाने का किया है। जो पार्टी ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ का नारा दे रही हो उसके एक दिग्गज नेता ने कांग्रेसियों को अपने ‘मुक्ति पर्व’ पर मिठाई खिलाई। अब पता नहीं भाजपा के लिए यह शगुन है या अपशगुन? पर गौर साहब ने उसकी शुरुआत कर दी है।
एक तरह से सरकार और संगठन के मुखिया के लिए काम बढ़ता ही जा रहा है। कुछ लोगों को काम देकर उनका मुंह बंद किया, तो वो लोग माथे आ रहे हैं जिनको काम नहीं मिला। अब मजबूरन कुछ लोगों को इस काम में लगाना पड़ेगा कि वो उन लोगों को किसी न किसी काम में लगाए रखें, जिन्हें काम नहीं दिया जा सका है। वरना वो लोग पार्टी का काम लगा देंगे।
वैसे राजनीति बड़ी झंझट की चीज है। काम करो तो मुसीबत, काम न करो तो उससे ज्यादा मुसीबत। लालबत्ती देने में उतने पापड़ नहीं बेलने पड़ते, जितने लालबत्ती से वंचित रखने में या दी हुई लालबत्ती छीनने में बेलने पड़ते हैं। और कई बार ऐसा होता है कि जिसे बत्ती दी है वह भी खुश नहीं होता और जिसे बत्ती नहीं मिली या जिसकी बत्ती छिन गई वह आपको बत्ती देने में जुट जाता है। मुश्किल यह है कि इन बत्ती देने वालों की बत्ती आप ‘लाइन मेंटनेंस’ के नाम पर भी नहीं काट सकते। क्योंकि वे आपकी लाइन से अलग लाइन में खड़े हो चुके होते हैं और अपनी लाइन को बड़ा करने के चक्कर में वे आए दिन आपकी लाइन को काटने की कोशिश करते रहते हैं।
आपकी लाइन छोटी न हो, और आप सबको अपनी लाइन में रख सकें, इसलिए भी जरूरी है कि सबको जल्द से जल्द काम पर लगा दें। आपने कुछ लोगों को काम देने के नाम पर, कई लोगों के काम लगा दिए हैं। इससे पहले कि वे आपके काम लगाने का सरंजाम जुटाएं आप उन्हें कोई ऐसा काम सौंप दीजिए, जो उन्हें चौबीस घंटे और सातों दिन बिजी रखे। वो कहते हैं ना, खाली दिमाग शैतान का घर होता है। आपने अपने घर में ऐसे कई शैतान खुद पैदा कर लिए हैं। और ये उनमें से भी नहीं हैं जो एक घर छोडकर चलते हों।