गिरीश उपाध्याय
मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की मुश्किलें कम नहीं हो रही हैं। पहले मंत्रिमंडल में शामिल किए जाने वाले नए नामों को लेकर भारी उठापटक हुई और अब विभागों के वितरण को लेकर पेच उलझा हुआ है। यही कारण है कि शपथ हो जाने के 24 घंटे बाद तक नए मंत्रियों को विभागों का वितरण नहीं हो पाया है। पता चला है कि जिस तरह से मंत्रिमंडल विस्तार को अंजाम दिया गया उससे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ काफी नाराज है। मुख्यमंत्री ने शुक्रवार रात संघ के वरिष्ठ पदाधिकारियों से मुलाकात कर उन्हें मंत्रिमंडल विस्तार से जुड़ी बातों का ब्योरा दिया। संघ की सबसे गहरी नाराजी विजयराघोगढ़ के विधायक संजय पाठक को मंत्रिमंडल में शामिल करने को लेकर है। उनका नाम संघ या वरिष्ठ नेताओं को विश्वास में लिए बिना जोड़ा गया। संघ इस बात को लेकर भी हतप्रभ है कि एक तरफ तो इंदौर जैसे महत्वपूर्ण शहर के प्रतिनिधित्व को लेकर कोई सहमति नहीं बन सकी दूसरी ओर कांग्रेस से भाजपा में आए विंध्य के अरबपति नेता संजय पाठक को मंत्री बनाने पर सारी सहमतियां बन गईं।
पार्टी से जुड़े सूत्र बताते हैं कि मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर ऐसी कई बातें हुईं हैं जो चौंकाने वाली हैं। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ कि राजभवन में शपथ शुरू होने के ऐन पहले तक नामों को लेकर जोड़ तोड़ चली हो। संघ के समर्थन से मंत्रिमंडल में शामिल किए गए मंत्री जयभानसिंह पवैया तो शपथ ग्रहण से पहले नाराज होकर वहां से चल दिए थे। कारण यह था कि वरिष्ठता के बावजूद उनका नाम राज्य मंत्रियों की सूची में डाल दिया गया था। आनन फानन में उन्हें मनाया गया और केबिनेट मंत्री पद की शपथ दिलाई गई। यहां सवाल यह है कि आखिर वो कौन था जिसने पवैया का कद काटने की कोशिश की। क्या पार्टी आलाकमान और संघ की जानकारी के बिना भी कोई लॉबी मंत्रियों के नाम और कद तय करने में लगी हुई थीं? क्या यह सब मुख्यमंत्री की जानकारी में हो रहा था? इसमें उनकी सहमति थी या नहीं? ऐसे कई सवाल है जो खुद पार्टी के नेताओं को अंदर ही अंदर मथ रहे हैं।
दूसरा मामला बाबूलाल गौर और सरताजसिंह जैसे वरिष्ठ एवं बुजुर्ग मंत्रियों को हटाए जाने को लेकर है। पार्टी के ही कई नेता कह रहे हैं कि इन्हें हटाने का तरीका ठीक नहीं था। शुक्रवार को पार्टी के वरिष्ठ नेता और चुनाव संकल्प पत्र समिति के अध्यक्ष विक्रम वर्मा ने कहा कि यह तो चलती बस में से किसी को उतार देने जैसा मामला है। बेहतर होता दोनों मंत्रियों को विश्वास में लेकर कोई कार्रवाई की जाती। यानी गौर और सरताज को ऐन वक्त तक यह नहीं बताया गया कि उन्हें हटाया जा रहा है। तो क्या 75 साल की उम्र वालों को हटाने का फैसला कोई नीतिगत निर्णय नहीं था? क्या यह फैसला आनन फानन में लिया गया। एक सवाल यह भी है कि इस फैसले के पीछे नीति का हाथ कितना है और अपने लोगों को मंत्रिमंडल में शामिल करने के लिए जगह बनाने की कवायद का कितना?
संजय पाठक को शामिल करने के लिए प्रदेश भाजपा के पूर्व संगठन महामंत्री अरविंद मेनन की सिफारिश की बात भी सामने आई है। यदि ऐसा है तो क्या मुख्यमंत्री ने मेनन की सिफारिश को तवज्जो देकर पाठक के नाम पर हामी भरी? हालांकि पार्टी और मुख्यमंत्री के नजदीकी सूत्रों का कहना है कि चुनावों के वक्त पार्टी को जिताने और उसके पक्ष में माहौल बनाने के लिए दूसरे दलों, खासकर कांग्रेस से कई नेताओं को भाजपा में लाया गया है। पिछले लंबे समय से यह बात चल रही थी कि ये लोग भाजपा में आ तो गए हैं लेकिन अपने आपको उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। ऐसे में यह संदेश देना जरूरी हो गया था कि अन्य दलों से आए लोगों की भाजपा में उपेक्षा नहीं होगी। क्योंकि यदि ऐसी धारणा बन जाती तो पार्टी को भविष्य में रणनीतिक नुकसान उठाना पड़ सकता था। वैसी स्थिति में कोई भी नेता भाजपा में आने को राजी नहीं होता।
एक मामला इंदौर का भी है जो पार्टी के लिए गले की हड्डी बना हुआ है। इंदौर जैसे प्रदेश के सबसे महत्वपूर्ण शहर का मंत्रिमंडल में प्रतिनिधित्व ही नहीं है। बताया यह जा रहा है कि वहां लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन और पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री कैलाश विजयवर्गीय के अपने अपने समर्थकों को मंत्री बनाए जाने को लेकर अड़ जाने के कारण मामला टल गया। मीडिया के अलग अलग वर्ग ने इसकी अलग अलग तरह से व्याख्या की है। एक वर्ग का कहना है कि इस बहाने कैलाश विजयवर्गीय ने अपनी ताकत दिखा दी है कि यदि उनके समर्थक रमेश मेंदोला को मंत्री नहीं बनाया जाता तो फिर इंदौर से कोई भी मंत्री नहीं बनेगा। यही बात दूसरा वर्ग सुमित्रा महाजन के लिए उनके समर्थक विधायक सुदर्शन गुप्ता के लिए कह रहा है। लेकिन इसमें एक एंगल की तरफ बहुत कम लोगों का ध्यान गया है। वो ये कि मुख्यमंत्री और प्रदेश पार्टी संगठन ने बहुत सफाई से इंदौर के नेताओं को आपस में ही लड़ा दिया है। वे यह कह सकते हैं कि हम तो मंत्री बनाना चाहते थे लेकिन आपके आकाओं ने ही इस पर सहमति नहीं दी। ऐसे में इंदौर के विधायक और उनके ‘अभिभावक’ नेताओं के बीच दरार और गहरी होने से इनकार नहीं किया जा सकता।
कुल मिलाकर मंत्रिमंडल का यह लोचा आने वाले दिनों में सरकार को हिलाए रखेगा। मुख्यमंत्री ने नए मंत्रियों के साथ हुई केबिनेट की पहली बैठक में शुक्रवार को हिदायत दी कि स्वागत सत्कार आदि के दौरान मंत्रिगण सेल्फी प्रेम से सावधान रहें। लेकिन ऐसा लगता है कि सेल्फी तो छोडि़ए यहां तो मंत्रिमंडल के ग्रुप फोटो से भी सावधान रहने की नौबत आ गई है।
Mukhymantri jo ko kon samjhaye congress se aaye log kabhi bjp ka bhala nahi kar sakte
un logon ko tavajjo dego to purane karykarta naraz honge uske nuksan ka kya