क्‍या कमजोर हुई है तोमर के सिक्‍के की खनक?

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आदर्श गुप्‍ता ग्‍वालियर चंबल क्षेत्र के वरिष्‍ठ पत्रकार हैं। वे पिछले 35 सालों से भी अधिक समय से मुरैना में रहते हुए वहां की राजनीतिक को बहुत बारीकी से देखते और उसका विश्‍लेषण करते रहे हैं। मध्‍यमत डॉट काम के लिए शिवराज मंत्रिमंडल के विस्‍तार पर उनकी यह खास रपट।

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केन्द्रीय खनन एवं इस्पात मंत्री और मध्यभारत में भाजपा के सबसे ताकतवर नेता नरेन्द्र सिंह तोमर के घोर विरोधियों को मंत्रिमंडल में शामिल करके मुख्यमंत्री ने मध्यभारत में स्थापित तोमर स्रामाज्य की नींव हिला दी है। यह साम्राज्‍य तोमर ने भारी सूझबूझ और जोड़तोड़ के सहारे खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की मदद से खड़ा किया था।

विद्यार्थी परिषद के छोटे से पदाधिकारी से राजनीतिक जीवन शुरू करने वाले नरेन्द्र सिंह तोमर ने प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद तरक्की की सीढि़यां तेजी से चढ़ीं। वे राज्य मंत्रिमंडल में मंत्री बने, पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष बने। यहां तक कि पिछले सप्ताह तक प्रदेश में मुख्यमंत्री पद का सबसे सशक्त दावेदार भी उन्हें माना जा रहा था, लेकिन 30 जून को हुए शिवराज मंत्रिमण्डल के विस्तार ने स्थिति बदल दी। इस विस्तार में कम से कम तीन ऐसे लोगों को मंत्री बनाया गया जो नरेन्द्र सिंह तोमर के घोर विरोधी हैं और अपनी राजनीति के लिए श्री तोमर ने इन तीनों का राजनीतिक भविष्य चौपट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

ग्वालियर की राजनीति में सफलता के लिए श्री तोमर ने जिन जयभान सिंह पवैया को पार्टी में उनके ऊंचे कद के बाद भी कभी बढ़ने नहीं दिया था। उसी तरह चंबल की राजनीति में अपनी पकड़ बनाए रखने के लिये उन्होंने मुरैना से विधायक रूस्तम सिंह को दफन करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

रूस्तम सिंह 2003 में भारतीय पुलिस सेवा की नौकरी छोडकर राजनीति में आए थे। मुरैना क्षेत्र की गुर्जर राजनीति में उनकी उपयोगिता को समझकर उन्हें टिकट और पद की गारंटी के साथ भाजपा में शामिल किया गया था। इस वायदे को निभाया भी गया। पहली बार विधायक बनने के बावजूद मुख्यमंत्री उमा भारती ने उन्हें राज्यमंत्री बनाया। बाद में आए शिवराज सिंह चौहान ने भी उनका मंत्रिपद जारी रखा। 2008 के चुनाव में रुस्तम सिंह बसपा के परशुराम मुद्गल से चुनाव हार गए थे। 2013 में वे फिर जीते, इस बार भी उनका मंत्री बनना तय था लेकिन तब तक प्रदेश और केन्द्र की सरकार में ताकतवर हो चुके नरेन्द्र सिंह उनके राह में आ गए।

बताते हैं कि 2009 के लोकसभा चुनाव में मुरैना श्योपुर लोकसभा सीट से प्रत्याशी नरेन्द्र सिंह तोमर को गुर्जरों ने वोट नहीं दिए थे। ठाकुरों के वोट चूंकि उन्हें एक मुश्त मिले थे इससे वे जैसे तैसे चुनाव जीत गए। 2014 के चुनाव में ठाकुरों का समर्थन भी खो बैठने के कारण हार की आशंका के चलते तोमर ने अपना चुनाव क्षेत्र ही बदल लिया। ग्वालियर संसदीय सीट के दावेदार अनूप मिश्रा को उन्होंने मुरैना भिजवा दिया और खुद ग्वालियर से लड़कर सांसद और फिर केन्द्र में मंत्री बन गए। मुरैना में असहज महसूस कर रहे अनूप मिश्रा 2019 में ग्वालियर सीट पर फिर से दावा ठोकेंगे इसलिए नरेन्द्र सिंह तोमर ने मुरैना संसदीय क्षेत्र में अपनी जमावट जारी रखी। यही कारण है कि वहां से जीते 4 भाजपा विधायकों में से किसको कितनी ताकत देनी है, इसका फैसला नरेन्द्र सिंह ने अपने हाथ में रखा फलस्वरूप पूरी ताकत लगाकर भी रुस्तम सिंह पिछले ढाई साल में मंत्री नहीं बन पाए।

वरिष्‍ठ पुलिस अधिकारी रह चुके रुस्तम सिंह ने इस बार मध्य भारत में स्थापित तोमर साम्राज्य और उससे हो रहे पार्टी के नुकसान को नागपुर और दिल्ली में बैठे नीति निर्धारकों को समझाने में सफलता हासिल की। इसमें कई पीडि़तों का उन्हें साथ मिला हुआ था इसके चलते स्थितियां अचानक बदल गईं। और मंत्रिमंडल के ताजा विस्‍तार में उनका वह सिक्‍का कमजोर रहा जो अब तक पूरी खनक के साथ चलता आ रहा था।

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